ACCR पोर्टल और आयुष संजीवनी एप
चर्चा में क्यों?
हाल ही में आयुष मंत्रालय ने एक आभासी समारोह में अपना ‘आयुष क्लिनिकल केस रिपोज़िटरी’ (ACCR) पोर्टल और आयुष संजीवनी एप का तीसरा संस्करण लॉन्च किया।
प्रमुख बिंदु:
आयुष क्लिनिकल केस रिपोज़िटरी पोर्टल:
- यह आयुष मंत्रालय द्वारा आयुष चिकित्सकों और जनता दोनों का समर्थन करने के लिये एक मंच के रूप में संकल्पित और विकसित किया गया है।
- यह सभी के लाभ हेतु सफलतापूर्वक इलाज किये गए मामलों के बारे में जानकारी साझा करने के लिये दुनिया भर के आयुष चिकित्सकों का स्वागत करता है।
- जिन मामलों का विवरण इस पोर्टल पर दिया जाता है, उनकी विशेषज्ञों द्वारा जाँच की जाएगी और उनकी समीक्षा को सभी को पढ़ने के लिये अपलोड किया जाएगा।
- लक्ष्य:
- विभिन्न रोगों के उपचार के लिये आयुष प्रणाली की शक्ति को व्याख्यायित करना।
आयुष संजीवनी एप का तीसरा संस्करण:
- इसे आयुष मंत्रालय और इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) द्वारा विकसित किया गया है।
- इसका पहला संस्करण मई 2020 में लॉन्च किया गया था।
- इसका लक्ष्य देश में 50 लाख लोगों तक पहुँच स्थापित करना है।
- इस एप का उद्देश्य आयुष (आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध, सोवा-रिग्पा तथा होम्योपैथी) के उपयोग व जनसंख्या के बीच के उपायों और कोविड -19 की रोकथाम में इसके प्रभाव संबंधी आँकड़े एकत्रित करना है।
- लक्ष्य:
- कोविड-19 की कठिन परिस्थितियों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और खुद को स्वस्थ रखने के लिये जनता द्वारा अपनाए गए उपायों को समझना।
- विश्लेषित आँकड़े आयुष तंत्र के अग्रणी विकास में सहायक होंगे।
- कोविड-19 की कठिन परिस्थितियों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और खुद को स्वस्थ रखने के लिये जनता द्वारा अपनाए गए उपायों को समझना।
- लाभ:
- यह आयुष विज्ञान के तरीकों एवं उनकी प्रभावकारिता के बारे में महत्त्वपूर्ण अध्ययन और प्रलेखन की सुविधा प्रदान करेगा, जिसमें आयुष-64 और ‘कबसुरा कुदिनीर दवाएँ’ शामिल हैं जो स्पर्शोन्मुख और हल्के से मध्यम लक्षणों वाले कोविड -19 रोगियों के प्रबंधन में शामिल हैं।
- आयुष-64 ‘केंद्रीय आयुर्वेदीय विज्ञान अनुसंधान परिषद’ (CCRAS) द्वारा विकसित एक पॉली-हर्बल फॉर्मूलेशन है। यह मानक देखभाल सहयोगी के रूप में स्पर्शोन्मुख, हल्के और मध्यम कोविड -19 संक्रमण के उपचार में उपयोगी है।
- प्रारंभ में मलेरिया हेतु वर्ष 1980 में यह दवा विकसित की गई थी और अब इसे कोविड -19 के लिये पुन: तैयार किया गया है।
- ‘काबासुरा कुदिनीर’ एक पारंपरिक फॉर्मूलेशन है जिसका उपयोग सिद्ध चिकित्सकों द्वारा सामान्य श्वसन स्वास्थ्य को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिये किया जाता है।
- आयुष-64 ‘केंद्रीय आयुर्वेदीय विज्ञान अनुसंधान परिषद’ (CCRAS) द्वारा विकसित एक पॉली-हर्बल फॉर्मूलेशन है। यह मानक देखभाल सहयोगी के रूप में स्पर्शोन्मुख, हल्के और मध्यम कोविड -19 संक्रमण के उपचार में उपयोगी है।
- यह आयुष विज्ञान के तरीकों एवं उनकी प्रभावकारिता के बारे में महत्त्वपूर्ण अध्ययन और प्रलेखन की सुविधा प्रदान करेगा, जिसमें आयुष-64 और ‘कबसुरा कुदिनीर दवाएँ’ शामिल हैं जो स्पर्शोन्मुख और हल्के से मध्यम लक्षणों वाले कोविड -19 रोगियों के प्रबंधन में शामिल हैं।
संबंधित पहल:
- राष्ट्रीय आयुष मिशन: भारत सरकार आयुष चिकित्सा प्रणाली के विकास और संवर्द्धन हेतु राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के माध्यम से राष्ट्रीय आयुष मिशन (NAM) नामक केंद्र प्रायोजित योजना लागू कर रही है।
- आयुष स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र।
- हाल ही में एक सरकारी अधिसूचना के माध्यम से विशिष्ट सर्जिकल प्रक्रियाओं को सूचीबद्ध किया गया है तथा कहा गया है कि आयुर्वेद के स्नातकोत्तर मेडिकल छात्रों को इस प्रणाली से परिचित होने के साथ-साथ स्वतंत्र रूप से प्रदर्शन करने हेतु व्यावहारिक रूप से प्रशिक्षित होना चाहिये।
