भारत में बंधुआ मज़दूरी : कारण और समाधान

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में भारत में बंधुआ मज़दूरी व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ 

कुछ दिन पूर्व ही बंगलूरू में घटित एक घटना ने बरबस ही अपनी ओर सबका ध्यान आकर्षित किया। यह घटना बंधुआ मज़दूरी  से संबंधित थी। एक गैर-सरकारी संगठन अंतर्राष्ट्रीय न्याय मिशन (International Justice Mission-IJM) के अनुसार, ओड़िशा और छतीसगढ़ के श्रमिकों को उनकी इच्छा के विरुद्ध गैर-कानूनी रूप से बंधक बनाकर, उनसे कार्य कराया जा रहा था।

सामान्यतः भारत में बंधुआ मज़दूरी  गैर-कानूनी है और पूर्णतया प्रतिबंधित है परंतु हमें अक्सर इस प्रकार की घटनाएँ देखने को मिलती रहती है। वर्तमान में बंधुआ मज़दूरी  का एक नया प्रारूप देखने को मिल रहा है। सामाजिक क्षेत्र के विशेषज्ञों ने इस नए प्रारूप को ‘आधुनिक दासता’ (Modern Slavery) की संज्ञा दी है। वैश्विक दासता सूचकांक (Global Slavery Index), 2018 के अनुसार, भारत में 18 मिलयन लोग आधुनिक दासता में जकड़े हुए हैं।  

इस आलेख में बंधुआ मज़दूरी , उसके कारण, वर्तमान में बंधुआ मज़दूरी  के नए रूप, इसके समाधान में सरकार व अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International labour Organisation) के द्वारा किये जा रहे प्रयासों का विश्लेषण करने का प्रयास किया जाएगा।

क्या है बंधुआ मज़दूरी?

  • ऐसा व्यक्ति जो लिये हुए ऋण को चुकाने के बदले ऋणदाता के लिये श्रम करता है या सेवाएँ देता है, बंधुआ मज़दूर (Bounded Labour) कहलाता है। इसे ‘अनुबंध श्रमिक’ या ‘बंधक मजदूर’ भी कहते हैं। कई बार ऐसा भी देखा गया है कि बंधुआ मज़दूरी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक अनवरत रूप से चलती रहती है। ऐसे श्रमिको द्वारा किये जा रहे कार्यों को ही बंधुआ मज़दूरी  कहा जाता है। 
  • सामान्यतः ऋण के भुगतान के साधन के रूप में बंधुआ मजदूर की मांग की जाती है। सूक्ष्मता से इसका विश्लेषण करने पर यह प्रतीत होता है कि वास्तव में इस अमानवीय प्रथा को अवैतनिक श्रम का लाभ उठाने के लिये एक चाल के रूप में शोषणकारी जमींदारों और साहूकारों द्वारा इसका प्रयोग किया गया है।      

भारत में बंधुआ मज़दूरी व्यवस्था की उत्पत्ति

  • भारत में बंधुआ मज़दूरी व्यवस्था की उत्पत्ति देश की विशेष सामाजिक-आर्थिक संस्कृति के कारण हुई है। भारत में प्रचलित विभिन्न अन्य सामाजिक बुराइयों की तरह, बंधुआ मज़दूरी भी हमारी वर्ण-व्यवस्था की एक उपशाखा है।
  • समाज में कमजोर आर्थिक और सामाजिक स्थिति होने के कारण अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों को गाँवों में जमींदार या साहूकार उन्हें अपने श्रम को नाममात्र के वेतन या बिना किसी वेतन के बेचने को मजबूर करते हैं।
  • अंग्रेजों द्वारा लागू की गई भूमि बंदोबस्त व्यवस्था ने बंधुआ मज़दूरी को आधार प्रदान किया। अंग्रेजों ने भू-राजस्व की शोषणकारी व्यवस्था को इस प्रकार अपनाया कि अपनी भूमि पर खेती करने वाला किसान अब स्वयं उसका किराएदार हो गया। निर्धारित समय पर भू-राजस्व न चुका पाने पर वह बंधुआ मज़दूरी करने के लिये विवश हुआ।

