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UP PCS Mains-2024

  • 07 Apr 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    दिवस- 29: ‘वाराणसी सिर्फ उत्तर प्रदेश का एक शहर नहीं है बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक पहचान को भी दर्शाता है।’ चर्चा कीजिये। (200 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • वाराणसी का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • वाराणसी से संबंधित महत्त्व के क्षेत्रों पर चर्चा कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय: 

    वाराणसी, उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्राचीन नगर है, जो गंगा नदी के तट पर स्थित है। यह नगरी हिंदू, बौद्ध एवं जैन धर्मों की आस्था और विचारधारा का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र मानी जाती है तथा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र स्थान के रूप में प्रतिष्ठित है।

    • प्राचीन काल में, काशी राज्य अपनी राजधानी वाराणसी के आस-पास के क्षेत्र में था, जो उत्तर में वरुणा नदी और दक्षिण में असी नदी से घिरा था, जिसके कारण इसका नाम वाराणसी पड़ा।
    • वाराणसी न केवल शिक्षा का प्रमुख केंद्र है, बल्कि साहित्य और कला की समृद्ध परंपरा का भी आधार स्तंभ रहा है। इसे विश्व के सबसे प्राचीन सतत् आबाद नगरों में से एक माना जाता है। अपने दीर्घकालिक अस्तित्व के दौरान, इस नगर ने अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान को सुरक्षित रखते हुए निरंतर प्रगति की है।

    मुख्य भाग: 

    वाराणसी का महत्त्व:

    • ऐतिहासिक महत्त्व:
      • वाराणसी न केवल 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में महाजनपद काल के दौरान एक समृद्ध नगर के रूप में विकसित हुआ, बल्कि यह निकटवर्ती सारनाथ के लिए भी प्रसिद्ध है, जहाँ भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश दिया था। यह क्षेत्र अशोक महान सहित अन्य बौद्ध राजवंशों के प्रभाव में भी रहा, जिसने इसे बौद्ध धर्म के प्रसार का एक महत्वपूर्ण केंद्र बना दिया।
      • यह जैन धर्म का एक शहर है जहाँ 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ का जन्म हुआ था। आयुर्वेद की उत्पत्ति भी वाराणसी में हुई है और इसे प्लास्टिक सर्जरी, मोतियाबिंद सर्जरी एवं पथरी के ऑपरेशन जैसे आधुनिक चिकित्सा विज्ञान का आधार माना जाता है। आयुर्वेद और योग के उपदेशक महर्षि पतंजलि भी पवित्र शहर वाराणसी से जुड़े थे।
    • धार्मिक महत्त्व:
      • वाराणसी को भारत की धार्मिक राजधानी कहा जाता है। काशी की पुण्यभूमि सदियों से हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिये एक परम तीर्थस्थल के रूप में प्रतिष्ठित रही है। ऐसी मान्यता है कि वाराणसी में मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस नगर की धार्मिक विविधता में वैष्णव और शैव परंपराएँ सदैव सौहार्दपूर्ण सह-अस्तित्व के साथ फली-फूली हैं।
    • साहित्यिक महत्त्व:
      • वाराणसी अध्यात्मवाद, रहस्यवाद, संस्कृत, योग और हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के साथ-साथ प्रसिद्ध उपन्यासकार प्रेमचंद एवं रामचरितमानस लिखने वाले प्रसिद्ध संत-कवि तुलसीदास जैसे सम्मानित लेखकों से भी जुड़ा हुआ है।
    • सांस्कृतिक महत्त्व:
      • वाराणसी को भारत की सांस्कृतिक राजधानी भी कहा जाता है, क्योंकि इसने विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों के विकास एवं अभिव्यक्ति के लिये एक सशक्त मंच प्रदान किया है। शास्त्रीय नृत्य और संगीत की अनेक महान परंपराओं के प्रख्यात प्रवर्तक इसी पुण्यनगरी से जुड़े रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध सितार वादक रविशंकर और उस्ताद बिस्मिल्लाह खान (प्रसिद्ध शहनाई वादक) सभी इस धन्य शहर के बेटे हैं या अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा यहीं बिताया है।
    • पौराणिक महत्त्व:
      • वाराणसी को भगवान शिव की नगरी माना जाता है, जहाँ उन्होंने देवी पार्वती के साथ मिलकर ब्रह्मांड की रचना की थी। यह भी मान्यता है कि भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त करने के उपरांत यहीं तपस्या की थी। कुछ किंवदंतियों के अनुसार, यह स्थल महाभारत से भी जुड़ा हो सकता है, जहाँ भगवान कृष्ण ने एक कपटी कृष्ण को दंडस्वरूप अग्नि में भस्म कर दिया था।
      • जीवन का वरदान यदि दशाश्वमेध घाट से शुरू होता है तो मणिकर्णिका पर समाप्त होता है। जीवन और मृत्यु का अनूठा संगम एवं मोक्ष की कामना तीर्थयात्रियों को आकर्षित करती है।

    निष्कर्ष: 

    वाराणसी का विशिष्ट विरोधाभास इसी में निहित है कि यह एक जीवंत और गतिशील शहर है, जहाँ हर क्षण कहीं-न-कहीं कुछ न कुछ घटित होता रहता है, फिर भी इसके वातावरण में शांति, स्थिरता और गहन आध्यात्मिकता की अनुभूति होती है। इसी संतुलन के कारण वाराणसी मात्र एक नगर न रहकर, भारत की समृद्ध सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत का एक जीवंत प्रतीक बन जाता है।

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