चौरी चौरा कांड के सौ साल
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चौरी चौरा ( Chauri Chaura) कांड के सौ साल पूरे होने के अवसर पर प्रधानमंत्री द्वारा एक डाक टिकट जारी किया गया है।
- चौरी चौरा, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर ज़िले में स्थित एक कस्बा है।
- इस कस्बे में 4 फरवरी, 1922 को एक हिंसक घटना घटित हुई थी। किसानों की भीड़ ने यहाँ के एक पुलिस स्टेशन में आग लगा दी जिसके कारण 22 पुलिस कर्मियों की मौत हो गई। इस घटना को देखकर महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने असहयोग आंदोलन (Non-Cooperation Movement- 1920-22) को वापस ले लिया।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि (असहयोग आंदोलन की शुरुआत):
- गांधीजी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ 1 अगस्त, 1920 को असहयोग आंदोलन शुरू किया था।
- इस आंदोलन के तहत गांधीजी ने उन सभी वस्तुओं (विशेष रूप से मशीन से बने कपड़े), संस्थाओं और व्यवस्थाओं का बहिष्कार करने का फैसला लिया था जिसके तहत अंग्रेज़ भारतीयों पर शासन कर रहे थे।
- वर्ष 1921-22 की सर्दियों में कॉन्ग्रेस के स्वयंसेवकों और खिलाफत आंदोलन (Khilafat Movement) के कार्यकर्त्ताओं को एक राष्ट्रीय स्वयंसेवक वाहिनी के रूप में संगठित किया गया।
- प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् मुसलमानों के धार्मिक स्थलों पर खलीफा के प्रभुत्व को पुनर्स्थापित करने तथा प्रदेशों की पुनर्व्यव्यस्था कर खलीफा को अधिक भू-क्षेत्र प्रदान करने के उद्देश्य से भारत में मोहम्मद अली, शौकत अली, मौलाना आज़ाद जैसे नेताओं ने खिलाफत कमेटी (1919 ई.) का गठन कर देशव्यापी आंदोलन की नींव रखी।
- कॉन्ग्रेस ने इस आंदोलन का समर्थन किया और महात्मा गांधी के प्रयास से इसे असहयोग आंदोलन में मिला दिया गया।
चौरी चौरा कांड का विवरण:
- चौरी चौरा कस्बे में 4 फरवरी को स्वयंसेवकों ने बैठक की और जुलूस निकालने के लिये पास के मुंडेरा बाज़ार को चुना गया।
- पुलिसकर्मियों ने उन्हें जुलूस निकालने से रोकने का प्रयास किया। इसी दौरान पुलिस और स्वयंसेवकों के बीच झड़प हो गई। पुलिस ने भीड़ पर गोली चला दी, जिसमें कुछ लोग मारे और कई घायल हो गए।
- गुस्साई भीड़ ने एक पुलिस स्टेशन में आग लगा दी, जिसमें 23 पुलिसकर्मी मारे गए।
- कुछ भागने की कोशिश कर रहे पुलिसकर्मियों को पीट-पीटकर मार डाला गया। हथियारों सहित पुलिस की काफी सारी संपत्ति नष्ट कर दी गई।
अंग्रेज़ों की प्रतिक्रिया:
- ब्रिटिश राज ने अभियुक्तों पर आक्रामक तरीके से मुकदमा चलाया। सत्र अदालत ने 225 अभियुक्तों में से 172 को मौत की सज़ा सुनाई। हालाँकि अंततः दोषी ठहराए गए लोगों में से केवल 19 को फाँसी दी गई थी।
महात्मा गांधी की प्रतिक्रिया:
- गांधीजी ने पुलिसकर्मियों की हत्या की निंदा की और आस-पास के गाँवों में स्वयंसेवक समूहों को भंग कर दिया गया। इस घटना पर सहानुभूति जताने तथा प्रायश्चित करने के लिये एक ‘चौरी चौरा सहायता कोष’ स्थापित किया गया था।
- गांधीजी ने असहयोग आंदोलन में हिंसा का प्रवेश देख इसे रोकने का फैसला किया। उन्होंने अपनी इच्छा ‘कॉन्ग्रेस वर्किंग कमेटी’ को बताई और 12 फरवरी, 1922 को यह आंदोलन औपचारिक रूप से वापस ले लिया गया।
अन्य राष्ट्रीय नेताओं की प्रतिक्रिया:
- असहयोग आंदोलन का नेतृत्व करने वाले जवाहरलाल नेहरू और अन्य नेता हैरान थे कि गांधीजी ने संघर्ष को उस समय रोक दिया जब नागरिक प्रतिरोध ने स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी स्थिति मज़बूत कर ली थी।
- मोतीलाल नेहरू और सी.आर. दास जैसे अन्य नेताओं ने गांधीजी के फैसले पर अपनी नाराज़गी व्यक्त की और स्वराज पार्टी की स्थापना का फैसला किया।
आंदोलन को वापस लेने का औचित्य:
- गांधीजी ने अहिंसा में अपने अटूट विश्वास के आधार आंदोलन को वापस लिया जाना उचित ठहराया।
- बिपिन चंद्र जैसे इतिहासकारों ने तर्क दिया है कि अहिंसा की गांधीवादी रणनीति का उद्देश्य यह प्रदर्शित करना था कि अहिंसक प्रदर्शनकारियों के खिलाफ दमनकारी बल का उपयोग औपनिवेशिक राज्य के वास्तविक चरित्र को उजागर करेगा और अंततः उन पर नैतिक दबाव पड़ेगा, लेकिन चौरी चौरा जैसी घटनाएँ इस रणनीति के विपरीत थीं।
- इसके अलावा बिपिन चंद्रा ने स्वीकार किया कि गांधीजी द्वारा आंदोलन को वापस लेना उनके “संघर्ष विराम संघर्ष” रणनीति का हिस्सा था।
तत्काल परिणाम:
- असहयोग आंदोलन की वापसी ने कई युवा भारतीय राष्ट्रवादियों को इस निष्कर्ष पर पहुँचाया कि भारत अहिंसा के माध्यम से औपनिवेशिक शासन से मुक्त नहीं हो पाएगा।
- इन क्रांतिकारियों में जोगेश चटर्जी, रामप्रसाद बिस्मिल, सचिन सान्याल, अशफाकुल्ला खान, जतिन दास, भगत सिंह, भगवती चरण वोहरा, मास्टर सूर्य सेन आदि शामिल थे।
- असहयोग आंदोलन की अचानक समाप्ति से खिलाफत आंदोलन के नेताओं का कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय आंदोलनों से मोहभंग हो गया, फलतः कॉन्ग्रेस और मुस्लिम नेताओं के बीच दरार पैदा हो गई।