UP PCS Mains-2024

दिवस- 19: भारत के नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में बदलाव को संचालित करने वाले प्रमुख कारकों की पहचान कीजिये। साथ ही, इस परिवर्तन में बाधा उत्पन्न करने वाली प्रमुख चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये और उनके समाधान हेतु उपयुक्त रणनीतियाँ प्रस्तावित कीजिये। (200 शब्द)

28 Mar 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | पर्यावरण

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • भारत के सतत् विकास के लिये नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण के महत्त्व का संक्षेप में परिचय दीजिये।
  • भारत के नवीकरणीय ऊर्जा परिवर्तन को प्रेरित करने वाले कारकों की पहचान कीजिये।
  • भारत के नवीकरणीय ऊर्जा परिवर्तन की प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
  • नवीकरणीय ऊर्जा की ओर सुगम संक्रमण को सुगम बनाने के लिये समाधान प्रस्तावित कीजिये।
  • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

परिचय: 

भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और बढ़ती ऊर्जा मांगों को देखते हुए, नवीकरणीय ऊर्जा की ओर संक्रमण भारत के सतत् विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है। भारत अपनी नवीकरणीय ऊर्जा (RE) क्षमता का विस्तार करने के लिये एक महत्वाकांक्षी यात्रा पर है, जिसका लक्ष्य 2030 तक 500 गीगावाट(GW) और संभवतः 2035 तक 1 टेरावाट( TW) है। 

मुख्य भाग: 

भारत के नवीकरणीय ऊर्जा परिवर्तन को प्रेरित करने वाले कारक: 

  • ऊर्जा सुरक्षा एवं स्वतंत्रता: भारत अपनी तेल आवश्यकताओं का 80% से अधिक आयात करता है, जिससे वह वैश्विक मूल्य में उतार-चढ़ाव और भू-राजनीतिक तनावों के प्रति संवेदनशील हो जाता है।
    • नवीकरणीय ऊर्जा इस निर्भरता को कम करने का एक मार्ग प्रदान करती है। उदाहरण के लिये, 2023 में भारत की सौर क्षमता में 85 गीगावाट की वृद्धि ने जीवाश्म ईंधन के आयात को कम करना शुरू कर दिया है।
  • जल की कमी: थर्मल पावर प्लांट को महत्त्वपूर्ण जल संसाधनों की आवश्यकता होती है। जल-संकटग्रस्त क्षेत्रों में, नवीकरणीय ऊर्जा अधिक धारणीय विकल्प प्रदान करती है।
    • उदाहरण के लिये, महाराष्ट्र में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने का कारण आंशिक रूप से बार-बार पड़ने वाला सूखा है, जिससे तापीय विद्युत उत्पादन प्रभावित होता है।
  • आर्थिक प्रतिस्पर्द्धात्मकता: नवीकरणीय ऊर्जा, विशेषकर सौर ऊर्जा, पारंपरिक स्रोतों की तुलना में लागत-प्रतिस्पर्द्धी हो गई है।
    • उदाहरण के लिये, दिसंबर 2020 में, गुजरात ऊर्जा विकास निगम (GUVNL) (चरण XI) की 500 मेगावाट की सौर परियोजनाओं की नीलामी ने 1.99 रुपए (~USD0.025)/kWh के न्यूनतम टैरिफ का रिकॉर्ड बनाया।
      • यह आर्थिक लाभ नवीकरणीय ऊर्जा में सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के निवेश को बढ़ावा दे रहा है।
  • रोज़गार सृजन की संभावना: नवीकरणीय क्षेत्र महत्त्वपूर्ण रूप से रोज़गार के अवसर प्रदान करता है।
    • CEEW-NRDC की रिपोर्ट के अनुसार, भारत 2030 तक 238 गीगावाट सौर और 101 गीगावाट नई पवन ऊर्जा क्षमता स्थापित करके संभावित रूप से लगभग 3.4 मिलियन नौकरियाँ (अल्पकालिक और दीर्घकालिक) सृजित कर सकता है।
    • सौर मॉड्यूल के लिये PLI योजना जैसी पहलों के माध्यम से घरेलू विनिर्माण पर सरकार का ध्यान इस रोज़गार सृजन क्षमता का लाभ उठाने पर केंद्रित है।
  • जलवायु परिवर्तन संबंधी प्रतिबद्धताएं: COP26 में, भारत ने 2030 तक अनुमानित कार्बन उत्सर्जन को 1 बिलियन टन कम करने और वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की।
    • इन प्रतिबद्धताओं के लिये नवीकरणीय ऊर्जा की ओर तेजी से बदलाव की आवश्यकता है। वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता का लक्ष्य इन जलवायु लक्ष्यों का प्रत्यक्ष परिणाम है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग : अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन में भारत के नेतृत्व एवं वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन तथा भारत-अमेरिका स्वच्छ ऊर्जा एवं जलवायु साझेदारी जैसी साझेदारियों ने ज्ञान साझाकरण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को तीव्र किया है।
    • ये सहयोग अंतर्राष्ट्रीय ध्यान भी आकर्षित करते हैं और निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने के लिये दबाव भी डालते हैं।

