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UP PCS Mains-2024

  • 08 Apr 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    दिवस- 30: उत्तर प्रदेश के पारंपरिक शिल्पों की विविधता का वर्णन करते हुए, उन शिल्पों की पहचान कीजिये, जिन्हें भौगोलिक संकेत (GI) टैग प्राप्त हुआ है। (125 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • उत्तर प्रदेश के शिल्प के बारे में संक्षेप में बताइये।
    • उत्तर प्रदेश के विभिन्न शिल्पों पर चर्चा कीजिये।
    • उत्तर प्रदेश में उन शिल्पों का उल्लेख कीजिये जिन्हें GI टैग प्राप्त हुए हैं।
    • शिल्पकारों के सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
    • सरकारी पहलों को गिनाते हुए निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय: 

    उत्तर प्रदेश अपने प्राचीन और विविध शिल्पों के लिये जाना जाता है। ये शिल्प मुख्य रूप से प्राचीन और मध्यकालीन काल में देखे गए थे जब कारीगरों ने गुप्त काल के दौरान खुद को श्रेणी नामक संघों में संगठित किया था। राज्य की अर्थव्यवस्था में हस्तशिल्प का वर्तमान योगदान महत्त्वपूर्ण है। उत्तर प्रदेश से हस्तशिल्प निर्यात देश के कुल हस्तशिल्प निर्यात में 44% का योगदान देता है।

    मुख्य भाग: 

    उत्तर प्रदेश के शिल्प:

    • कढ़ाई शिल्प:
      • जरदोजी: यह चाँदी और सोने की कढ़ाई के लिये जाना जाता है, जहाँ कढ़ाई तीन आयामों में की जाती है। यह शैली 12वीं शताब्दी में अफगान आक्रमणकारियों द्वारा भारत में लाई गई थी। यह मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के वाराणसी, आगरा, रामपुर, लखनऊ, फर्रुखाबाद और बरेली क्षेत्रों में प्रचलित है।
      • चिकनकारी: इसकी उत्पत्ति नूरजहाँ से हुई है। इसमें लखनऊ में की जाने वाली नाज़ुक और पारंपरिक हाथ की कढ़ाई शामिल है। परंपरागत रूप से, यह कढ़ाई कपास या मलमल पर सफेद धागे से की जाती थी।
      • बनारसी ब्रोकेड: इसका अस्तित्व ऋग्वेदिक काल से ही माना जाता है, जिसमें सोने का कपड़ा भी होता था जिसे 'हिरण्य वस्त्र' के नाम से जाना जाता था। ब्रोकेड परिष्कृत कपड़ों को संदर्भित करता है जिसे खूबसूरती से सजाया जाता है और आम तौर पर अमीर एवं कुलीन वर्ग द्वारा पहना जाता है।
    • काँच के बर्तन: काँच के बर्तनों को मुगलों द्वारा संरक्षण दिया गया था और शीश-महल जैसे स्मारकों की सजावट के लिये इस्तेमाल किया गया था। फिरोज़ाबाद (चूड़ियों के शहर) में काँच के शिल्प बहुत प्रसिद्ध हैं।
    • धातु और पीतल के बर्तन: मुरादाबाद और मथुरा इस शिल्प के प्रमुख केंद्र हैं। उत्तर प्रदेश भारत में पीतल और ताँबे के बर्तनों का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। अनुष्ठान के सामान मुख्य रूप से पीतल या ताँबे से बने होते हैं। खुदाई और नक्काशी धातु एवं पीतल के बर्तनों पर किये जाने वाले धातु के काम हैं।
    • कालीन बुनाई: कालीन बुनकर वनस्पतियों और जीवों, ताजमहल, केथरीकुला जाल, जामाबाज, कंधारी आदि के विदेशी डिज़ाइनों का उपयोग करते हैं। यह मुगलों के शासनकाल के दौरान अस्तित्व में आया। प्रमुख केंद्रों में मिर्ज़ापुर, आगरा और भदोही शामिल हैं।
    • हाथ से छपाई: यह लखनऊ, बनारस और फर्रुखाबाद में प्रचलित है। यह मुख्य रूप से पारंपरिक पैटर्न और बूटी (पोल्का डॉट्स) जैसे प्रिंट तक ही सीमित है।

    उत्तर प्रदेश में भौगोलिक संकेत (GI) टैग वाले शिल्प:

    उत्तर प्रदेश में GI टैग वाले कुछ शिल्प हैं लखनऊ चिकनकारी शिल्प, बनारस ब्रोकेड और साड़ी, भदोही के हस्तनिर्मित कालीन, आगरा दरी, फर्रुखाबाद प्रिंट, लखनऊ जरदोजी, फिरोज़ाबाद काँच के बने पदार्थ, बनारस हैंड ब्लॉक प्रिंट, मुरादाबाद धातु शिल्प, सहारनपुर वुडक्राफ्ट, गोरखपुर टेराकोटा आदि।

    शिल्प क्षेत्र के सामने आने वाली चुनौतियाँ:

    • बिचौलिये कम भुगतान करते हैं, इसलिये शिल्पकारों को बहुत कम भुगतान किया जाता है।
    • निम्न जीवन स्तर और कार्य से जुड़ी चिकित्सा समस्याएँ।
    • किसी भी व्यावसायिक प्रशिक्षण या कौशल संवर्द्धन प्रशिक्षण की अनुपलब्धता।
    • कारीगरों को सामाजिक सुरक्षा का अभाव।

    निष्कर्ष: 

    सरकार को निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी में कौशल प्रशिक्षण, उत्पाद अनुकूलन, व्यावसायिक प्रशिक्षण और उद्यमिता विकास के लिये स्थानीय केंद्र जैसी सहायक सेवाएँ प्रदान करके एकीकृत उद्यम विकास को प्रोत्साहित करना चाहिये। वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट (ODOP), यमुना एक्सप्रेस-वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण में पहला हस्तशिल्प पार्क जैसी पहल सही दिशा में उठाए गए कदम हैं।

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