उपकर विवाद और कैग की रिपोर्ट

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में भारत में उपकर से जुड़ी व्यवस्था और इसे लेकर केंद्र तथा राज्य सरकारों के बीच गतिरोध व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ: 

किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था की मज़बूती के लिये उसमें पारदर्शिता, उत्तरदायित्त्व और परस्पर विश्वास का होना बहुत ही आवश्यक है। भारत जैसी संघीय व्यवस्था में इन मूल्यों का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। हालाँकि पिछले कुछ समय से राज्य सरकारों द्वारा केंद्र सरकार पर उनके अधिकारों में हस्तक्षेप और केंद्र की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता की कमी का आरोप लगाया जाता रहा है। इसी प्रकार पिछले दिनों भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक या कैग (CAG) द्वारा संसद में प्रस्तुत एक रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा वित्तीय वर्ष 2018-19 में प्राप्त हुए उपकर का लगभग 40% हिस्सा संबंधित उद्देश्य के निर्धारित कोष में हस्तांतरित करने के स्थान पर  भारत की संचित निधि (CFI) में ही रहने दिया गया।

कैग की रिपोर्ट:

  • कैग द्वारा संसद में प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान केंद्र सरकार को 35 अलग-अलग सेस/लेवी आदि से कुल 2.75 लाख करोड़ रुपए प्राप्त हुए।
  • कैग की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा मात्र 1.64 लाख करोड़ रुपए ही निर्धारित मद या कोष में हस्तांतरित किये गए, जबकि शेष राशि को भारत की संचित निधि में ही रख लिया गया।
  • गौरतलब है कि वर्ष 2017 में वस्तु एवं सेवा कर या जीएसटी (GST)  लागू होने के बाद 17 उपकरों को इसमें समाहित कर दिया गया था, जबकि 35 उपकर अभी भी सक्रिय हैं।
  •  वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान केंद्र सरकार को उपकर के रूप में प्राप्त हुए  2.75 लाख करोड़ रुपए में 95,081 करोड़ रुपए जीएसटी क्षतिपूर्ति उपकर (GST Compensation Cess) का हिस्सा था।
  •  कैग की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा इन उपकरों को उनके निर्धारित कोष की बजाय CFI में हस्तांतरित कर न सिर्फ राजकोषीय घाटे को कम दिखाया गया बल्कि वित्त मंत्रालय द्वारा इन उपकरों के लिये निर्धारित कोष की स्थापना/संचालन की विफलता से यह सुनिश्चित करना भी कठिन हो जाता है कि इन उपकरों का उपयोग संसद द्वारा निर्धारित उद्देश्य के लिये हो रहा है या नहीं। 

उपकर (Cess): 

  • केंद्र सरकार को करों (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों), अधिभार (Surcharge), शुल्क, उपकर, लेवी आदि के माध्यम से राजस्व जुटाने का अधिकार है।   
  • उपकर या सेस करदाता द्वारा अदा किये जाने वाले मूल कर (Tax) पर लगाया गया एक अतिरिक्त कर होता है।
  • उपकर मुख्यतः राज्य या केंद्र सरकार द्वारा किसी विशेष उद्देश्य के लिये फंड एकत्रित करने हेतु लागू किया जाता है। 
  • उपकर सरकार के लिये राजस्व का स्थायी स्रोत नहीं होता है, निर्धारित लक्ष्य या उद्देश्य के पूरा होने के बाद इसे बंद कर दिया जाता है । 
  • गौरतलब है कि उपकर को सरकार द्वारा प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष कर दोनों पर लागू किया जा सकता है।  
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद-270 के तहत उपकर को  उन करों के विभाज्य पूल (Divisible Pool of Taxes) के दायरे से बाहर रखने की अनुमति दी गई है जिन्हें केंद्र सरकार को राज्यों के साथ साझा करना अनिवार्य है।  
    • विभाज्य पूल (Divisible Pool) सकल कर राजस्व (Gross Tax Revenue- GTR) का वह भाग होता है, जो केंद्र और राज्यों के बीच बाँटा जाता है। विभाज्य पूल निर्दिष्ट उद्देश्य के लिये लागू अधिभारों और उपकरों को छोड़कर सभी करों तथा निवल संग्रहण प्रभार से मिलकर बनता है।  

कर और उपकर में अंतर:

  • प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर (जीएसटी सहित) ऐसे कर हैं जहाँ इनके माध्यम से प्राप्त राजस्व को सरकार द्वारा सार्वजनिक उद्देश्य के किसी भी कार्य के लिये अलग-अलग तरीके से खर्च किया जा सकता है, वहीं उपकर एक विशेष उद्देश्य के लिये लागू होता है और उसी के लिये खर्च किया जा सकता है।
  • केंद्र सरकार को केंद्रीय करों से प्राप्त होने वाले राजस्व को राज्य सरकारों के साथ साझा करना अनिवार्य है, जबकि उपकर के मामले में ऐसी कोई अनिवार्यता नहीं है।  

