प्रीलिम्स फैक्ट्स: 23 जुलाई, 2020 | 23 Jul 2020
मधुबनी चित्रकला
Madhubani Painting
COVID-19 महामारी के मद्देनज़र बिहार के विख्यात मधुबनी (Madhubani) कलाकार रेमंत कुमार मिश्रा मास्क पर हाथ से मधुबनी रूपांकनों का चित्रण करके ‘मास्क मैन’ के रूप में प्रसिद्ध हुए हैं।
प्रमुख बिंदु:
- मधुबनी (Madhubani) कला जिसे ‘मिथिला पेंटिंग’ भी कहा जाता है। यह बिहार के मिथिलांचल इलाके मधुबनी, दरभंगा और नेपाल के कुछ इलाकों में प्रचलित कला शैली है।
- इसे प्रकाश में लाने का श्रेय डब्ल्यू जी आर्चर (W.G. Archer) को जाता है जिन्होंने वर्ष 1934 में बिहार में भूकंप निरीक्षण के दौरान इस शैली को देखा था।
मधुबनी कला की विशेषताएँ:
- इस शैली के विषय मुख्यत: धार्मिक हैं और प्राय: इनमें तीक्ष्ण रंगों का प्रयोग किया जाता है।
- इस शैली में व्यापक रूप से चित्रित विषय एवं डिज़ाइन हिंदू देवताओं के हैं जैसे- कृष्ण, राम, शिव, दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, सूर्य एवं चंद्रमा, तुलसी का पौधा, शादी के दृश्य, सामाजिक घटनाएँ आदि।
- इस पेंटिंग की शैली में ज्यामितीय पैटर्न शामिल हैं। इसमें मुखाकृतियों की आँखें काफी बड़ी बनाई जाती हैं और चित्र में खाली जगह भरने हेतु फूल-पत्तियाँ, चिह्न आदि बनाए जाते हैं।
मधुबनी (Madhubani) कलाकार:
- चित्रकला की इस शैली को पारंपरिक रूप से क्षेत्र की महिलाओं द्वारा बनाया जाता है। हालाँकि वर्तमान में मांग को पूरा करने के लिये इसमें पुरुष भी शामिल होते हैं।
- मधुबनी पेंटिंग्स की प्रसिद्ध महिला चित्रकार हैं- सीता देवी, गोदावरी दत्त, भारती दयाल, बुला देवी आदि।
हालोआर्चिआ
Haloarchaea
पुणे स्थित ‘आगरकर अनुसंधान संस्थान’ (Agharkar Research Institute) द्वारा की गई जाँच में पाया गया है कि महाराष्ट्र के बुलढाणा ज़िले में लोनार झील (Lonar Lake) के पानी का रंग हालोआर्चिआ (Haloarchaea) नामक सूक्ष्म जीवों की उपस्थिति के कारण गुलाबी हो गया है।
प्रमुख बिंदु:
- ‘हालोआर्चिया’ या ‘हालोफिलिक आर्चिया’ एक ऐसा जीवाणु होता है जो गुलाबी रंग पैदा करता है और खारे पानी में पाया जाता है।
- वैज्ञानिकों का मानना है कि वर्षा की अनुपस्थिति, कम मानवीय हस्तक्षेप और उच्च तापमान के परिणामस्वरूप जल का वाष्पीकरण हुआ जिससे लोनार झील (Lonar Lake) की लवणता एवं पीएच (PH) में वृद्धि हुई।
- लवणता एवं पीएच (PH) की वृद्धि ने हेलोफिलिक जीवाणुओं के विकास के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न की।
- वैज्ञानिकों का कहना है कि झील का रंग अपने मूल रूप में वापस आने लगा है क्योंकि वर्षा ऋतु ने अतिरिक्त जल की मात्रा को बढ़ा दिया है। जिससे लवणता एवं पीएच (PH) के स्तर में भी कमी आई है और झील में हरी शैवाल भी बढ़ने लगी है।
लोनार झील (Lonar Lake):
- लोनार झील महाराष्ट्र के बुलढाणा ज़िले के लोनार में स्थित एक क्रेटर झील (Crater-Lake) है और इसका निर्माण प्लीस्टोसीन काल (Pleistocene Epoch) में उल्कापिंड के गिरने से हुआ था जो 1.85 किमी. के व्यास एवं 500 फीट की गहराई के साथ बेसाल्टिक चट्टानों से निर्मित है।
- यह एक अधिसूचित राष्ट्रीय भू-विरासत स्मारक (National Geo-heritage Monument) भी है। यह एक लोकप्रिय पर्यटक केंद्र भी है।
- इस झील का पानी खारा एवं क्षारीय दोनों है।
- इस झील में गैर-सहजीवी नाइट्रोजन-फिक्सिंग सूक्ष्म जीवाणुओं (Non-Symbiotic Nitrogen-Fixing Microbes) जैसे- स्लैकिया एसपी (Slackia SP), एक्टिनोपॉलीस्पोरा एसपी (Actinopolyspora SP) और प्रवासी पक्षी जैसे- शेल्डक, ग्रेब, रूडी शेल्डक के रूप में समृद्ध जैविक विविधता पाई जाती है।
यलो इंडियन बुलफ्रॉग
Yellow Indian Bullfrog
हाल ही में मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर ज़िले में ‘यलो इंडियन बुलफ्रॉग’ (Yellow Indian Bullfrog) का एक बड़े समूह को देखा गया।
प्रमुख बिंदु:
