UP PCS Mains-2024

दिवस- 17: "भारत में लघु एवं सीमांत भूमि जोत को अनुपयुक्त भूमि सुधारों की देन माना जाता है। इस संदर्भ में, इन जोतों से संबंधित प्रमुख चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये।" (200 शब्द)

26 Mar 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | अर्थव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • लघु एवं सीमांत भूमि जोतों का संक्षेप में परिचय दीजिये।
  • उन लघु एवं सीमांत भूमि जोतों पर चर्चा कीजिये जो अनुपयुक्त भूमि सुधारों का परिणाम हैं।
  • लघु भू-जोत से संबंधित प्रमुख मुद्दों पर प्रकाश डालिये।
  • लघु एवं सीमांत भूमिधारकों की स्थिति सुधारने के सुझावों के साथ निष्कर्ष दीजिये।

परिचय: 

कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा आयोजित कृषि जनगणना के अनुसार, दो हेक्टेयर से कम भूमि वाले छोटे और सीमांत किसान भारत के सभी किसानों का 86.2% हैं, लेकिन उनके पास केवल 47.3% फसल क्षेत्र है।

मुख्य भाग: 

वर्ष 1970-71 में औसत भूमि जोत का आकार 2.28 हेक्टेयर (हेक्टेयर) था, जो वर्ष 2015-16 में घटकर 1.08 हेक्टेयर रह गया है। परिचालन जोतों को पाँच आकार वर्गों में वर्गीकृत किया गया है:

वर्ग

भूमि स्वामित्व का आकार हेक्टेयर में (हेक्टेयर में)

सीमांत

1.00 से नीचे

छोटा

1.00-2.00

अर्द्ध- मध्यम

2.00-4.00

मध्यम

4.00-10.00

बड़ा

10.00 और अधिक

भारत में भूमि सुधार कुमारप्पा समिति की सिफारिश पर लाया गया था जिसमें ज़मींदारी प्रथा को समाप्त करना शामिल था, इसने बहुस्तरीय कृषि संरचना में केवल ज़मींदारों की ऊपरी परत को हटाया, अधिकांश राज्यों में, किरायेदारी सुधार से संबंधित कानूनों को कभी भी बहुत प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया गया। वर्ष 1961-62 तक, सभी राज्य सरकारों ने भूमि सीलिंग अधिनियम पारित कर दिये थे, लेकिन भूस्वामियों ने तथाकथित 'बेनामी हस्तांतरण' में नौकरों सहित रिश्तेदारों और अन्य लोगों के बीच भूमि को विभाजित करने में कामयाबी हासिल की, जिसके कारण 'भूमि जोत पर सीलिंग' की विफलता हुई।

हिंदू कोड बिल और अन्य नागरिक संहिताओं में उत्तराधिकार का कानून भूमि विखंडन का दूसरा प्रमुख कारण है। भारत में, भूमि को सामाजिक प्रतिष्ठा, स्थिति और पहचान का प्रतीक माना जाता है, जहाँ इसे आय अर्जित करने के लिये सिर्फ एक आर्थिक संपत्ति के रूप में देखा जाता है। राजनीतिक पाखंड, सार्वजनिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार और भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में नेतृत्व की विफलता ने अंततः भूमि सुधार की विफलता को जन्म दिया।

छोटी भूमि जोत से संबंधित प्रमुख मुद्दे:

  • ऋण सुविधाओं की कमी या अपूर्ण ऋण बाज़ार के कारण अपर्याप्त निवेश निर्णय या इनपुट आवेदन के कारण केवल 14% सीमांत और 27% छोटे भूमि धारक ही वित्तीय संस्थानों से ऋण प्राप्त करने में सक्षम थे।
  • वैश्वीकरण की चुनौतियाँ: बढ़ते वैश्वीकरण ने छोटी जोत वाले किसानों के सामने आने वाली समस्याओं को और बढ़ा दिया है। विकसित देशों द्वारा भारी सब्सिडी और संरक्षण की नीतियों का विकासशील देशों में छोटी जोत वाले किसानों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
  • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: यह भारत में गरीबों सहित लाखों लोगों के लिये कृषि, खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण आजीविका के लिये एक बड़ी चुनौती है। इसका प्रतिकूल प्रभाव छोटे किसानों पर अधिक पड़ेगा।
  • सिंचाई की समस्याएँ: छोटे किसानों की खेती भूजल पर अधिक निर्भर करती है, जबकि बड़े किसानों के पास नहर के पानी तक पहुँच अधिक होती है। भारत के कई इलाकों में भूजल कम होता जा रहा है। सीमांत और छोटे किसानों को भविष्य में पानी को लेकर अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।
  • जनसंख्या का दबाव: यह स्थिति प्रच्छन्न बेरोज़गारी को जन्म देती है, जहाँ कार्यबल में शामिल लोगों की संख्या कार्य की वास्तविक आवश्यकता से अधिक होती है।
  • मशीनीकरण का अभाव: भारत में कृषि मशीनरी एवं निर्माता संघ के अनुसार, बड़े किसानों (20 एकड़ से अधिक) के लिये ट्रैक्टर का उपयोग 38 प्रतिशत है, मध्यम किसानों (5-20 एकड़) के लिये 18 प्रतिशत है तथा सीमांत किसानों के लिये लगभग 1 प्रतिशत है।

लघु एवं सीमांत भूमि जोतों की स्थिति सुधारने के उपाय:

  • सरकार सक्रिय रूप से किसान उत्पादक संगठन (FPO) को बढ़ावा दे रही है, FPO में छोटे, सीमांत और भूमिहीन किसानों को एकत्र करने से किसानों की आर्थिक मज़बूती बढ़ेगी एवं उनकी आय में सुधार के लिये बाज़ार संपर्क बढ़ाने में मदद मिलेगी।
  • सहकारी खेती: एक गाँव के विभिन्न किसान अपनी ज़मीन को एक साथ जोड़ते हैं और खेती के उद्देश्य से एकत्रित ज़मीन के टुकड़े को एक बड़े खेत के रूप में उपयोग करने, खेती के लिये आवश्यक इनपुट खरीदने तथा फसलों का संयुक्त रूप से विपणन करने पर सहमत होते हैं, तो माना जाता है कि उन्होंने एक सहकारी कृषि समिति का गठन किया है।
  • PM किसान सम्मान निधि योजना: इस योजना के तहत सरकार हर साल किसानों के बैंक खातों में 6000 रुपए ट्रांसफर करती है। इस रकम से छोटे किसान बीज, खाद आदि खरीद सकते हैं।
  • सूक्ष्म सिंचाई अनुप्रयोग: सूक्ष्म सिंचाई तकनीकें न केवल छोटी भूमि के लिये बल्कि जल संरक्षण के लिये भी उपयोगी हैं।

निष्कर्ष: 

इस प्रकार, भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कुल कार्यबल का 54.6% हिस्सा कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में लगा हुआ है एवं उनमें से अधिकांश छोटे तथा सीमांत भूमि धारक हैं। कृषि योजनाओं और पहलों से लाभ के कारण आय में वृद्धि होगी, लेकिन यह छोटे एवं सीमांत किसानों का समर्थन करने के लिये पर्याप्त नहीं है।