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26 Mar 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 3
अर्थव्यवस्था
दिवस- 17: "भारत में उदारीकरण और वैश्वीकरण ने आर्थिक वृद्धि को गति दी है, लेकिन क्या यह समावेशी आर्थिक विकास सुनिश्चित करने में सफल रहा है? आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।" (125 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- उदारीकरण एवं वैश्वीकरण, आर्थिक वृद्धि एवं आर्थिक विकास का संक्षेप में परिचय दीजिये।
- भारतीय अर्थव्यवस्था में उदारीकरण और वैश्वीकरण के लाभ और हानि पर चर्चा कीजिये।
- समावेशी विकास पर उदारीकरण और वैश्वीकरण के प्रभाव के साथ निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
उदारीकरण का अर्थ है देश की अर्थव्यवस्था में सरकार द्वारा लगाए गए अवरोधों या प्रतिबंधों को हटाना, अर्थव्यवस्था में इसका वही अर्थ है जो इसके मूल शब्द उदारवाद का है। बाज़ार समर्थक या पूंजीवाद समर्थक की ओर बढ़ना उदारीकरण की प्रक्रिया है।
- विश्व व्यापार संगठन ने वैश्वीकरण शब्द को विश्व की अर्थव्यवस्थाओं के माल और सेवाओं, पूंजी एवं श्रम शक्ति के अप्रतिबंधित सीमा पार आवागमन की ओर बढ़ने के रूप में परिभाषित किया है।
- उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण भारत की नई आर्थिक नीति का प्रमुख केंद्र बिंदु है जिसे वर्ष 1991 में पी.वी. नरसिम्हा राव के नेतृत्व में प्रस्तुत किया गया था।
- आर्थिक विकास प्रकृति में मात्रात्मक होता है जैसे सकल घरेलू उत्पाद (GDP) जबकि आर्थिक विकास प्रकृति में गुणात्मक होता है, जैसे- जीवन स्तर और प्रति व्यक्ति आय।
मुख्य भाग:
भारतीय अर्थव्यवस्था में उदारीकरण और वैश्वीकरण के लाभ:
- आर्थिक वृद्धि: सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर वर्ष 1980-91 के दौरान 5.6% से बढ़कर वर्ष 1992-2001 के दौरान 6.4% हो गई। वर्ष 2022-23 में नाममात्र सकल घरेलू उत्पाद या वर्तमान मूल्यों पर सकल घरेलू उत्पाद ₹272.41 लाख करोड़ के स्तर पर पहुँचने का अनुमान है।
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI): विश्व निवेश रिपोर्ट 2022 के अनुसार, भारत वर्ष 2020 में दुनिया के प्रमुख FDI प्राप्तकर्त्ताओं में आठवें स्थान पर था, जो वर्ष 2019 में नौवें स्थान पर था।
- शेयर बाज़ार में तेज़ी: उदार अर्थव्यवस्था में शेयर बाज़ार का मूल्य भी बढ़ता है। यह आरंभिक सार्वजनिक पेशकश (IPO) में धन के प्रवाह और प्रत्याशा की तरह है।
- कम राजनीतिक जोखिम: यह विवादों को निपटाने के लिये मज़बूत कानूनी आधार, निष्पक्ष और लागू करने योग्य अनुबंध कानून, संपत्ति कानून एवं अन्य के कारण व्यवसायों तथा निवेशकों को आत्मविश्वास के साथ काम करने की अनुमति देता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में उदारीकरण और वैश्वीकरण के नुकसान:
- बढ़ती असमानता: भारतीय जनसंख्या के शीर्ष 10% लोगों के पास कुल राष्ट्रीय संपत्ति का 77% हिस्सा है। वर्ष 2017 में उत्पन्न संपत्ति का 73% सबसे अमीर 1% लोगों के पास चला गया, जबकि 670 मिलियन भारतीय, जो आबादी के सबसे गरीब आधे हिस्से का गठन करते हैं, उनकी संपत्ति में केवल 1% की वृद्धि हुई।
- सामाजिक क्षेत्र पर कम ध्यान: उदारीकरण और वैश्वीकरण के प्रभावों के कारण स्वास्थ्य क्षेत्र की प्रगति बाधित हुई तथा शैक्षिक विकास भी अपेक्षित स्तर तक नहीं पहुँच सका।
- बढ़ती बेरोज़गारी: सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के अनुसार, भारत की बेरोज़गारी दर अप्रैल में बढ़कर 8.11% हो गई, जो मार्च 2023 में 7.8% थी। यह वृद्धि मुख्य रूप से श्रम भागीदारी दर (Labour Participation Rate) में हुई उल्लेखनीय बढ़ोतरी के कारण हुई है, जो पिछले तीन वर्षों में सबसे उच्चतम स्तर पर पहुँच गई है।
- बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा: भारत के विनिर्माण क्षेत्र को अन्य देशों से तीव्र प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ रहा है, जिससे घरेलू व्यवसायों के लिये वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा करना कठिन हो सकता है।
निष्कर्ष:
इस प्रकार, भारत में उदारीकरण और वैश्वीकरण में आर्थिक लाभ की अपार संभावनाएँ हैं, यह कोविड-19 महामारी को छोड़कर सकारात्मक आर्थिक वृद्धि दर्शाता है, लेकिन यह आर्थिक विकास के उद्देश्यों को प्राप्त करने में विफल रहा है। इसलिये समावेशी विकास को प्राप्त करने के लिये आर्थिक वृद्धि और विकास को संतुलित करने की आवश्यकता है।