अनुच्छेद 324 और निर्वाचन आयोग की भूमिका
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय निर्वाचन आयोग ने एक अभूतपूर्व आदेश पारित किया, जिसके तहत पश्चिम बंगाल में चुनावी कैंपेन को एक दिन पहले ही समाप्त कर दिया गया। इसके अलावा निर्वाचन आयोग ने पश्चिम बंगाल के गृह सचिव और एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को भी हटा दिया।
प्रमुख बिंदु
- गौरतलब है कि निर्वाचन आयोग ने कोलकाता में भाजपा और तृणमूल कॉन्ग्रेस के कार्यकर्त्ताओं के बीच हिंसक झड़प के जवाब में संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत ये निर्णय लिये।
- ध्यान देने वाली बात यह है कि पिछले दिनों निर्वाचन आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया था कि जाति और धर्म के नाम पर मतदान की अपील करने वाले नेताओं के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई हेतु आयोग के पास शक्तियाँ सीमित हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय की फटकार के पश्चात् निर्वाचन आयोग ने आचार संहिता का उल्लंघन करने के आरोप में योगी आदित्यनाथ, मेनका गांधी, आज़म खान और मायावती आदि नेताओं को कुछ समय के लिये चुनाव प्रचार करने से प्रतिबंधित कर दिया था।
निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता और ज़िम्मेदारी
- संविधान के भाग XV (निर्वाचन) में सिर्फ पाँच अनुच्छेद हैं। निर्वाचन आयोग के संबंध में संविधान सभा का ध्यान मुख्य रूप से इसकी स्वतंत्रता सुनिश्चित करने पर केंद्रित था।
- बाबासाहेब अम्बेडकर ने 15 जून, 1949 को उक्त अनुच्छेद प्रस्तुत करते हुए कहा था कि “पूरी निर्वाचन मशीनरी एक केंद्रीय निर्वाचन आयोग के हाथों में होनी चाहिए, जो रिटर्निंग ऑफिसर्स, मतदान अधिकारियों और अन्य को निर्देश जारी करने का हकदार होगा।”
- भारतीय संविधान के भाग 15 में अनुच्छेद 324 से लेकर अनुच्छेद 329 तक निर्वाचन की व्याख्या की गई है। अनुच्छेद 324 निर्वाचनों का अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण का निर्वाचन आयोग में निहित होना बताता है। संविधान ने अनुच्छेद 324 में ही निर्वाचन आयोग को चुनाव संपन्न कराने की ज़िम्मेदारी दी है।
- मोहिंदर सिंह गिल बनाम मुख्य निर्वाचन आयुक्त मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी कि निर्वाचन आयोग संविधान सृजक के रूप में संसद द्वारा बनाए गए कानूनों की प्रतिपूर्ति वहाँ कर सकता है जहाँ कानून में भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में चुनाव संचालन के दौरान उत्पन्न किसी स्थिति के संबंध में कोई पर्याप्त प्रावधान नहीं किया है। इन शक्तियों का उपयोग करते हुए आयोग आदर्श आचार संहिता लागू करता है।
पश्चिम बंगाल में निर्वाचन आयोग की भूमिका
- जनप्रतिनिधित्व (संशोधन) अधिनियम, 1988 (1989 का अधिनियम 1) के द्वारा जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 में धारा 28A को जोड़ा गया था जिसके तहत चुनाव के संचालन के लिये तैनात सभी अधिकारियों को चुनाव की अधिसूचना से लेकर परिणाम की घोषणा तक ‘निर्वाचन आयोग में प्रतिनियुक्ति पर माना जाएगा’ और ‘ऐसे अधिकारी उस अवधि के दौरान निर्वाचन आयोग के नियंत्रण, अधीक्षण और अनुशासन’ के अधीन होंगे।
- पश्चिम बंगाल की हालिया स्थिति (जो न तो नई थी और न ही चिंताजनक) मौजूदा कानूनों के दायरे में ही आती है और अनुच्छेद 324 के तहत निर्वाचन आयोग को प्रदत्त अतिरिक्त शक्ति लागू करने की कोई आवश्यकता नहीं थी।
