बेहतर फसल पैदावार के लिये प्रकाश संश्लेषण क्रिया में सुधार

भूमिका

मानव जनसंख्या में हो रही बेतहाशा वृद्धि के फलस्वरूप वैश्विक खाद्य आवश्यकताएँ भी दिनोंदिन बढ़ती जा रही हैं, इसके लिये अधिक फसल पैदावार की ज़रूरत है| अतः हमें उन महत्त्वपूर्ण उपायों की तलाश करनी है जिनसे खाद्यान्न पौधों की उत्पादकता में वृद्धि की जा सके| इसके लिये एक महत्त्वपूर्ण तरीका प्रकाश संश्लेषण क्रिया में सुधार करना भी हो सकता है| अंतर्राष्ट्रीय शोधकार्ताओं की एक टीम द्वारा वैश्विक खाद्य आवश्यकता की समस्या पर  ध्यान केन्द्रित करते हुए प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में सुधार करने पर एक शोध प्रकाशित किया गया है|

प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis)

हम अपने आवास, वस्त्र और अधिकांश खाद्य पदार्थों की ज़रूरतों के लिये पेड़- धों पर निर्भर हैं  तथा इसी क्रम में, पेड़- पौधे अपनी वृद्धि के लिये जल, वायु, सूर्यातप और मृदा व भू-सतह में मौजूद पदार्थों पर निर्भर हैं। इस प्रकार, पौधों की वृद्धि के लिये सूर्य का प्रकाश एक आवश्यक घटक है| पौधे, सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में जल और कार्बन डाइऑक्साइड से कार्बनिक पदार्थ का निर्माण करते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं, यह प्रक्रिया प्रकाश संश्लेषण कहलाती हैं, यह उनकी उपापचयी आवश्यकताओं के लिये ज़रूरी होता है| पेड़-पौधों की पत्तियों में संपन्न होने वाली यह क्रिया प्रकाश संश्लेषण के नाम से जानी जाती है| मानव सहित पृथ्वी पर रहने वाले अनेक जीव-जंतु पौधों की प्रकाश संश्लेषण की कुशलता तथा उनकी वृद्धि पर निर्भर करते हैं|

प्रकाश संश्लेषण में सुधार की स्थिति 

पौधों में रासायनिक अभिक्रियाओं के संपन्न होने के लिये आवश्यक ऊर्जा सूर्य के प्रकाश से प्राप्त होती है| पौधों की पत्तियों में पाए जाने वाले क्लोरोफिल नामक हरित घटक द्वारा सूर्य के प्रकाश से यह ऊर्जा संग्रहित की जाती है| हालाँकि, यह ऊर्जा पौधों की पत्तियों को क्षति भी पहुँचा सकती है, जैसे समुद्र के किनारे ( beach) सूर्य-स्नान करने वाले लोग जलन (sunbrunt) का शिकार हो जाते हैं| पौधे ऊष्मा मुक्त करके सूर्य के प्रकाश द्वारा होने वाली क्षति से अपना बचाव करते हैं, जबकि मनुष्य क्रीम व सन- ग्लासेज़ के प्रयोग द्वारा बचाव करता है | 

उपरोक्त स्थिति पर विचार करते हुए इस अधिशेष सौर ऊर्जा को व्यवस्थित करने की प्रक्रिया को तेज़ करने की आवश्यकता है| यदि इस चक्र के पुनः शुरू होने में अधिक समय लगता है तो इसे समय की बर्बादी माना जा सकता है| इसलिये यदि क्षतिपूर्ति की इस प्रक्रिया (जिसे गैर-प्रकाश रासायनिक शमन- ‘एनपीक्यू’  कहा जाता है) में  सुरक्षित तरीके से तीव्रता लाई जाए तो शोधकर्ताओं का दावा है कि फसल उत्पादकता को सुधारा जा सकता है|

गैर- प्रकाश रासायनिक शमन  ( Non-photochemical  quenching- NPQ ) 

