वार्षिक सार्वजनिक उद्यम सर्वेक्षण
प्रिलिम्स के लिये:वार्षिक सार्वजनिक उद्यम सर्वेक्षण मेन्स के लिये:वार्षिक सार्वजनिक उद्यम सर्वेक्षण का महत्त्व एवं CPSE |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वित्त मंत्रालय के सार्वजनिक उद्यम विभाग (DPE) द्वारा 60वाँ सार्वजनिक उद्यम (Public Enterprises-PE) सर्वेक्षण 2019-20 जारी किया गया था।
- यह केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (CPSE) को लेकर सूचना का एकमात्र सबसे बड़ा स्रोत है और सूचित नीति निर्माण के आधार पर कार्य करता है।
- सरकार ने सार्वजनिक उद्यम विभाग (DPE) को भारी उद्योग मंत्रालय से फिर से वित्त मंत्रालय को आवंटित कर दिया है।
प्रमुख बिंदु
सार्वजनिक उद्यमों (PE) के सर्वेक्षण के बारे में:
- पीई सर्वेक्षण संपूर्ण CPSE विश्व को शामिल करता है। यह विभिन्न वित्तीय और भौतिक मानकों पर सभी CPSE के लिये आवश्यक सांख्यिकीय डेटा प्राप्त करता है।
- पीई सर्वेक्षण CPSE को पाँच क्षेत्रों में विभाजित करता है, अर्थात्:
- कृषि
- खनन और अन्वेषण
- विनिर्माण, प्रसंस्करण और उत्पादन
- सेवाएँ
- निर्माणाधीन उद्यम
- लोक उद्यम विभाग (DPE) ने दूसरी लोकसभा की प्राक्कलन समिति की 73वीं रिपोर्ट (1959-60) की सिफारिशों पर वित्तीय वर्ष 1960-61 से सार्वजनिक उद्यम सर्वेक्षण जारी करना शुरू किया।
DPE और CPSEs के बारे में:
- DPE सभी केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (CPSE) के लिये नोडल विभाग है और CPSE से संबंधित नीति तैयार करता है।
- DPE के अनुसार, CPSE का मतलब उन सरकारी कंपनियों से है, जो सांविधिक निगमों के अलावा हैं, जिनमें इक्विटी में 50% से अधिक हिस्सेदारी केंद्र सरकार के पास है।
- इन कंपनियों की सहायक कंपनियाँ, यदि भारत में पंजीकृत हैं, तो उन्हें CPSE के रूप में भी वर्गीकृत किया गया है।
- यह विभागीय रूप से संचालित सार्वजनिक उद्यमों, बैंकिंग संस्थानों और बीमा कंपनियों को कवर नहीं करता है।
- CPSE को महारत्न, नवरत्न और मिनीरत्न नाम से 3 श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है।
- वर्तमान में 10 महारत्न, 14 नवरत्न और 74 मिनीरत्न CPSE हैं।
CPSEs का वर्गीकरण
श्रेणी
- महारत्न
- नवरत्न
- मिनीरत्न
शुरुआत
- CPSEs के लिये महारत्न योजना मई, 2010 में शुरू की गई थी, ताकि मेगा CPSEs को अपने संचालन का विस्तार करने और वैश्विक दिग्गजों के रूप में उभरने के लिये सशक्त बनाया जा सके।
- नवरत्न योजना वर्ष 1997 में शुरू की गई थी ताकि उन CPSEs की पहचान की जा सके जो अपने संबंधित क्षेत्रों में तुलनात्मक लाभ प्राप्त करते हैं और वैश्विक खिलाड़ी बनने के अभियान में उनका समर्थन करते हैं।
- मिनीरत्न योजना की शुरुआत वर्ष 1997 में सार्वजनिक क्षेत्र को अधिक कुशल एवं प्रतिस्पर्द्धी बनाने और लाभ कमाने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को अधिक स्वायत्तता तथा शक्तियों का प्रत्यायोजन प्रदान करने के नीतिगत उद्देश्य के अनुसरण में की गई थी।
मानदंड
महारत्न:
- कंपनियों को नवरत्न का दर्जा प्राप्त होना चाहिये।
- कंपनी को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Security Exchange Board of India- SEBI) के नियामकों के अंतर्गत न्यूनतम निर्धारित सार्वजनिक हिस्सेदारी (Minimum Prescribed Public Shareholding) के साथ भारतीय शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध होना चाहिये।
- विगत तीन वर्षों की अवधि में औसत वार्षिक व्यवसाय (Average Annual Turnover) 25,000 करोड़ रुपए से अधिक होना चाहिये।
- पिछले तीन वर्षों में औसत वार्षिक निवल मूल्य (Average Annual Net Worth) 15,000 करोड़ रुपए से अधिक होना चाहिये।
- पिछले तीन वर्षों का औसत वार्षिक शुद्ध लाभ (Average Annual Net Profit) 5,000 करोड़ रुपए से अधिक होना चाहिये।
- कंपनियों की व्यापार के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में महत्त्वपूर्ण उपस्थिति होनी चाहिये।
- उदाहरण: भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड, भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड, कोल इंडिया लिमिटेड, गेल (इंडिया) लिमिटेड आदि।