- निर्वाचन आयोग ने अपने कर्त्तव्यों को निभाने में विफल रहने पर जाँच के आदेश देने की बजाय अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई कर दी, जो कि आवश्यक नहीं थी। ऐसा प्रतीत होता है कि निर्वाचन आयोग ने पहले छह चरणों के दौरान हिंसक घटनाएँ सामने आने के बावजूद पश्चिम बंगाल में पर्याप्त सावधानी नहीं बरती।
- जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने रेखांकित किया है, पूर्ण शक्ति संविधानवाद का विलोम है। अनुच्छेद 324 निर्वाचन आयोग को संरक्षण प्रदान करता है, लेकिन इसे स्वयं कानून नहीं बनने देता।
निर्वाचन आयोग
- निर्वाचन आयोग एक स्थायी संवैधानिक निकाय है। संविधान के अनुसार निर्वाचन आयोग की स्थापना 25 जनवरी, 1950 को की गई थी।
- निर्वाचन आयोग से जुड़े उपबंधों का उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 324 में है।
- प्रारंभ में आयोग में केवल एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त था।
- वर्तमान में इसमें एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दो निर्वाचन आयुक्त होते हैं।
- पहली बार दो अतिरिक्त आयुक्तों की नियुक्ति 16 अक्तूबर, 1989 को की गई थी लेकिन उनका कार्यकाल 01 जनवरी, 1990 तक ही चला।
- उसके बाद 01 अक्तूबर, 1993 को दो अतिरिक्त निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति की गई थी, तब से आयोग की बहु-सदस्यीय अवधारणा प्रचलन में है, जिसमें निर्णय बहुमत के आधार पर लिया जाता है।
- भारत के राष्ट्रपति द्वारा मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति की जाती है।
- निर्वाचन आयोग का अध्यक्ष मुख्य निर्वाचन आयुक्त होता है। वर्तमान में सुनील अरोड़ा मुख्य चुनाव आयुक्त हैं।
कार्य तथा शक्तियाँ
- यह भारत में चुनाव कार्य को निष्पक्ष रूप से संपन्न कराने के लिये उत्तरदायी है।
- इसे संसद, राज्य विधायिका और राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के पद हेतु चुनाव कार्य संपन्न कराने का ज़िम्मा दिया गया है।
- यह प्रत्येक चुनाव में राजनीतिक दलों के लिये आदर्श आचार संहिता लागू करता है ताकि लोकतंत्र की गरिमा कायम रहे।
- यह राजनीतिक दलों को विनियमित करता है तथा उन्हें चुनाव लड़ने के लिये पंजीकृत करता है।
- यह प्रत्येक चुनाव में प्रत्याशी द्वारा धन खर्च किये जाने की सीमा तय करता है।
- यह सुनिश्चित करता है कि सभी राजनीतिक दल अपनी वार्षिक एवं आर्थिक रिपोर्ट जमा करें।
- चुनाव के बाद दिशा-निर्देशों के उल्लंघन के मामले में यह सदस्यों को अयोग्य ठहरा सकता है।
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951
- निर्वाचन आयोग का पर्यवेक्षक जो कि सरकार का अधिकारी होगा। किसी निर्वाचन क्षेत्र या निर्वाचन क्षेत्रों के समूह में निर्वाचन/निर्वाचनों के संचालन की निगरानी करेगा और ऐसे दायित्वों का पालन करेगा जो निर्वाचन आयोग द्वारा उसे सौंपे गए हैं।
- इस अधिनियम की धारा 169 के तहत निर्वाचन आयोग के परामर्श से केंद्र सरकार ने निर्वाचक पंजीकरण नियम 1961 बनाया हैं।
- इन कानून और नियमों में सभी चरणों में चुनाव आयोजित कराने, चुनाव कराने की अधिसूचना का मुद्दा, नामांकन पत्र दाखिल करना, नामांकन पत्रों की जाँच, उम्मीदवार द्वारा नाम वापस लेना, मतगणना और घोषित परिणाम के आधार पर सदनों के गठन के लिये विस्तृत प्रावधान किये गए हैं।