- ‘इंडियन बुलफ्रॉग’ में मादाओं को आकर्षित करने के लिये मानसून के दौरान रंग बदलने की क्षमता होती है।
- ‘इंडियन बुलफ्रॉग’ आमतौर पर चमकीले पीले रंग के नहीं होते हैं किंतु नर प्रजनन के दौरान रंग बदल सकते हैं।
- मानसून काल के दौरान जब इनका प्रजनन काल शुरू होता है तो ये बुलफ्रॉग अपने रंग को हल्के हरे रंग से बदलकर पीला कर लेते हैं।
इंडियन बुलफ्रॉग:
- ‘इंडियन बुलफ्रॉग’ का वैज्ञानिक नाम ‘होप्लाबत्राचुस टाइगरीनस’ (Hoplobatrachus Tigerinus) है।
- इसे आमतौर पर बुलफ्रॉग (Bullfrog), गोल्डन फ्रॉग (Golden Frog), टाइगर फ्रॉग (Tiger Frog) आदि नामों से भी जाना जाता है।
- इसे IUCN की रेड लिस्ट में कम चिंताजनक (Least Concern) की श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया है।
- यह अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भारत, म्यांमार, नेपाल, पाकिस्तान की देशज प्रजाति है।
- इसे भारतीय वन्यजीव अधिनियम, 1972 (Indian Wildlife Act, 1972) अनुसूची-IV में सूचीबद्ध किया गया है। अर्थात् इस प्रजाति के विलुप्त होने का खतरा नहीं है किंतु इसके शिकार करने पर जुर्माना लगाया जाता है।
नरसिंहपुर:
- नरसिंहपुर, मध्य प्रदेश में एक लोकप्रिय मंदिर शहर है जिसका नाम हिंदू देवता नरसिंह के नाम पर रखा गया है।
- यह शहर अपने मंदिर के लिये प्रसिद्ध है जो भगवान नरसिंह को समर्पित है जिन्हें भगवान विष्णु का एक उग्र अवतार माना जाता था। जो आधे शेर एवं आधे आदमी के रूप में अवतरित हुए थे।
- इस मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में खिरवार (Khirwar) वंश से संबंधित जाट सरदारों द्वारा किया गया था जो भगवान नरसिंह के अनुयायी थे।
- नरसिंहपुर के प्राचीन नरसिंह मंदिर को राज्य संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है।
मेटामैटेरियल्स
Metamaterials
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मद्रास और नैरोबी विश्वविद्यालय के शोधकर्त्ताओं ने बड़ी अवसंरचनाओं में दोषों/त्रुटि का पता लगाने के लिये मेटामैटेरियल्स (Metamaterials) का उपयोग किया है।
प्रमुख बिंदु:
- मेटामैटेरियल्स (Metamaterials) अद्वितीय आंतरिक सूक्ष्म संरचना के साथ कृत्रिम रूप से तैयार किये गए पदार्थ होते हैं।
- यह अद्वितीय आंतरिक सूक्ष्म संरचना इन्हें अद्वितीय गुण प्रदान करती है, जो प्राकृतिक रूप से नहीं पाए जाते हैं।
- मेटामैटेरियल्स की घटक कृत्रिम इकाइयों को आकार, प्रकार एवं आंतरिक गुणों के अनुरूप बनाया जा सकता है जिससे असामान्य गुणों को प्रदर्शित किया जा सके।
- गौरतलब है कि इमारतों, पाइपलाइनों एवं रेलवे जैसी कई इंजीनियरिंग अवसंरचनाओं में भयावह विफलताओं को रोकने के लिये समय-समय पर परीक्षण की आवश्यकता होती है।
‘बल्क अल्ट्रासोनिक’ निरीक्षण:
- उच्च आवृत्ति वाली ध्वनि तरंगें जो समूह (बल्क अल्ट्रासाउंड- Bulk Ultrasound) में विचरण करती हैं, व्यापक रूप से संरचनात्मक सामग्री के गैर-आक्रामक एवं गैर-विनाशकारी परीक्षण के लिये उपयोग की जाती हैं।
- पारंपरिक रूप से ‘बल्क अल्ट्रासोनिक’ निरीक्षण कठिन और अधिक समय लेने वाली प्रक्रिया है क्योंकि इसमें संरचनाओं का बिंदु-दर-बिंदु मूल्यांकन शामिल है और यह विशेष रूप से बड़ी अवसंरचनाओं के लिये चुनौतीपूर्ण साबित होता है।
- इस चुनौती का सामना करने के लिये भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मद्रास और नैरोबी विश्वविद्यालय के शोधकर्त्ताओं ने ‘गाइडेड वेव अल्ट्रासाउंड’ (Guided Wave Ultrasound) द्वारा बड़ी अवसंरचनाओं में दोषों/त्रुटियों का पता लगाने में सुधार करने के लिये मेटामैटेरियल्स का उपयोग किया है।
- ‘गाइडेड वेव टेस्टिंग’ (Guided Wave Testing- GWT) में ध्वनि तरंगों को संरचना के आतंरिक भाग में भेजने के बजाय संरचना की लंबाई के अनुरूप भेजा जाता है। मेटामैटेरियल्स के उपयोग से ध्वनि तरंगों को लंबी दूरी तक परीक्षण करने में सहायता मिलती है।