नवरत्न:
- मिनीरत्न श्रेणी- I और अनुसूची 'A' के तहत आने वाली CPSEs, जिन्होंने पिछले पाँच वर्षों में से तीन में समझौता ज्ञापन प्रणाली के तहत 'उत्कृष्ट' या 'बहुत अच्छी' रेटिंग प्राप्त की है और छह प्रदर्शन मापदंडों में 60 या उससे अधिक का समग्र स्कोर प्राप्त किया हो। ये छह मापदंड हैं:
- शुद्ध पूंजी और शुद्ध लाभ।
- उत्पादन की कुल लागत के सापेक्ष मैनपॉवर पर आने वाली कुल लागत।
- मूल्यह्रास के पहले कंपनी का लाभ, वर्किंग कैपिटल पर लगा टैक्स और ब्याज।
- ब्याज भुगतान से पहले लाभ और कुल बिक्री पर लगा कर।
- प्रति शेयर कमाई।
- अंतर-क्षेत्रीय प्रदर्शन।
- उदाहरण: भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड आदि।
मिनीरत्न:
- मिनीरत्न श्रेणी- I: मिनीरत्न कंपनी श्रेणी 1 का दर्जा प्राप्त करने के लिये आवश्यक है कि कंपनी ने पिछले तीन वर्षों से लगातार लाभ प्राप्त किया हो तथा तीन साल में एक बार कम-से-कम 30 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ अर्जित किया हो।
- उदाहरण (श्रेणी- I): भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण, एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड आदि।
- मिनीरत्न श्रेणी- II : CPSE द्वारा पिछले तीन साल से लगातार लाभ अर्जित किया गया हो और उनकी निवल संपत्ति सकारात्मक हो, वे मिनीरत्न- II का दर्जा पाने के लिये पात्र हैं।
- उदाहरण (श्रेणी- II): भारतीय कृत्रिम अंग निर्माण निगम (ALIMCO ), भारत पंप्स एंड कंप्रेसर्स लिमिटेड (BPCL) आदि।
- मिनीरत्न CPSE को सरकार के किसी भी ऋण पर ऋण/ब्याज के पुनर्भुगतान में चूक नहीं करनी चाहिये।
- मिनीरत्न CPSE कंपनियाँ बजटीय सहायता या सरकारी गारंटी पर निर्भर नहीं होंगी।
केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की भूमिका:
- भारत में CPSE का व्यावसायिक दक्षता और सामाजिक उत्तरदायित्व का दोहरा उद्देश्य है।
- सरकारी आय में योगदान के अलावा वे अपने कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) गतिविधियों के माध्यम से सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करते हैं।
- CPSE के विचार की कल्पना निम्नलिखित सभी समस्याओं के समाधान के लिये की गई थी:
- बेरोज़गारी
- ग्रामीण-शहरी असमानता
- अंतर-क्षेत्रीय और अंतर-वर्गीय असमानताएँ
- तकनीकी पिछड़ापन
- CPSE ने सार्वजनिक क्षेत्र को आत्मनिर्भर आर्थिक विकास के लिये एक उपकरण के रूप में विकसित करने की परिकल्पना की है।
- भारत को आज़ादी मिलने से पहले उसके पास केवल कुछ CPSE थे।
- इनमें रेलवे, पोस्ट और टेलीग्राफ, पोर्ट ट्रस्ट, आयुध कारखाने आदि शामिल थे।
- अधिकांश CPSE स्वतंत्रता के बाद स्थापित किये गए थे जब निजी क्षेत्र में बड़े पूंजी गहन उद्यमों के लिये सीमित क्षमता थी।
- चुनौती: इन उद्यमों हेतु चुनौती उनके लिये अपने संवैधानिक और सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए निवेश पर उचित रिटर्न सुनिश्चित करने की आवश्यकता से उत्पन्न होती है।
आत्मनिर्भर भारत अभियान- CPSE द्वारा योगदान:
- सार्वजनिक क्षेत्र के केंद्रीय उपक्रमों (CPSE) ने भारत सरकार के 'आत्मनिर्भर भारत' एजेंडा को पूरा करने की दिशा में आत्मनिर्भर भारत अभियान के हिस्से के रूप में कई पहलें की हैं।
- इन पहलों में नीतिगत सुधार, रणनीतिक भागीदारी, प्रशासनिक कार्रवाई, परिचालन में बदलाव और क्षमता निर्माण शामिल हैं।
- CPSE द्वारा की गई पहलों को निम्नलिखित पाँच व्यापक श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:
- सरकार के बड़े रणनीतिक उद्देश्यों का समर्थन करने के लिये स्थानीय क्षमता को बढ़ाना।
- सहक्रियाओं का पता लगाने के लिये CPSE के बीच सहयोग को बढ़ावा देना।
- घरेलू फर्मों/MSMEs की अधिक भागीदारी के लिये एक मंच प्रदान करना।
- दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये आयात निर्भरता को युक्तिसंगत बनाना।
- स्वदेशी प्रौद्योगिकी का विकास और CPSE के लिये प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा देना।