01 Apr 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 4 | सैद्धांतिक प्रश्न
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- दृष्टिकोण और व्यवहार को संक्षेप में परिभाषित कीजिये।
- दृष्टिकोण और व्यवहार दोनों की तुलना कीजिये।
- बताइये कि दृष्टिकोण व्यवहार को कैसे प्रभावित करता है।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
दृष्टिकोण किसी विषय, व्यक्ति या स्थिति के प्रति सोचने या प्रतिक्रिया देने की मानसिक प्रवृत्ति को दर्शाता है, जबकि व्यवहार उसी दृष्टिकोण की बाहरी और व्यावहारिक अभिव्यक्ति के रूप में सामने आता है।
मुख्य भाग:
दृष्टिकोण और व्यवहार के बीच अंतर:
दृष्टिकोण
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व्यवहार
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- इसे किसी व्यक्ति की ऐसी मानसिक प्रवृत्ति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो किसी व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति के प्रति उसकी सोच और भावनाओं को निर्धारित करती है।
- किसी व्यक्ति का दृष्टिकोण प्रायः उसके जीवन में मिले अनुभवों और किये गए अवलोकनों से निर्मित होता है।
- यह व्यक्ति के आंतरिक विचार और भावनाएँ हैं।
- सोचने या महसूस करने का तरीका व्यक्ति के दृष्टिकोण से प्रतिबिंबित होता है।
- यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम चीज़ों को किस प्रकार देखते हैं।
- यह एक मानवीय गुण है।
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- इसका तात्पर्य किसी व्यक्ति या समूह की अन्य लोगों के प्रति की गई गतिविधियों, चालों, आचरण या कार्यों से है।
- किसी व्यक्ति का व्यवहार परिस्थिति पर निर्भर करता है।
- व्यवहार व्यक्ति के दृष्टिकोण को व्यक्त करता है।
- किसी व्यक्ति का आचरण उसके व्यवहार से प्रतिबिंबित होता है।
- यह एक जन्मजात गुण है।
- यह सामाजिक मानदंडों द्वारा शासित है।
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दृष्टिकोण व्यक्तियों की परिस्थितियों को समझने, निर्णय लेने और चुनौतियों का सामना करने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है, जिससे उनका व्यवहार निम्नलिखित तरीकों से आकार लेता है:
- सकारात्मक व्यवहार: जो व्यक्ति अपने कार्य और सहकर्मियों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण (जैसे– संतोष, सहयोग और मित्रता) अपनाता है, वह कार्यस्थल पर आशावादी माहौल बना सकता है। उदाहरणस्वरूप, सकारात्मक दृष्टिकोण वाले लोग न केवल स्वयं सक्रिय और उत्पादक होते हैं, बल्कि अपने आस-पास के सहकर्मियों का मनोबल भी बढ़ाते हैं एवं उन्हें प्रोत्साहित करने का प्रयास करते हैं।
- नकारात्मक व्यवहार: जो व्यक्ति नकारात्मक दृष्टिकोण (जैसे– असंतोष, ऊब आदि) अपनाता है, वह अपने आस-पास के वातावरण और सहकर्मियों की मानसिकता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। उदाहरण के लिये, ऐसा व्यक्ति न तो दूसरों को प्रेरित कर पाता है और न ही सकारात्मक उदाहरण प्रस्तुत कर पाता है, जिससे कार्य स्थल पर निराशा का माहौल बनता है। यह वातावरण अंततः कार्यक्षमता और प्रभावशीलता को प्रभावित करता है।
- स्वार्थी व्यवहार: यह व्यक्ति के कार्यों को आत्म-केंद्रित दृष्टिकोण से संचालित करेगा। उदाहरण: जब कोई व्यक्ति निर्णय लेते समय व्यक्तिगत लाभ को प्राथमिकता देता है और सार्वजनिक या समष्टिगत हित की अनदेखी करता है।
- तर्क या तर्कसंगत दृष्टिकोण: यह व्यक्ति में विवेकपूर्ण और तार्किक सोच को बढ़ावा देता है। उदाहरण: एक विवेकशील व्यक्ति अंधविश्वास पर विश्वास करने के बजाय प्रत्येक कार्य या निर्णय के पीछे के कारणों और तथ्यों की जाँच करता है।
- अहंकारी व्यवहार: यह नकारात्मक दृष्टिकोण और व्यवहार को जन्म दे सकता है। उदाहरणस्वरूप: कुछ बुज़ुर्ग लोग अपने वरिष्ठता के अहंकार को तुष्ट करने के लिये छोटे भाई-बहनों पर अनुचित नियंत्रण रखते हैं, चाहे वे स्वयं गलत ही क्यों न हों।
- मूल्यों और विश्वासों पर आधारित व्यवहार: यह मूल्यों के अनुसार कार्य करेगा। उदाहरण: भारत में बड़ों के पैर छूने से उन्हें सम्मान देने की भावना प्रेरित होती है।
निष्कर्ष:
मनोवृत्ति और व्यवहार में सामंजस्य स्थापित करने हेतु आवश्यक है कि मनसा (विचार), वाचा (वाणी) एवं कर्मणा (कर्म) के बीच पूर्ण समरसता हो। यह समन्वय आधुनिक लोक सेवा व्यवस्था में अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, जहाँ एक लोक सेवक से अपेक्षा की जाती है कि वह न केवल अपने मूल्यों में सच्चा हो, बल्कि उन मूल्यों को अपने आचरण और निर्णयों में भी समान रूप से प्रतिबिंबित करे।