शोधकर्ताओं ने इस बात का अध्ययन किया कि धूप व छाँव के दौरान पौधे किस तरह अपने प्रकाश संश्लेषण चक्र को समंजित करते हैं? सूर्यातप की भरपूर उपलब्धता में एनपीक्यू सक्रिय हो जाता है ताकि क्लोरोफिल को अधिक क्षति न पहुँचने पाए, किन्तु जब सूर्य प्रकाश के समक्ष बादलों का आवरण आ जाता है तो ऐसी कम प्रकाश की स्थिति में एनपीक्यू के स्तर में कमी आ जाती है| यह दावा किया गया है कि एनपीक्यू प्रक्रिया में तेज़ी लाने से प्रकाश संश्लेषण चक्र की कुशलता 8-30% तक बढ़ाई जा सकती है| अतः यह रणनीति फसल की पैदावार में सुधार के लिये भी उपयोगी हो सकती है| 

पौधों में एनपीक्यू के स्तर में उतार-चढ़ाव तीन प्रोटीनों के क्रियाकलापों के फलस्वरूप संभव हो पाता है| इनमें,  ज़ेप (ZEP) नामक प्रोटीन से एनपीक्यू दर में तेज़ी आती है| दूसरी, वीडीई (VDE) प्रोटीन मध्यस्थ के रूप में काम करके ज़ेप के क्रियाकलापों को संतुलित करता है, जबकि तीसरा पीएसबीएस (PSBS) के नाम से जाना जाता है और एनपीक्यू स्तर को संतुलित करता है| यदि तीनों प्रोटीनों के स्तर को प्रभावित किया जा सके तो प्रकाश संश्लेषण की कुशलता व फसल पैदावार को समंजित किया जा सकता है|

तम्बाकू के पौधे पर परीक्षण 

उपरोक्त स्थितियों को ध्यान में रखते हुए जैव अभियांत्रिकी द्वारा वीडीई, पीएसबीएस तथा ज़ेप प्रोटीन के जीन को प्रवेश कराकर तम्बाकू का पौधा तैयार किया गया| इस क्रिया के परीक्षण के लिये तम्बाकू का पौधा इसलिये लिया गया क्योंकि इसका जैविक रूपांतर आसान था, साथ ही, यह एक फसली पौधा है जिसकी वजह से यह ज़रूरत भर की पत्तियों की परत मुहैया कराता है| इसके अतिरिक्त, चावल, सोयाबीन, गेंहूँ तथा मटर में भी यही प्रक्रिया पाई जाती है| अतः तम्बाकू पर किये गए परीक्षण से प्राप्त निष्कर्ष उनके ऊपर भी लागू होते हैं|

इन तीनों जीनों से युक्त पौधों को वीपीज़ेड (वीपीई, पीएसबीएस तथा ज़ेप प्रोटीन जीनों का प्रथम अक्षर) पौधा कहा गया था| सामान्यतः असंशोधित तम्बाकू के पौधों से इनके प्रदर्शनों की तुलना की गई| वीपीज़ेड पौधों में एनपीक्यू शिथिलन की दर तीव्र पाई गई तथा उनमें क्षतिपूर्ति व प्रकाश संश्लेषण में संबद्धता भी शीघ्र पाई गई| इसके बाद शोधार्थियों द्वारा पौधों पर प्रकाश आपतन में भी उतार-चढ़ाव किया गया जिससे धूप-छाँव की नकल की जा सके और इसके द्वारा वीपीज़ेड व जंगली प्रकार के पौधों के प्रदर्शनों की तुलना की गई| यहाँ भी  पाया गया कि कम प्रकाश में वीपीज़ेड पौधे जंगली प्रकार के पौधों की अपेक्षा बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं| इसके पश्चात, फसलों की उत्पादकता का परीक्षण करने के लिये दोनों प्रजातियों के तंबाकू के पौधों का रोपण किया गया और यह पाया गया कि वीपीज़ेड पौधों में असंशोधित पौधों की अपेक्षा अधिक पत्तियाँ थीं तथा उनके पत्तियों तनों व जड़ों का कुल वजन असंशोधित पौधों की अपेक्षा 14-20% अधिक था |

इन परीक्षणों से यह निष्कर्ष प्राप्त हुआ कि खाद्य फसलों की उत्पादकता में वृद्धि के लिये यह एक वहनीय तरीका हो सकता है| हालाँकि, ये जीन संवर्द्धित पौधे हैं लेकिन जीन पादप वंश के लिये बाहरी होने की बजाय उसी से संबंधित हैं|