भारत में लागू उपकरों का इतिहास: 

  • वर्ष 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार,  वर्ष 1944 से लेकर अब तक सरकार द्वारा 42 अलग-अलग उपकर लगाए जा चुके हैं।
  • स्वतंत्रता के पश्चात् लागू हुए उपकर शुरुआत में किसी विशेष उद्योग के विकास से संबंधित थे, उदाहरण के लिये वर्ष 1953 में लागू नमक और चाय उपकर। इसके बाद अधिकांश उपकर श्रम कल्याण सुनिश्चित करने के उद्देश्य से प्रेरित थे। उदाहरण के लिये वर्ष 1961 में लौह अयस्क खदान श्रम कल्याण उपकर तथा वर्ष 1972 का चूना पत्थर और डोलोमाइट खदान श्रम कल्याण उपकर आदि।
  • वर्ष 2017 में जीएसटी के लागू होने के बाद अधिकांश उपकरों को समाप्त कर दिया गया, अगस्त 2018 तक देश में मात्र 8 उपकर लागू थे।

जीएसटी क्षतिपूर्ति उपकर

(GST Compensation Cess) : 

  • जीएसटी प्रणाली में शामिल होने के बाद राज्यों की  स्थानीय स्तर पर वस्तुओं और सेवाओं पर अप्रत्यक्ष कर लगाने की शक्ति समाप्त हो गई, जिससे राज्यों की आय में भारी गिरावट देखने को मिली है।
  • इस चुनौती को दूर करने के लिये केंद्र सरकार द्वारा‘जीएसटी (राज्यों को प्रतिपूर्ति) अधिनियम, 2017’  को लागू किया गया और इसके तहत राज्यों को अगले पाँच वर्षों  (वर्ष 2017-22) तक जीएसटी के कारण उनके राजस्व में हुई कमी की भरपाई का आश्वासन दिया गया।
  • इसके तहत राजस्व की क्षति की गणना आधार वर्ष (वित्तीय वर्ष 2015-16) से 14% वार्षिक वृद्धि दर के अनुरूप राजस्व का अनुमान लगाते हुए प्राप्त राशि और उस वर्ष के जीएसटी के संग्रह में अंतर के आधार पर की जाती है।   

उपकर से जुड़े अन्य मुद्दे: 

  • कैग द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में उपकर से जुड़ी कई अन्य अनियमितताएँ सामने आई हैं।  
  • उदाहरण के लिये पिछले 10 वर्षों में कच्चे तेल पर उपकर के रूप में एकत्र किये गए 1.25 लाख करोड़ रुपए में से कोई राशि ‘तेल उद्योग विकास बोर्ड’ को नहीं दी गई। 
  • इसी प्रकार पेट्रोल और डीज़ल पर अतिरिक्त उत्पाद शुल्क के रूप में एकत्र किये जाने वाले भारी उपकर के कुछ हिस्से को सड़क और अवसंरचना विकास पर खर्च करने के स्थान पर CFI में ही रहने दिया गया। केंद्र सरकार द्वारा सड़क उपकर के रूप में प्राप्त 38,000 करोड़ रुपए सेंट्रल रोड एंड इंफ्रास्ट्रक्चर फंड में नहीं जमा किये गए। 
  • स्वास्थ्य और शिक्षा के लिये लागू किये गए 4%  उपकर का कुछ हिस्सा शिक्षा के क्षेत्र में आवंटित किया गया परंतु इसके प्रस्ताव के अनुरूप स्वास्थ्य के लिये किसी भी कोष की स्थापना नहीं की गई।
  • एक रिपोर्ट के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2012-13 में केंद्र सरकार को प्राप्त होने वाले राजस्व में उपकर की हिस्सेदारी 6.88% से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2018-19 में 11.88% तक पहुँच गई।

चुनौतियाँ:    