बंधुआ मज़दूरी का स्वरुप 

  • बंधुआ मज़दूरी का सबसे अधिक प्रचलन कृषि क्षेत्र में है। परंपरागत रूप से भूमि का स्वामित्व उच्च सामजिक-आर्थिक स्तर वाले लोगों के पास है, जबकि निम्न सामाजिक-आर्थिक स्तर वाले लोगों के पास भूमि बहुत कम या न के बराबर होती है। परिणामस्वरूप ऐसे लोगों को विवश होकर बंधुआ मजदूर के रूप में दूसरे के खेतों में कार्य करना पड़ता है।
  • वस्तुतः बंधुआ मज़दूरी केवल कृषि के क्षेत्र में ही नहीं बल्कि शहरों में विभिन्न क्षेत्रों जैसे-खनन, माचिस निर्माण की फैक्ट्रियाँ और ईंट भट्ठे आदि क्षेत्रों में व्यापक रूप से फैली है।
  • शहरों में प्रवासी मजदूरों को अपने श्रम को बहुत कम या बिना वेतन के बेचने को मजबूर होना पड़ता है। शहरों में छोटे स्तर की इकाईयों जैसे- पटाखे निर्माण की फक्ट्रियाँ, टेक्सटाइल उद्योग, चमड़ा उद्योग, चाय की दुकानों, होटलों,ढाबों आदि में तमाम प्रवासी मजदूर कार्य करते हुए दिख जाते हैं।
  • इतना ही नहीं समय के साथ बंधुआ मज़दूरी ने अपना रूप परिष्कृत कर लिया है, जिसे विशेषज्ञों द्वारा आधुनिक दासता की संज्ञा दी गई है।

आधुनिक दासता 

  • आधुनिक दासता शब्द को किसी कानून के तहत परिभाषित नहीं किया गया है। यह शोषणकारी प्रकृति की स्थितियों का वर्णन करने के लिये इस्तेमाल किया जाने वाला एक सामान्य शब्द है जिसमें कोई व्यक्ति धमकी, हिंसा, धोखा और शक्ति के दुरुपयोग के कारण किसी नियोजित कार्य को छोड़ या मना नहीं कर सकता है
  • आधुनिक दासता में श्रम, ऋण बंधन, और मानव तस्करी जैसे शोषणकारी कार्य शामिल हैं।
  • विशेषज्ञों ने संयुक्त राज्य अमेरिका में H-1B वीज़ा नीति को आधुनिक दासता का एक उदाहरण माना है     

बंधुआ मज़दूरी  के कारण

  • आर्थिक कारक 
    • आधारभूत आवश्यकताओं जैसे- रोटी, कपड़ा और मकान की पूर्ति न हो पाना।
    • कृषि प्रधान देश होने के बावजूद सभी के पास जीवननिर्वाह योग्य भूमि का न होना
    • आदिवासी क्षेत्र में रहने वाले लोगों की आय का मुख्य स्रोत वन उत्पाद होते हैं उपलब्ध वन उत्पादों की कीमत का कम होना
    • बाढ़ व सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाओं का आना
    • मुद्रास्फीति के कारण निरंतर कीमतों का उच्च पाया जाना
  • सामाजिक कारक 
    • अशिक्षा व साधनहीनता के कारण श्रमिकों का ऋणजाल में फँस जाना 
    • बेहतर जीवन जीने की इच्छा के कारण बिना किसी ठोस रणनीति के शहरों की ओर प्रवास, जिससे ऐसे प्रवासी लोगों को सेवायोजक की मनमानी शर्तों को मानने के लिये विवश होना पड़ता है
    • कार्यकुशलता व दक्षता का अभाव भी बंधुआ मज़दूरी  का कारण बनता है
  • धार्मिक कारक  
    • वर्ण और जाति व्यवस्था की संस्कृति का विद्यमान होना