भारत के नवीकरणीय ऊर्जा परिवर्तन की प्रमुख चुनौतियाँ: 

  • भूमि अधिग्रहण में बाधाएँ: नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिये अत्यधिक भूमि की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिये, 1 गीगावाट के सोलर प्लांट के लिये लगभग 2,000 हेक्टेयर  भूमि की आवश्यकता होती है।
    • ये मुद्दे विकास आवश्यकताओं और स्थानीय सामुदायिक अधिकारों के बीच जटिल अंतर्संबंध को उजागर करते हैं।
    • हाल के संघर्षों में राजस्थान के जैसलमेर ज़िले में चारागाह भूमि पर अतिक्रमण कर रहे बड़े सौर पार्कों के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन शामिल है।
  • वित्तपोषण संबंधी मुद्दे: नवीकरणीय परियोजनाओं के लिये वित्तपोषण सुरक्षित करना एक चुनौती बनी हुई है, विशेष रूप से छोटी कंपनियों और स्टार्टअप के लिये। नवाचार को बढ़ावा देने और परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिये किफायती पूंजी तक पहुँच आवश्यक है।
    • विश्लेषण के अनुसार, भारत को अपने वर्तमान सौर और पवन ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये वर्ष 2023 से 2030 के बीच 293 बिलियन डॉलर के निवेश की आवश्यकता होगी
  • अंतराल एवं भंडारण की चुनौतियाँ: नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की परिवर्तनशील प्रकृति के कारण बड़े पैमाने पर भंडारण संबंधी चुनौतियों के समाधान की आवश्यकता होती है।
    • हालिया अध्ययन से पता चलता है कि वर्ष 2030 तक भारत को 450 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा के लागत-कुशल और विश्वसनीय एकीकरण के लिये 38 गीगावाट चार घंटे की बैटरी भंडारण क्षमता और 9 गीगावाट थर्मल संतुलन बिजली परियोजनाओं की आवश्यकता होगी।
    • वर्ष 2021 में भारतीय सौर ऊर्जा निगम द्वारा 1000 मेगावाट-घंटा (MWh) की पहली बड़े पैमाने की बैटरी भंडारण निविदा एक महत्त्वपूर्ण प्रगति है, लेकिन इसे बड़े पैमाने पर लागू करना अब भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य बना हुआ है।
  • ग्रिड एकीकरण एवं स्थिरता संबंधी मुद्दे: जैसे-जैसे नवीकरणीय ऊर्जा का प्रवेश बढ़ता है, ग्रिड स्थिरता एक प्रमुख चिंता का विषय बन जाती है।
    •  तमिलनाडु में पवन ऊर्जा उत्पादन की समय से पूर्व शुरुआत को चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, क्योंकि TANGEDCO (तमिलनाडु जनरेशन एंड डिस्ट्रीब्यूशन कॉरपोरेशन) ने ग्रिड की स्थिरता बनाए रखने के लिये उत्पादन में कटौती की।
    • गुजरात और तमिलनाडु जैसे राज्यों द्वारा पूर्वानुमान एवं समय-निर्धारण विनियमों का कार्यान्वयन इस समस्या के समाधान की दिशा में एक कदम है, लेकिन चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं।
  • भू-राजनीतिक संसाधन निर्भरता: भारत का नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण मुख्य रूप से लिथियम, कोबाल्ट और दुर्लभ पृथ्वी तत्त्वों जैसे महत्त्वपूर्ण खनिजों पर निर्भर करता है, जो मुख्य रूप से कुछ देशों द्वारा नियंत्रित होते हैं। उदाहरण के लिये:
    • चीन विश्व के 80% दुर्लभ मृदा तत्त्वों का प्रसंस्करण करता है।
    • कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य वैश्विक 'खनन' किये जाने वाले कोबाल्ट का 70% आपूर्ति करता है।
    • यह निर्भरता भारत की नवीकरणीय ऊर्जा आपूर्ति शृंखला में कमजोरियाँ उत्पन्न करती है, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक संप्रभुता पर संभावित रूप से प्रभाव पड़ता है।
  • ई-अपशिष्ट एवं एंड-ऑफ-लाइफ मैनेजमेंट: सौर पैनलों और बैटरियों की बड़े पैमाने पर तैनाती के साथ, ई-अपशिष्ट प्रबंधन एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बनता जा रहा है।
    • अंतर्राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार, अनुमान है कि वर्ष 2050 तक भारत सौर पैनल अपशिष्ट का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक बन जाएगा।
    • भारत में वर्तमान में सौर पैनल पुनर्चक्रण हेतु एक व्यापक नीति का अभाव है, हालाँकि MNRE ने 2022 के लिये नियमों का मसौदा तैयार कर लिया है।
      • बड़े पैमाने पर पुनर्चक्रण सुविधाओं का अभाव पर्यावरणीय जोखिम उत्पन्न करता है।