आयुष तंत्र:
आयुर्वेद:
- 'आयुर्वेद' शब्द दो अलग-अलग शब्दों 'आयु' अर्थात जीवन और 'वेद' यानी ज्ञान के मेल से बना है। इस प्रकार शाब्दिक अर्थ में आयुर्वेद का अर्थ ‘जीवन का विज्ञान’ है।
- इसका उद्देश्य संरचनात्मक और कार्यात्मक संस्थाओं को संतुलन की स्थिति में रखना है, जो विभिन्न प्रक्रियाओं, आहार, स्वास्थ्य, दवाओं और व्यवहार परिवर्तन के माध्यम से अच्छे स्वास्थ्य का प्रतीक है।
योग:
- योग एक प्राचीन शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक अभ्यास है जिसकी उत्पत्ति भारत में हुई थी।
- 'योग' शब्द संस्कृत से लिया गया है और इसका अर्थ है जुड़ना या एकत्रित होना अर्थात शरीर और चेतना के मिलन का प्रतीक।
- आज दुनिया भर में विभिन्न रूपों में इसका अभ्यास किया जाता है और इसकी लोकप्रियता में वृद्धि जारी है (अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस - 21 जून)।
प्राकृतिक चिकित्सा:
- प्राकृतिक चिकित्सा एक ऐसी प्रणाली है जो शरीर को स्वयं को स्वास्थ्य रखने में मदद करने के लिये प्राकृतिक उपचार का उपयोग करती है। यह जड़ी-बूटियों, मालिश, एक्यूपंक्चर, व्यायाम और पोषण संबंधी परामर्श सहित कई उपचारों को अपनाता है।
- इसके कुछ उपचार सदियों पुराने हैं लेकिन वर्तमान में यह पारंपरिक उपचारों को आधुनिक विज्ञान के कुछ पहलुओं के साथ जोड़ती है।
यूनानी:
- यूनानी प्रणाली की उत्पत्ति ग्रीस में हुई थी और इसकी नींव हिप्पोक्रेटस ने रखी थी।
- हालाँकि यह प्रणाली अपने वर्तमान स्वरूप का श्रेय अरबों को देती है, जिन्होंने न केवल ग्रीक साहित्य को अरबी में प्रस्तुत करके बचाया, बल्कि अपने स्वयं के योगदान से अपनी चिकित्सा पद्धति को भी समृद्ध किया।
- इसे भारत में अरबों और फारसियों द्वारा ग्यारहवीं शताब्दी के आसपास पेश किया गया था।
- भारत में यूनानी शैक्षिक, अनुसंधान और स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों की सबसे बड़ी संख्या है।
सिद्ध:
- दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में विशेष रूप से तमिलनाडु राज्य में सिद्ध चिकित्सा पद्धति का अभ्यास किया जाता है।
- 'सिद्ध' शब्द 'सिद्धि' से बना है जिसका अर्थ है उपलब्धि। सिद्ध वे पुरुष थे जिन्होंने चिकित्सा, योग या तप (ध्यान) के क्षेत्र में सर्वोच्च ज्ञान प्राप्त किया।
सोवा-रिग्पा:
- "सोवा-रिग्पा" जिसे आमतौर पर तिब्बती चिकित्सा पद्धति के रूप में जाना जाता है, दुनिया की सबसे पुरानी, जीवित और अच्छी तरह से प्रलेखित चिकित्सा परंपराओं में से एक है।
- यह चिकित्सा पद्धति तिब्बत में उत्पन्न हुई और भारत, नेपाल, भूटान, मंगोलिया तथा रूस में लोकप्रिय रूप से प्रचलित है। सोवा-रिग्पा के अधिकांश सिद्धांत और व्यवहार "आयुर्वेद" के समान हैं।
- सोवा-रिग्पा इस सिद्धांत पर आधारित है कि ब्रह्मांड के सभी जीवित प्राणियों और निर्जीव वस्तुओं के शरीर ‘जंग-वा-नगा’ (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) के पाँच ब्रह्मांडीय भौतिक तत्त्वों से निर्मित हैं।
- जब हमारे शरीर में इन तत्त्वों का अनुपात असंतुलित हो जाता है तो विकार उत्पन्न होते हैं।
होम्योपैथी:
- होम्योपैथी शब्द दो ग्रीक शब्दों से बना है, होमोइस का अर्थ ‘समान’ और पाथोस का अर्थ है ‘पीड़ा’। इसे भारत में 18वीं शताब्दी में पेश किया गया था।
- होम्योपैथी का सीधा सा अर्थ है कि उपचार के साथ बीमारियों का इलाज छोटी खुराक से निर्धारित किया जाता है, जो स्वस्थ लोगों द्वारा लिये जाने पर रोग के समान लक्षण पैदा करने में सक्षम होते हैं, अर्थात- "सिमिलिया सिमिलिबस क्यूरेंटूर" का सिद्धांत, इसका अर्थ है कि रोगी उन्हीं औषधियों से निरापद रूप से शीघ्रातिशीघ्र और अत्यंत प्रभावशाली रूप से निरोग होते हैं जो रोगी के रोगलक्षणों से मिलते-जुलते लक्षण उत्पन्न करने में सक्षम हैं।।
- यह मानसिक, भावनात्मक, आध्यात्मिक और शारीरिक स्तरों पर आंतरिक संतुलन को बढ़ावा देकर बीमार व्यक्ति के प्रति समग्र दृष्टिकोण अपनाता है।