बंधुआ मज़दूरी  से निपटने में सरकार के प्रयास

  • संवैधानिक रक्षोपाय 
    • अनुच्छेद 19 (1) (G) के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या उनकी पसंद का रोज़गार करने का अधिकार होगा। 
    • अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है। बंधुआ मज़दूरी की प्रथा सभी संवैधानिक रूप से अनिवार्य अधिकारों का उल्लंघन करती है।
    • अनुच्छेद 23 मानव के दुर्व्यापार और बलातश्रम का प्रतिषेध करता है
    • अनुच्छेद 24 कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध करता है।  
    • अनुच्छेद 39 राज्य द्वारा अनुसरणीय कुछ नीतिगत तत्त्वों का उपबंध करता है।  
  • विधिक रक्षोपाय  
    • बंधुआ मज़दूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 आर्थिक और सामाजिक रूप से कमज़ोर वर्गों के शोषण को रोकने के उद्देश्य से अधिनियमित किया गया है।
    • न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम (1948) मजदूरों को भुगतान की जाने वाली मज़दूरी  की मानक राशि निर्धारित करता है। अधिनियम में श्रमिकों के लिये निर्धारित समय सीमा भी शामिल है, जिसमें श्रमिकों के लिये अतिरिक्त समय, मध्यावधि अवकाश, अवकाश और अन्य सुविधाएँ शामिल हैं।
    • संविदा श्रम (विनियमन और उन्मूलन) अधिनियम, 1970 को बेहतर काम की परिस्थितियों को लागू करने और संविदा मजदूरों के शोषण को कम करने के लिये लागू किया गया है। 
    • अंतर्राज्यीय प्रवासी कामगार (सेवा के विनियमन और रोजगार की स्थिति) अधिनियम, 1979 को भारतीय श्रम कानून में अंतर्राज्यीय मजदूरों की कामकाजी स्थितियों को विनियमित करने के लिये अधिनियमित किया गया था। 
    • भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 370 के तहत, गैर-कानूनी श्रम अनिवार्य रूप से निषिद्ध है।
    • बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 और संशोधन अधिनियम 2016 बच्चों के नियोजन पर प्रतिबंध आरोपित करता है और कुछ विशेष  रोज़गारों में बच्चों के कार्य की दशाओं को नियंत्रित करता है।
    • मानव तस्‍करी (रोकथाम, सुरक्षा और पुनर्वास) अधिनियम, 2018 इसमें सरकार ने तस्करी के सभी रूपों को नए सिरे से परिभाषित किया है
  • योजनाओं के द्वारा रक्षोपाय
  • बंधुआ मज़दूर पुनर्वास योजना 2016 के अनुसार, इस योजना के तहत बंधुआ मज़दूरी से मुक्त किये गए वयस्क पुरुषों को 1 लाख रुपए तथा बाल बंधुआ मज़दूरों और महिला बंधुआ मज़दूरों को 2 लाख रुपए तक की वित्तीय सहायता प्रदान करने की व्यवस्था की गई है। साथ ही योजना के तहत प्रत्येक राज्य को इस संबंध में सर्वेक्षण के लिये भी प्रति ज़िला 4.50 लाख रुपए की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
  • उज्जवला योजना महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा शुरू की गई, यह योजना मानव तस्करी की शिकार महिलाओं के लिये आश्रय और पुनर्वास प्रदान करती है

बंधुआ मज़दूरी  को दूर करने में चुनौतियाँ

  • गरीबी का सटीक सर्वेक्षण न हो पाना: वर्ष 1978 के बाद से किसी भी प्रकार का सरकार के नेतृत्व वाला देशव्यापी सर्वेक्षण नहीं हुआ है, जो बंधुआ मज़दूरी उन्मूलन में एक बड़ी रुकावट है
  • आँकड़ों की अनुपलब्धता: बंधुआ श्रम पर सरकारी आँकड़े बचाव और पुनर्वास संख्या पर आधारित हैं। इस तरह के आँकड़े भारत में बंधुआ श्रम की व्यापकता को ठीक से नहीं दर्शाते हैं।    
  • मामलों की अंडर रिपोर्टिंग: नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो,2017 के आँकड़ों से पता चलता है कि सभी मामले पुलिस द्वारा रिपोर्ट नहीं किये जाते हैं। वर्ष 2014 से 2016 के बीच सिर्फ 290 पुलिस केस दर्ज किये गए जिसमें कुल 1338 व्यक्ति पीड़ित पाए गये।
  • कानूनों का लचर कार्यान्वयन: लचर कानून प्रवर्तन के कारण भारत में बंधुआ मज़दूरी  एक समस्या बनी हुई है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने इस तथ्य कि ओर ध्यान आकृष्ट कराया है कि बंधुआ मजदूरों की पहचान और पुनर्वास के लिये जिला-स्तरीय सतर्कता समितियाँ अपने कर्तव्यों को गंभीरता से नहीं ले रही हैं।
  • श्रमिकों के बीच जागरूकता की कमी: बंधुआ मजदूरों को श्रम कानून के बारे में पता नहीं होता है और वे प्रशासन को केवल तभी सूचना देते हैं जब उनका अत्यधिक शोषण हो जाता है।
  • पुनर्वास की समस्या: बाल श्रमिकों सहित बंधुआ मजदूरों के बचाव और पुनर्वास की   व्यावहारिक चुनौतियाँ हैं। इनमें पर्याप्त सुदृढीकरण सेवाएँ, मानव और वित्तीय संसाधनों की कमी, सीमित संगठनात्मक जवाबदेही और गैर-सरकारी संगठनों के बीच संवाद की कमी प्रमुख हैं। 

