UP PCS Mains-2024

दिवस- 25: अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता क्या है? अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और वैश्विक वित्तपोषण में उत्पन्न होने वाले नैतिक मुद्दों का विश्लेषण कीजिये। (125 शब्द)

03 Apr 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 4 | सैद्धांतिक प्रश्न

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और वित्तपोषण में प्रमुख नैतिक मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
  • अंतर्राष्ट्रीय मामलों में नैतिक मुद्दों पर काबू पाने के उपायों पर प्रकाश डालिये।
  • उपयुक्त निष्कर्ष के साथ समाप्त कीजिये।

परिचय: 

अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता को सार्वभौमिक मूल्यों के समूह के रूप में परिभाषित किया जाता है जो देशों के कार्यों और व्यवहारों को नियंत्रित करता है जैसे मानव अधिकारों की सुरक्षा, नरसंहार का निषेध, युद्ध के दौरान नागरिकों पर हमले का निषेध एवं व्यापार प्रथाओं को संतुलित करना।

मुख्य भाग:  

अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में नैतिक मुद्दे:

  • मानवाधिकार उल्लंघन: राजनीतिक हस्तक्षेप से प्रायः मानवाधिकार उल्लंघन होता है।
  • आतंकवाद: देश आतंकवाद को विदेश नीति के एक उपकरण के रूप में उपयोग करते हैं और मानवाधिकारों के उल्लंघन में लिप्त रहते हैं, जैसे पाकिस्तान लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद एवं ईरान हिजबुल्लाह का समर्थन करता है।
  • शरणार्थी मुद्दा: यूरोपीय देश युद्धग्रस्त क्षेत्रों से भागकर आए शरणार्थियों के लिये अपनी सीमाएँ बंद कर रहे हैं। उदाहरण के लिये, मध्य पूर्व से आए शरणार्थी।
  • जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये देशों के बीच ज़िम्मेदारी की कमी, विकसित देश ऐतिहासिक कार्बन उत्सर्जन के 79 प्रतिशत के लिये ज़िम्मेदार हैं। इंडोनेशिया और प्रशांत महासागर के छोटे एटोल देशों जैसे अधिकांश द्वीप राष्ट्र ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढ़ते समुद्र के स्तर से प्रभावित हैं।
  • निरस्त्रीकरण: इसे मुख्य रूप से उन राज्यों द्वारा बढ़ावा दिया जाता है, जिनके पास परमाणु हथियारों और मिसाइलों का विशाल भंडार है। उदाहरण के लिये, अमेरिका ईरान जैसे देशों पर आर्थिक प्रतिबंध लगाता है, ताकि उन्हें अपने हथियारों को त्यागे बिना परमाणु हथियार विकसित करने से रोका जा सके।
  • परमाणु प्रसार संधि प्रकृति में भेदभावपूर्ण है जो देशों को परमाणु-हथियार संपन्न राज्यों और गैर-परमाणु हथियार संपन्न राज्यों में विभाजित करती है।
  • बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR): बौद्धिक संपदा अधिकारों के कारण विकासशील देशों को नई तकनीकों और यहाँ तक ​​कि विकसित देशों द्वारा विकसित जीवन रक्षक दवाओं तक पर्याप्त पहुँच नहीं मिल पा रही है। उदाहरण के लिये, कोविड-19 महामारी के दौरान, भारत दक्षिण अफ्रीका के साथ मिलकर कोविड-19 वैक्सीन के लिये विश्व व्यापार संगठन (WTO) में बौद्धिक संपदा अधिकारों की छूट की मांग कर रहा था।
  • ग्लोबल कॉमन्स: ये राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं, चार वैश्विक कॉमन्स हैं, अर्थात् उच्च समुद्र, वायुमंडल, अंटार्कटिका और बाहरी अंतरिक्ष। इसने दक्षिण चीन सागर में क्षेत्रीय विवादों जैसे उच्च समुद्री विवादों को उत्पन्न किया है। कुछ अन्य मुद्दे जैसे कि कोविड-19 जैसी जूनोटिक बीमारियाँ, अत्यधिक मत्स्यन और अंतरिक्ष अपशिष्ट का संचय वैश्विक कॉमन्स हैं।
  • वैश्विक गरीबी: वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) 2022 के अनुसार, 1.2 बिलियन लोग बहुआयामी रूप से गरीब हैं और कोविड-19 महामारी ने वैश्विक स्तर पर गरीबी में कमी लाने में हुई प्रगति को 3-10 वर्षों के लिये उलट दिया है।
  • नरसंहार: यह मानवता के विरुद्ध अपराध है, जैसे श्रीलंका में तमिल नरसंहार और म्याँमार में रोहिंग्या नरसंहार।

