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UP PCS Mains-2024

  • 31 Mar 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    दिवस- 22: क्या नैतिक मूल्यों का ह्रास जीवन में धन और शक्ति को सर्वोपरि मानने का परिणाम है? विश्लेषण कीजिये। (125 शब्द) 

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • संक्षेप में बताइये कि ‘अच्छा जीवन’ क्या है?
    • अच्छे जीवन को धन और शक्ति के साथ तुलना करने के प्रभाव पर चर्चा कीजिये।
    • अच्छे जीवन को समझने के वैकल्पिक तरीके सुझाइये।
    • उचित रूप से निष्कर्ष दीजिये। 

    परिचय

    ‘अच्छे जीवन’ की अवधारणा को पारंपरिक रूप से सद्गुणों, नैतिक जीवन और व्यक्तिगत संतुष्टि से जोड़ा गया है। हालाँकि, समकालीन समाज में, इस अवधारणा को धन और शक्ति की प्राप्ति के साथ जोड़ा जा रहा है। इस बदलाव ने महत्त्वपूर्ण सामाजिक और नैतिक परिणामों को जन्म दिया है। 

    मुख्य भाग: 

    अच्छे जीवन को धन और शक्ति के साथ तुलना करने का प्रभाव

    •  नैतिक मूल्यों का ह्रास
      • भ्रष्टाचार: धन और शक्ति की अभिलाषा प्रायः व्यापक भ्रष्टाचार का कारण बनती है।
        • उदाहरण के लिये, 2G स्पेक्ट्रम घोटाला (वर्ष 2010) और कोयला घोटाला (वर्ष 2012) जैसे उच्च-स्तरीय भ्रष्टाचार घोटाले दर्शाते हैं कि वित्तीय लाभ की चाह किस प्रकार अनैतिक व्यवहार को जन्म दे सकती है। 
      • कॉर्पोरेट/निगमित कदाचार: सत्यम घोटाला (वर्ष 2009) जैसे कॉर्पोरेट कदाचार से यह स्पष्ट होता है कि वित्तीय सफलता की चाहत किस प्रकार धोखाधड़ी के तरीकों को जन्म दे सकती है। 
    • सामाजिक असमानता पर प्रभाव
      • धन असमानता: धन संचय पर ध्यान केंद्रित करने से भारत में आय असमानता बढ़ गई है। धनी अभिजात वर्ग और गरीब लोगों के बीच असमानता बढ़ गई है, जिसमें सबसे अमीर व्यक्ति पर्याप्त आर्थिक लाभ का आनंद ले रहे हैं जबकि आबादी का एक बड़ा हिस्सा गरीबी से जूझ रहा है। 
        • विश्व असमानता रिपोर्ट- 2022 के अनुसार, भारत विश्व के सबसे असमान देशों में से एक है, जहाँ शीर्ष 10% और शीर्ष 1% आबादी के पास कुल राष्ट्रीय आय का क्रमशः 57% एवं 22% हिस्सा है। निचले 50% का हिस्सा घटकर 13% रह गया है।
      • आर्थिक विस्थापन: बड़े पैमाने की बुनियादी अवसंरचना परियोजनाएँ, जैसे: उच्च स्तरीय आवासीय परिसरों या औद्योगिक क्षेत्रों का निर्माण, प्रायः स्थानीय समुदायों के विस्थापन एवं आर्थिक रूप से कम सुविधा प्राप्त लोगों की आजीविका के नुकसान का कारण बनती हैं।
      • कानूनी और विनियामक विफलताएँ: धनी व्यक्ति कानूनी परिणामों से बचने के लिये अपने प्रभाव का उपयोग कर सकते हैं, जैसा कि कई हाई-प्रोफाइल मामलों में देखा गया है, जहाँ प्रभावशाली व्यक्तियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई में विलंब हुआ है या समझौता किया गया है।
    • मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभाव
      • तनाव और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में वृद्धि: धन और प्रतिष्ठा की निरंतर खोज़ ने व्यक्तियों में तनाव एवं मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को बढ़ा दिया है। 
        • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वर्ष 2022 में 1.71 लाख लोगों ने आत्महत्या की। 
      • सामाजिक विखंडन: व्यक्तिगत उपलब्धियों और आर्थिक स्थिति पर बल देने से सामुदायिक बंधन व सामाजिक सामंजस्य नष्ट हो सकता है, क्योंकि व्यक्ति सामूहिक कल्याण के बजाय अपने व्यक्तिगत लाभ पर अधिक ध्यान केंद्रित करने लगते हैं।

    अच्छा जीवन और नैतिक जीवन: 

    • सद्गुण नीतिशास्त्र और अच्छा जीवन: अरस्तू द्वारा व्यक्त की गई सद्गुण नीतिशास्त्र की दार्शनिक परंपरा में अच्छा जीवन साहस, संयम, ज्ञान और न्याय जैसे गुणों के माध्यम से प्राप्त किया जाता है। एक सद्गुणी जीवन वह है जिसमें कार्य तर्क द्वारा निर्देशित होते हैं और जिसका उद्देश्य व्यापक कल्याण होता है, जिससे यूडेमोनिया (उत्कर्ष और वास्तविक आनंद की स्थिति) की प्राप्ति होती है।
    • अच्छे जीवन के प्रमुख घटकों में शामिल हैं:
      • उत्कर्ष और कल्याण: एक ऐसा जीवन जो वास्तविक संतोष और संतुष्टि लाता है।
      • नैतिक अखंडता: नैतिक सिद्धांतों और मूल्यों के अनुरूप जीवन जीना।
      • व्यक्तिगत विकास: निरंतर आत्म-सुधार और ज्ञान की खोज़।
      • मज़बूत रिश्ते: परिवार, मित्रों और समुदाय के साथ सार्थक संबंध बनाना।
      • उद्देश्य और अर्थ: ऐसी गतिविधियों में संलग्न होना जो उद्देश्य और पूर्णता की भावना में योगदान देती हैं।
      • सामाजिक उत्तरदायित्व: एक अच्छा जीवन दूसरों की भलाई से भी जुड़ा हुआ है। 

    निष्कर्ष : 

    अच्छे जीवन को धन और शक्ति के बराबर मानने से नैतिक मूल्यों का बहुत नुकसान होता है, जिसका असर व्यक्तिगत व्यवहार एवं सामाजिक मानदंडों दोनों पर पड़ता है। जैसा कि महात्मा गांधी ने सटीक रूप से कहा था, "स्वयं की खोज़ का सबसे अच्छा तरीका है दूसरों की सेवा में स्वयं को खो देना।" नैतिकता को सम्मिलित करने के लिये सफलता को पुनः परिभाषित करते हुए नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देकर, समाज अच्छे जीवन की अधिक संतुलित एवं संतुष्टिदायक अवधारणा की दिशा में काम कर सकता है।

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