18 Mar 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- राज्यपाल के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- राज्यपाल के कार्यालय से संबंधित कार्यों पर चर्चा कीजिये।
- राज्यपाल की संवैधानिक स्थिति पर चर्चा कीजिये।
- राज्यपाल के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख और मुख्य कार्यकारी प्रमुख होता है, जिसकी शक्तियाँ संविधान के भाग VI में निहित हैं। राज्यपाल न केवल राज्य कार्यपालिका का एक महत्त्वपूर्ण अंग है, बल्कि केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में भी कार्य करता है, जिससे उसके पद की दोहरी भूमिका स्पष्ट होती है।
मुख्य भाग:
राज्यपाल के कार्यालय से संबंधित कार्य:
- कार्यकारी कार्य:
- राज्यपाल राज्य सरकार के कार्यों के सुचारु संचालन के लिये नियम निर्धारित कर सकते हैं और इन कार्यों को मंत्रियों के बीच वितरित कर सकते हैं।
- राज्यपाल मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है, जो उसके विश्वासपात्र रहते हुए पद पर बने रहते हैं।
- छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश और ओडिशा के आदिवासी कल्याण मंत्री उनके द्वारा नियुक्त किये जाते हैं।
- राज्य के महाधिवक्ता, राज्य चुनाव आयुक्त, राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्य तथा राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है।
- वह किसी राज्य में संवैधानिक आपातकाल लगाने की सिफारिश राष्ट्रपति से कर सकता है।
- विधायी कार्य:
- राज्यपाल राज्य विधानमंडल का सत्र आहूत या स्थगित कर सकता है, विधानसभा को भंग कर सकता है, सत्र न होने पर अध्यादेश जारी कर सकता है और विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति हेतु सुरक्षित रख सकता है।
- वह राज्य विधान परिषद के सदस्यों के छठे भाग को मनोनीत करता है।
- वित्तीय कार्य:
- राज्य विधानमंडल में धन विधेयक केवल राज्यपाल की पूर्व सिफारिश से ही प्रस्तुत किया जा सकता है।
- वह प्रत्येक पाँच वर्ष के बाद राज्य वित्त आयोग का गठन करता है तथा उसकी सिफारिश के बिना अनुदान की मांग नहीं की जा सकती।
- न्यायिक कार्य:
- राष्ट्रपति संबंधित राज्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करते समय राज्यपाल से परामर्श करता है।
- वह राज्य उच्च न्यायालय के परामर्श से ज़िला न्यायाधीशों की नियुक्ति, पदस्थापना और पदोन्नति करता है।
राज्यपाल की संवैधानिक स्थिति:
- अनुच्छेद 154: राज्य की कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में निहित होगी।
- अनुच्छेद 163: राज्यपाल को सहायता और सलाह देने के लिये मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक मंत्रिपरिषद होगी।
- 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के बाद मंत्रिस्तरीय सलाह राष्ट्रपति के लिये बाध्यकारी बना दी गई है, लेकिन राज्यपाल के संबंध में ऐसा कोई प्रावधान नहीं किया गया है।
- अनुच्छेद 167: राज्यपाल को सूचना देने के संबंध में मुख्यमंत्री के कर्त्तव्यों से संबंधित प्रावधानों से संबंधित है।
- अनुच्छेद 201: राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित विधेयकों से संबंधित है।
- अनुच्छेद 213: अध्यादेश जारी करने की राज्यपाल की शक्ति से संबंधित है।
निष्कर्ष:
इस प्रकार, संवैधानिक लोकतंत्र के सफल संचालन के लिये राज्यपाल की भूमिका अपरिहार्य है। हालाँकि लोकतंत्र के स्वतंत्र और निष्पक्ष संचालन को सुनिश्चित करने के लिये सुधारों की सख्त आवश्यकता है, जिससे कर्त्तव्यों के निष्पक्ष निर्वहन में कोई बाधा न आए।