  • उपकर एक संवेदनशील विषय है और यह देश की अर्थव्यवस्था को कई प्रकार से प्रभावित कर सकता है, इसीलिये उपकर को किसी विशेष उद्देश्य और एक निर्धारित अवधि (जैसे जीएसटी प्रतिपूर्ति कर के संदर्भ में 5 वर्ष) के लिये लागू किया जाता है।
  • परंतु हाल के वर्षों में नए उपकर के मामलों में काफी वृद्धि देखने को मिली है, उदाहरण के लिये अगस्त 2018 में देश में मात्र 8 उपकर लागू थे जिनकी संख्या बढ़कर 35 हो गई है, इसके साथ ही कई मामलों में धन का आवंटन मूल उद्देश्य की बजाय उससे जुड़े हुए मुद्दों के आधार पर किया जाता है।
  • उपकर भारत की संचित निधि का हिस्सा न होकर लोक लेखा निधि का हिस्सा होते हैं और एक ट्रस्टी के रूप में सरकार का यह उत्तरदायित्त्व है कि वह उपकर के रूप में प्राप्त राजस्व को उसके निर्दिष्ट कोष में हस्तांतरित करे परंतु ऐसा न करते हुए केंद्र सरकार द्वारा राजकोषीय घाटे को कम दिखाया गया, जो देश की जीडीपी के लगभग 1.2% के बराबर था। 
  • संविधान के 80वें संशोधन के तहत उपकर और अधिभारों से प्राप्त राजस्व को राज्यों के साथ साझा करना अनिवार्य नहीं है। साथ ही वित्त आयोगों  (Finance Commission) का गठन पाँच वर्ष में एक ही बार किया जाता है। ऐसे में केंद्र सरकार द्वारा इस अवधि के दौरान उपकर और अधिभार के माध्यम से अपने राजस्व को बढ़ाने का प्रयास किया जाता है, जबकि कई वित्तीय आयोगों ने इसके प्रतिकूल प्रभावों की चेतावनी दी है। 
  • 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुरूप राज्य करों के विभाज्य पूल में राज्यों की हिस्सेदारी को बढ़ाकर 42% करने के बाद केंद्र सरकार द्वारा करों की अधिकांश वृद्धि उपकर और अधिभार के माध्यम से ही की गई है। 
  • भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर यागा वेणुगोपाल रेड्डी के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2000-01 में केंद्रीय सकल करों में उपकर और अधिभार की हिस्सेदारी मात्र 3% (लगभग) थी जो वित्तीय वर्ष 2015-16 में 16.5% तक पहुँच गई और वित्तीय वर्ष 2020-21 में इसके 20% तक पहुँचने का अनुमान है।
  • हालाँकि इस दौरान  केंद्र के कुल कर में राज्यों की हिस्सेदारी लगातार कम हुई है, उदाहरण के लिये वित्तीय वर्ष 2015-16 में केंद्र द्वारा एकत्रित कुल कर में राज्यों की हिस्सेदारी लगभग 35% थी जो वर्ष 2019-20 में घटकर 32% रह गई और एक अनुमान के अनुसार, वर्तमान वित्तीय वर्ष में यह 30% से भी कम हो सकती है।
    • गौरतलब है कि वर्तमान वित्तीय वर्ष में केंद्र सरकार के राजस्व में एक बड़ी वृद्धि पेट्रोलियम उत्पादों पर लागू अतिरिक्त उत्पाद शुल्क से होने का अनुमान है।     

आगे की राह:     

  • सीमा निर्धारण: पिछले कुछ वर्षों में केंद्र सरकार के कुल राजस्व में उपकर के अनुपात में लगातार वृद्धि और कुल राजस्व में राज्यों की हिस्सेदारी में कमी केंद्र व राज्य के बीच वित्तीय संतुलन को प्रभावित करता है। इस संतुलन को बनाए रखने के लिये प्रत्येक वित्तीय वर्ष में उपकरों के अनुपात और किसी उपकर की अधिकतम अवधि के संदर्भ में एक सीमा का निर्धारण किया जाना चाहिये।
  • उपकरों को लागू करने का लक्ष्य किसी प्राथमिकता वाले विषय के लिये वित्तीय प्रबंधन के साथ उसके भुगतान के प्रति लोगों में उत्तरदायित्त्व की भावना उत्पन्न करना है, परंतु एक साथ 35 उपकरों के होने से उनमें प्राथमिकता का निर्धारण और वित्तीय प्रबंधन एक बड़ी समस्या हो सकती है ऐसे में इसे सीमित किया जाना बहुत आवश्यक है।
  • पारदर्शिता और उत्तरदायित्व: उपकरों के निर्धारण और उनके हस्तांतरण में व्याप्त अनियमितता कर तंत्र को कमज़ोर करने के साथ राज्यों के अधिकारों का उल्लंघन भी है। ऐसे में उपकरों के प्रबंधन में सरकार को अधिक पारदर्शिता लानी चाहिये। 
  • केंद्र सरकार द्वारा राज्य सूची के विषय से संबंधित मामलों में उपकर नहीं लगाया जाना चाहिये।
  • वित्त आयोग द्वारा उपकरों को को लागू करने और उनके आवंटन की सामयिक समीक्षा हेतु सुझाव प्रस्तुत करने चाहिये। 

अभ्यास प्रश्न: उपकर से आप क्या समझते हैं? हाल के वर्षों में उपकर सार्वजनिक महत्त्व के किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति की बजाय केंद्र सरकार द्वारा अपने राजकोषीय घाटे को कम करने का एक माध्यम बन गया है। चर्चा कीजिये।