UP PCS Mains-2024

दिवस- 18:  बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) और डिजिटल अधिकारों की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये तथा भारत में इनसे जुड़े प्रमुख मुद्दों का विश्लेषण कीजिये। (125 शब्द)

27 Mar 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | विज्ञान-प्रौद्योगिकी

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • IPR और डिजिटल अधिकारों के बारे में संक्षिप्त जानकारी दीजिये।
  • भारत में बौद्धिक संपदा अधिकार से संबंधित मुद्दे।
  • उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय: 

बौद्धिक संपदा के महत्त्व को सबसे पहले औद्योगिक संपदा के संरक्षण के लिये पेरिस कन्वेंशन (1883) और साहित्यिक एवं कलात्मक कार्यों के संरक्षण के लिये बर्न कन्वेंशन (1886) में पहचाना गया था। दोनों संधियों का प्रशासन विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) द्वारा किया जाता है।

बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) व्यक्तियों को उनके दिमाग की रचनाओं जैसे आविष्कार, साहित्यिक और कलात्मक कार्य तथा वाणिज्य में उपयोग किये जाने वाले प्रतीक, नाम एवं छवियों पर दिये गए अधिकार हैं। वे आम तौर पर निर्माता को एक निश्चित अवधि के लिये अपनी रचना के उपयोग पर एक विशेष अधिकार देते हैं, उदाहरण के लिये, साहित्यिक और कलात्मक कार्यों के लेखकों के अधिकार, ट्रेडमार्क भौगोलिक संकेत (GI)।

जबकि डिजिटल अधिकारों का तात्पर्य गोपनीयता और डेटा सुरक्षा के अधिकार से है। यह आर्थिक पृष्ठभूमि की परवाह किये बिना इंटरनेट एक्सेस के समान वितरण के मुद्दों को भी संबोधित करता है। इसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, वेबसाइटों या सोशल नेटवर्क को ब्लॉक करने वाली सरकारों से सूचना और संचार, गोपनीयता तथा डेटा सुरक्षा, भूल जाने का अधिकार, नाबालिगों की सुरक्षा आदि शामिल हैं।

मुख्य भाग: 

भारत की बौद्धिक संपदा अधिकार व्यवस्था में मुद्दे

  • भारतीय पेटेंट अधिनियम 1970 में कमियाँ: यह किसी ज्ञात पदार्थ के नए रूपों से जुड़े आविष्कारों को पेटेंट देने की अनुमति नहीं देता है, जब तक कि वह प्रभावकारिता के संबंध में गुणों में महत्त्वपूर्ण रूप से भिन्न न हो। इसका मतलब यह है कि भारतीय पेटेंट अधिनियम पेटेंट को सदाबहार रखने की अनुमति नहीं देता है। यह फार्म कंपनियों के लिये चिंता का विषय रहा है।
  • अनिवार्य लाइसेंसिंग (CL) जारी करना: यह सरकार द्वारा संस्थाओं को राष्ट्रीय आपात स्थितियों, अन्य अत्यधिक आवश्यक परिस्थितियों में पेटेंट-स्वामी की सहमति के बिना पेटेंट किये गए आविष्कार का उपयोग, निर्माण, आयात या बिक्री करने की अनुमति प्रदान करना है। यह उन विदेशी निवेशकों के लिये समस्याजनक है जो प्रौद्योगिकी लाते हैं क्योंकि वे अपने उत्पादों की नकल करने के लिये CL के दुरुपयोग के बारे में चिंतित हैं।
  • USTR की 'प्राथमिकता निगरानी सूची': बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPR) के कथित उल्लंघन के लिये भारत संयुक्त राज्य अमेरिका व्यापार प्रतिनिधि (USTR) की 'प्राथमिकता निगरानी सूची' में बना हुआ है।
  • सरकारी अनुमोदन के दौरान परीक्षण: विदेशी निवेशकों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों (MNC) का दावा है कि भारतीय कानून दवा तथा कृषि-रासायनिक उत्पादों के बाज़ार अनुमोदन के लिये प्रस्तुत परीक्षण डेटा या अन्य जानकारी के अनुचित वाणिज्यिक उपयोग से पर्याप्त सुरक्षा प्रदान नहीं करता।
  • कॉपीराइट अधिनियम का खराब कार्यान्वयन: कॉपीराइट अधिनियम का प्रवर्तन कमज़ोर है और कॉपीराइट सामग्री की चोरी व्यापक है।

डिजिटल अधिकारों के मुद्दे

बच्चों के डिजिटल अधिकारों को सीमित करना: बच्चों के डिजिटल अधिकारों के प्रति नीतिगत दृष्टिकोण अक्सर सतर्क और प्रतिक्रियावादी होता है, क्योंकि कई सरकारें संरक्षण के नाम पर बच्चों के अधिकारों को सीमित करने के पक्ष में गलती करती हैं।

सोशल मीडिया का हस्तक्षेप: सोशल मीडिया डिजिटल अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख भूमिका निभाता है क्योंकि यह वाणिज्य और संस्कृति का एक मंच है। लेकिन साथ ही, हमारे डिजिटल अधिकारों के साथ इसके हस्तक्षेप की सीमा विवादास्पद है। सोशल मीडिया की शक्तियों और संचालन के संबंध में कोई पूर्ण तथा स्पष्ट नियामक ढाँचा नहीं है।

निष्कर्ष: 

भारत तब तक एक मज़बूत IP प्रणाली के परिवर्तनकारी लाभों का पूरा लाभ नहीं उठा पाएगा जब तक कि वह अपने IP कानूनों और विनियमों में कमियों को दूर नहीं करता और साथ ही, डिजिटल डोमेन में पेरेंटिंग एवं नीति-निर्माण के लिये एक रणनीतिक दृष्टिकोण होना चाहिये जो डिजिटल साक्षरता पर ध्यान केंद्रित करता है तथा डिजिटल गोपनीयता जैसी इंटरनेट गवर्नेंस समस्याओं का समाधान देता है।