अंतर्राष्ट्रीय वित्तपोषण में नैतिक मुद्दे:

  • फंड पर शर्तें: विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसे अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान विश्व के लिये बाज़ार खोलने जैसी शर्तों के साथ अनुदान देते हैं। यह उपनिवेशवाद की निरंतरता जैसा लगता है।
  • राज्य बनाम गैर-राज्य अभिनेता: अधिकांश अमीर देश गैर-राज्य अभिनेताओं को सीधे धन देते हैं जो अन्य देशों की संप्रभुता को नष्ट करता है। 
  • भ्रष्टाचार: मानवीय सहायता कोष का केवल एक प्रतिशत ही प्रभावित आबादी तक पहुँच पाता है। उदाहरण के लिये, पश्चिम अफ्रीका में इबोला संकट के दौरान यह देखा गया था। 
  • विदेशी सहायता पर निर्भरता: राज्य अपनी स्वतंत्रता खोने लगते हैं और सामाजिक-आर्थिक नीतियों के लिये विदेशी सहायता पर निर्भर हो जाते हैं। उदाहरण के लिये, द्वीप राष्ट्र जैसे अधिकांश देश चीन की विदेशी सहायता पर निर्भर हैं जो अंततः ऋण जाल में फँस जाते हैं।
  • विद्रोही समूहों को अप्रत्यक्ष लाभ: भारत में नक्सलवाद की समस्या, पूर्वोत्तर भारत में विद्रोही समूह और कश्मीर में आतंकवाद अप्रत्यक्ष वित्तपोषण के उदाहरण हैं।

अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और वित्तपोषण में नैतिक मुद्दों पर काबू पाने के उपाय:

  • मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR): इसे संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 10 दिसंबर 1948 को अपनाया गया था और इसमें पहली बार सार्वभौमिक रूप से संरक्षित किये जाने वाले मौलिक मानव अधिकारों की बात कही गई थी।
  • जिनेवा कन्वेंशन: इसमें चार संधियाँ और तीन अतिरिक्त प्रोटोकॉल शामिल हैं, जो युद्ध में मानवीय उपचार के लिये अंतर्राष्ट्रीय कानून के मानकों को स्थापित करते हैं।
  • शरणार्थी सम्मेलन,1951: यह परिभाषित करता है कि शरणार्थी कौन है और शरण पाने वाले व्यक्तियों के अधिकार तथा शरण देने वाले राष्ट्रों की ज़िम्मेदारियाँ निर्धारित करता है।
  • विश्व व्यापार संगठन (WTO) और इसका ट्रिप्स समझौता: यह वैश्विक व्यापार और बौद्धिक संपदा अधिकारों से जुड़े नैतिक मुद्दों पर विचार करता है।
  • सतत् विकास लक्ष्य: ये हमारे सामने आने वाली वैश्विक चुनौतियों का समाधान करते हैं, जिनमें गरीबी, असमानता, जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण क्षरण, शांति और न्याय से संबंधित चुनौतियाँ शामिल हैं।

निष्कर्ष: 

इस प्रकार, आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, गरीबी और असमानता के उन्मूलन जैसी वैश्विक जटिल समस्याओं का समाधान करने और वैश्विक शांति स्थापित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में “वसुधैव कुटुंबकम” या “एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य” की भावना को बढ़ावा देने एवं सार्वभौमिक नैतिक व्यवहार स्थापित करने की आवश्यकता है।