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28 Mar 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 3
पर्यावरण
दिवस- 19: भारत में आपदा प्रबंधन की प्रभावशीलता एक संगठित और संरचित प्रणाली पर निर्भर करती है। इस संदर्भ में, भारत के आपदा प्रबंधन ढाँचे की विशेषताओं और कार्यप्रणाली की व्याख्या कीजिये। (125 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में आपदा प्रबंधन ढाँचे की आवश्यकता का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
- भारत में आपदा प्रबंधन से संबंधित रूपरेखा पर चर्चा कीजिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
परिचय :
भारत, विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक और मानव-जनित आपदाओं के प्रति अलग-अलग स्तरों पर संवेदनशील है। देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 58.6 प्रतिशत भाग मध्यम से लेकर अत्यधिक तीव्रता वाले भूकंपों के प्रति संवेदनशील है; 40 मिलियन हेक्टेयर (लगभग 12 प्रतिशत भूमि) क्षेत्र बाढ़ और नदी कटाव के प्रति संवेदनशील है; देश की 7,516 किलोमीटर लंबी समुद्री तटरेखा में से लगभग 5,700 किलोमीटर हिस्सा चक्रवातों और सुनामी के खतरे में है; कृषि योग्य 68 प्रतिशत क्षेत्र सूखे के प्रति संवेदनशील है तथा पहाड़ी क्षेत्र भूस्खलन और हिमस्खलन जैसी आपदाओं के जोखिम हैं।
इन परिस्थितियों को देखते हुए, देश में एक सुदृढ़ आपदा प्रबंधन ढाँचे की स्थापना अत्यंत आवश्यक हो जाती है।
मुख्य भाग:
भारत में आपदा प्रबंधन से संबंधित रूपरेखा
- आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005: आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 ने भारत में राष्ट्रीय, राज्य और ज़िला स्तर पर आपदा प्रबंधन के लिये कानूनी और संस्थागत ढाँचा प्रदान किया है।
- यद्यपि आपदा प्रबंधन की प्राथमिक ज़िम्मेदारी राज्यों पर है, केन्द्र सरकार रसद और वित्तीय सहायता प्रदान करके राज्य सरकारों के प्रयासों का समर्थन करती है।
आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के तहत संस्थागत ढाँचा:
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA): प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाला शीर्ष निकाय, जो आपदा प्रबंधन (DM) के लिये नीति, योजना और दिशानिर्देश तैयार करने के लिये ज़िम्मेदार है।
- NDMA प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों आपदाओं से निपटता है तथा प्रवर्तन और कार्यान्वयन का समन्वय करता है।
- राष्ट्रीय कार्यकारी समिति (NEC): यह समिति NDMA की सहायता करती है, जिसके अध्यक्ष केंद्रीय गृह सचिव होते हैं, जिसमें विभिन्न सचिव और अधिकारी शामिल होते हैं।
- आपदा प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय योजना तैयार करना और उसकी निगरानी करना तथा आपदा स्थितियों पर प्रतिक्रियाओं का समन्वय करना।
- राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA): मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में कार्यरत, यह निकाय राज्य स्तर की आपदा प्रबंधन नीतियों एवं योजनाओं के लिये उत्तरदायी होता है, कार्यान्वयन के समन्वय तथा राज्य की विकास योजनाओं में जोखिम न्यूनीकरण उपायों के एकीकरण का दायित्व भी निभाता है।
- ज़िला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (DDMA): इसका नेतृत्व ज़िला कलेक्टर करते हैं तथा सह-अध्यक्ष एक निर्वाचित प्रतिनिधि होता है।
- ज़िला स्तरीय आपदा प्रबंधन योजनाएँ तैयार करना और उनका क्रियान्वयन करना तथा राष्ट्रीय एवं राज्य नीतियों का अनुपालन सुनिश्चित करना।
- स्थानीय प्राधिकरण: इसमें पंचायती राज संस्थाएँ, नगरपालिकाएँ, ज़िला एवं छावनी बोर्ड, तथा नगर योजना प्राधिकरण शामिल हैं। ये क्षमता निर्माण, राहत एवं पुनर्वास, तथा आपदा प्रबंधन योजनाएँ तैयार करने के लिये उत्तरदायी होते हैं।
प्रमुख संस्थान:
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (NIDM): क्षमता विकास, प्रशिक्षण, अनुसंधान और दस्तावेज़ीकरण पर ध्यान केंद्रित करता है।
- यह संस्था NDMA के दिशा-निर्देशों के अंतर्गत कार्य करती है तथा आपदा प्रबंधन में 'उत्कृष्टता केंद्र' बनने का लक्ष्य रखती है।
- राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF): रासायनिक, जैविक, रेडियोलॉजिकल तथा परमाणु आपात स्थितियों सहित प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं के लिये विशेष प्रतिक्रिया बल।
- यह NDMA के निर्देशन में कार्य करता है, तथा इसकी आठ बटालियनें विभिन्न स्थानों पर तैनात हैं।
समितियाँ:
- प्राकृतिक आपदा प्रबंधन पर मंत्रिमंडल समिति (CCMNC): प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन की देखरेख करती है, निवारक उपाय सुझाती है तथा जन जागरूकता को बढ़ावा देती है।
अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताएँ:
- आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये सेंदाई फ्रेमवर्क (SFDRR): भारत SFDRR का हस्ताक्षरकर्त्ता है जिसे मार्च 2015 में आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर तीसरे संयुक्त राष्ट्र विश्व सम्मेलन के दौरान अपनाया गया था।
- भारत व्यवस्थित एवं सतत् प्रयासों के माध्यम से इस ढाँचे के तहत निर्धारित सात लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये समर्पित है।
- ह्योगो फ्रेमवर्क फॉर एक्शन (HFA): भारत HFA का एक हस्ताक्षरकर्त्ता है, जिसे विश्व स्तर पर जीवन तथा आर्थिक एवं पर्यावरणीय संपत्तियों में आपदा हानि को कम करने के लिये अपनाया गया है।
- HFA ने तीन रणनीतिक लक्ष्य तथा पाँच प्राथमिकता वाले कार्यक्षेत्र निर्धारित किये, जिनका उद्देश्य आपदा जोखिम न्यूनीकरण को सतत् विकास नीतियों में एकीकृत करना, क्षमता निर्माण, तैयारी एवं सुभेद्यता में कमी लाना था।
निष्कर्ष :
भारत की आपदा प्रबंधन रूपरेखा व्यापक है, जो तैयारी से लेकर पुनर्निर्माण तक सभी पहलुओं को सम्मिलित करती है। हालाँकि, अधिक प्रभावी और लचीली प्रणाली सुनिश्चित करने के लिये संस्थानों को सशक्त करने, क्षमता वर्धन करने तथा प्रौद्योगिकी नवाचार को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। इन चुनौतियों का समाधान करके भारत आपदाओं के खतरों को बेहतर ढंग से कम कर सकता है और एक अधिक सशक्त और संकट-रोधी राष्ट्र का निर्माण कर सकता है। इस क्षेत्र में नीतियों एवं प्रक्रियाओं का सतत् विकास ही देश में सतत् आपदा प्रबंधन को प्राप्त करने की कुंजी होगा।