नवीकरणीय ऊर्जा की ओर सुगम संक्रमण सुनिश्चित करने के उपाय:

  • भूमि पट्टे संबंधी क्रांति: भूमि अधिग्रहण की बाधाओं को दूर करने के लिये, भारत "सोलर फार्मिंग" मॉडल को लागू कर सकता है:
    • दीर्घकालिक भूमि पट्टा कार्यक्रम प्रारंभ करना जहाँ किसान RE परियोजनाओं से स्थिर आय अर्जित करते हुए स्वामित्व बनाए रखें।
  • वित्तीय सहायता में वृद्धि: कम ब्याज दर पर ऋण और गारंटी प्रदान करने वाले समर्पित नवीकरणीय ऊर्जा कोषों का निर्माण निवेश को प्रोत्साहित कर सकता है और परियोजना विकास को समर्थन दे सकता है।
    • जलवायु वित्त अंतर को पाटने के लिये भारत को संप्रभु धन कोष, वैश्विक पेंशन, निजी इक्विटी एवं अवसंरचना कोषों से तीव्रता से बढ़ते वैश्विक हरित पूंजी का दोहन करने की आवश्यकता है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा विशेष आर्थिक क्षेत्र (RE-SEZs): नवीकरणीय ऊर्जा विनिर्माण और अनुसंधान एवं विकास के लिये सुव्यवस्थित विनियमन और प्रोत्साहन के साथ समर्पित क्षेत्रों की स्थापना से भारत में परिवर्तन की प्रक्रिया में तेज़ी आ सकती है।
    • ये नवीकरणीय ऊर्जा विशेष आर्थिक क्षेत्र (RE-SEZ) कच्चे माल के प्रसंस्करण से लेकर तैयार उत्पाद संयोजन तक सम्पूर्ण नवीकरणीय ऊर्जा पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करेंगे।
  • फ्लोटिंग सौर क्रांति: भारत जलाशयों, झीलों और तटीय क्षेत्रों पर बड़े पैमाने पर तैरती सौर परियोजनाओं का विकास करके अपने विशाल जलीय स्थान का दोहन कर सकता है।
    • इस दृष्टिकोण से मूल्यवान भूमि का संरक्षण होगा तथा जल वाष्पीकरण और शैवाल वृद्धि में कमी आएगी।
  • कोयला से स्वच्छ ऊर्जा की ओर कार्यबल का परिवर्तन: नवीकरणीय ऊर्जा नौकरियों के लिये कोयला क्षेत्र के श्रमिकों को पुनः प्रशिक्षित करने हेतु "ग्रीन कॉलर" पहल का शुभारंभ करना। 
    • वैकल्पिक रोज़गार सृजित करने के लिये कोयला-निर्भर क्षेत्रों में नवीकरणीय ऊर्जा विनिर्माण केंद्र स्थापित करना।
  • ब्लॉकचेन-संचालित विकेंद्रीकृत ऊर्जा व्यापार: ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी का उपयोग करके पीयर-टू-पीयर ऊर्जा व्यापार प्लेटफार्मों को लागू करने से भारत के ऊर्जा बाज़ार में क्रांति आ सकती है।
    • यह प्रौद्योगिकी प्रोस्यूमर्स को अतिरिक्त ऊर्जा सीधे पड़ोसियों या ग्रिड को बेचने की अनुमति देगी, जिससे समग्र ग्रिड लचीलापन में सुधार होगा।
    • लघु पैमाने पर नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने को प्रोत्साहित करके, यह दृष्टिकोण देश भर में वितरित ऊर्जा संसाधन परिनियोजन में तेज़ी ला सकता है।
  • अपशिष्ट से ऊर्जा सर्कुलर पार्क: एकीकृत अपशिष्ट प्रबंधन एवं ऊर्जा उत्पादन सुविधाएँ, या "वेस्ट-टू-एनर्जी सर्कुलर पार्क" बनाने से दोनों क्षेत्रों में क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है।
    • इन पार्कों में विभिन्न अपशिष्ट धाराओं के प्रबंधन के लिये एनोरोबिक डाइजेशन, गैसीकरण और पायरोलिसिस जैसी विभिन्न प्रौद्योगिकियों का संयोजन किया जाएगा।

निष्कर्ष: 

भारत ने महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, मई 2024 तक इसकी स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 191 गीगावाट होगी, जिसमें 85 गीगावाट सौर ऊर्जा शामिल है। इस वृद्धि को राष्ट्रीय सौर मिशन, पवन ऊर्जा नीति, फेम इंडिया योजना और नवीकरणीय खरीद दायित्व (Renewable Purchase Obligation) जैसी लक्षित नीतियों एवं योजनाओं द्वारा बढ़ावा मिला है। इन नीतियों एवं योजनाओं का प्रभावी ढंग से लाभ उठाकर भारत नवीकरणीय ऊर्जा में सुगम बदलाव ला सकता है, जिससे भविष्य की पीढ़ियों के लिये ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक विकास और पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित होगी।