बंधुआ मज़दूरी  के निवारण में अंतर्राष्ट्रीय प्रयास

  • दास व्यापार और दासता उन्मूलन कन्वेंशन (Convention on the suppression of slave trade and slavery), 1926 का उद्देश्य दासता और दास व्यापार के उन्मूलन  की पुष्टि करना है।
  • नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन (International covenantion on civil and political rights), 1966 दासता और दास व्यापार के सभी रूपों यथा- वंशानुगत सेवा या बलपूर्वक या अनिवार्य श्रम सभी को प्रतिबंधित करता है।
  • बच्चों के अधिकारों पर कन्वेंशन (Convention on rights of child), 1989 बच्चों के अधिकारों को सुरक्षित कर उन्हें आर्थिक शोषण से बचाता है। 
  • बंधुआ मज़दूरी के उन्मूलन में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के कन्वेंशन
    • वर्ष 2017 में भारत सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के दो प्रमुख कन्वेंशन का अनुमोदन किया। 
    • कन्वेंशन 138: रोजगार हेतु न्यूनतम आयु का निर्धारण 
    • कन्वेंशन 182: बाल श्रम के निकृष्टतम रूपों यथा- बाल दासता (Child Slavery) (बच्चों को बेचने, उनकी तस्करी करने, बंधुआ मज़दूर बनाने, सशस्त्र समूहों में बलपूर्वक भर्ती करने), बाल वेश्यावृत्ति एवं अश्लील गतिविधियों में उनके अनुचित इस्तेमाल, नशीले पदार्थों की तस्करी जैसे घृणित कृत्यों में उनके उपयोग तथा अन्य जोखिम भरे कार्यों (विशेषकर ऐसे कार्यों में जिनसे बच्चों के स्वास्थ्य, सुरक्षा तथा नैतिकता को नुकसान पहुँचता है) को पूर्णता प्रतिबंधित करना। 
  • सतत् विकास लक्ष्य 8.7 वर्ष 2025 तक बंधुआ मज़दूरी, आधुनिक दासता और बाल श्रम के निकृष्टतम रूपों के उन्मूलन हेतु प्रभावी उपाय करने पर बल देता है। 

आगे की राह 

  • सरकार द्वारा समय-समय पर सर्वेक्षण करके बंधुआ मजदूरों का एक डेटाबेस बनाने के लिये  ठोस प्रयास किये जाने की आवश्यकता है। 
  • अंतर-राज्य समन्वय तंत्र की आवश्यकता है ताकि प्रवासी मजदूरों की समस्याओं के समाधान हेतु कार्यस्थल में सुधार कर उन्हें सामाजिक सुरक्षा योजनाओं से जोड़ा जा सके। 
  • बंधुआ मज़दूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम के कार्यान्वयन में सुधार के लिये उपाय किये  जाने की आवश्यकता है। इसके अलावा, बंधुआ मज़दूरी  के मामलों को फास्ट ट्रैक न्यायालयों में निपटाया जाना चाहिये और मजदूरों को न्याय प्रदान किया जाना चाहिये। 

प्रश्न- बंधुआ मज़दूरी से आप क्या समझते हैं? बंधुआ मज़दूरी के उन्मूलन हेतु किये जा रहे प्रयासों का विश्लेषण कीजिये।