चीनी पर विशेष उपकर लगाने की तैयारी में केंद्र सरकार
चर्चा में क्यों ?
केंद्र सरकार चीनी पर एक विशेष उपकर (special cess) लगाने पर विचार कर रही है, जिससे प्रतिवर्ष लगभग ₹6,700 करोड़ जुटाए जाने की उम्मीद है। इस धनराशि का उपयोग चीनी उद्योग की बेहतरी हेतु किया जाएगा।
प्रमुख बिंदु
- राज्यों के वित्त मंत्रियों के समूह द्वारा सहमति जताए जाने के पश्चात् इस प्रस्ताव को अंतिम निर्णय हेतु जीएसटी परिषद के पास भेजा जाएगा।
- सरकार के अधिकारियों के अनुसार, उपकर के माध्यम से संगृहीत धन से एक फंड का निर्माण किया जाएगा।
- चीनी उद्योग की चरम चक्रीय प्रकृति (extreme cyclical nature) को देखते हुए यह फंड सरकार को किसानों के हित में त्वरित हस्तक्षेप करने में सक्षम बनाएगा।
- जीएसटी परिषद द्वारा मंजूरी प्रदान किये जाने के पश्चात्, इसे अध्यादेश के माध्यम से लागू किया जा सकता है।
- प्रस्ताव में चीनी की आपूर्ति पर प्रति किलोग्राम ₹3 से अनधिक दर से उपकर लगाए जाने की बात कही गई है।
- इस उपकर को जीएसटी परिषद की 27वीं बैठक में प्रस्तावित किया गया था।
- प्रस्ताव के अनुसार, परिषद केंद्र सरकार को प्रस्तावित सीमा के भीतर उपकर की प्रभावी दर निश्चित करने के लिये अधिकृत कर सकती है।
- इसके अलावा, बहु-स्तरीय कराधान की जटिलताओं से बचने के लिये इसे एकल-बिंदु संग्रहण (single-point levy) के माध्यम से कार्यान्वित किया जा सकता है।
- यह प्रस्ताव उपभोक्ता मामले मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत किया गया था।
- यह प्रस्ताव ऐसे समय आया है, जब चीनी मिलों पर किसानों का ₹19,000 करोड़ का बकाया है (31 जनवरी, 2018 तक), जबकि यह गत वर्ष लगभग ₹9,500 करोड़ था।
- विशेषज्ञों का मानना है, कि इस बकाया राशि के दोगुने होने के पीछे अधिक आपूर्ति और फैक्टरी स्तर पर चीनी की निम्न कीमतें प्रमुख रूप से उत्तरदायी हैं।
- जीएसटी की शुरुआत से पहले, चीनी उपकर अधिनियम, 1982 के अंतर्गत एक उपकर वसूल किया जाता था। इसे चीनी विकास कोष (Sugar Development Fund) हेतु उत्पाद शुल्क (excise duty) के रूप में वसूल किया जाता था।
- इस फंड के अंतर्गत एकत्रित की गई धनराशि का इस्तेमाल विभिन्न मोर्चों पर चीनी उद्योग की सहायता के साथ-साथ किसानों के बकाया भुगतान हेतु किया गया।
- बाद में इस उपकर को जीएसटी में शामिल कर लिया गया।
- वर्तमान में इस क्षेत्र के कल्याण हेतु ऐसा कोई भी पृथक् फंड मौजूद नहीं है।
- चीनी उद्योग अति महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है, क्योंकि यह लगभग 5 करोड़ गन्ना किसानों की आजीविका का साधन है। लगभग 5 लाख मजदूर प्रत्यक्ष तौर पर चीनी मिलों से रोज़गार प्राप्त कर रहे हैं।
- इसके अतिरिक्त यह परिवहन और कृषि आगतों की आपूर्ति जैसी सहायक गतिविधियों द्वारा अप्रत्यक्ष तौर पर रोज़गार भी प्रदान करता है।
- ध्यातव्य है कि चीनी का मूल्य निर्धारण बाज़ार आधारित होता है।
- चीनी उद्योग की प्रकृति चक्रीय प्रकार की है, जहाँ कभी- कभी गन्ना/चीनी अभाव उत्पन्न हो जाता है तो कभी इनकी आपूर्ति बहुत अधिक हो जाती है।
- केंद्र द्वारा उचित एवं लाभकारी मूल्य (Fair and Remunerative Price) का निर्धारण किया जाता है और इस दर पर चीनी मिलों द्वारा किसानों से गन्ने की खरीदारी की जाती है।