UP PCS Mains-2024

दिवस- 04: "सांप्रदायिकता राष्ट्र के सामाजिक ताने-बाने के लिये खतरा उत्पन्न करती है, जबकि धर्मनिरपेक्षता इसे संतुलित करने का माध्यम है।" चर्चा कीजिये। (200 शब्द)

13 Mar 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | इतिहास

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण: 

  • सांप्रदायिकता का अर्थ परिभाषित कीजिये और बताइये कि यह सामाजिक सद्भाव के लिये किस प्रकार खतरा है।
  • धर्मनिरपेक्षता की व्याख्या कीजिये तथा बताइये कि यह सांप्रदायिकता द्वारा उत्पन्न खतरे का मुकाबला कैसे कर सकती है।
  • उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय: 

सांप्रदायिकता का व्यापक अर्थ अपने समुदाय के प्रति गहरे लगाव से है। यह एक श्रेष्ठता की भावना है, जहाँ किसी के धार्मिक हितों को दूसरों के विरोध में देखा जाता है। भारत के लोकप्रिय प्रवचन में, इसे अपने धर्म के प्रति अस्वस्थ लगाव के रूप में समझा जाता है।

सांप्रदायिकता का सकारात्मक पक्ष व्यक्ति की अपने समुदाय के प्रति आत्मीयता दर्शाता है, जिसमें उसके सामाजिक और आर्थिक विकास के लिये किये गए प्रयास शामिल होते हैं। हालाँकि नकारात्मक संदर्भ में, यह एक विचारधारा है जो किसी धार्मिक समूह की विशिष्ट पहचान को प्रमुखता देती है और दूसरों के नुकसान पर अपने हितों को बढ़ाने की प्रवृत्ति रखती है।

मुख्य भाग’: 

सांप्रदायिकता निम्नलिखित रूपों में सामाजिक ताने-बाने के लिये संभावित खतरा उत्पन्न करती है:

  • समाज में विभाजन की स्थिति उत्पन्न करना: सांप्रदायिकता को अक्सर एक राजनीतिक सिद्धांत के रूप में परिभाषित किया जाता है जो राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के लिये धार्मिक और सांस्कृतिक मतभेदों का उपयोग करता है।
  • विकास से ध्यान भटकाना: सांप्रदायिक घृणा विकास से ध्यान भटकाती है और वर्ग विभाजन को बढ़ावा देती है, जिससे गरीबी एवं बेरोज़गारी बढ़ती है। इसके परिणामस्वरूप आम आदमी में असुरक्षा की भावना गहरी होती है, जिससे वे राजनीतिक छल-कपट के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
  • तुष्टीकरण की राजनीति: राजनीतिक विचारों से प्रेरित होकर तथा अपने निहित स्वार्थों से निर्देशित होकर राजनीतिक दल ऐसे निर्णय लेते हैं जो सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा देते हैं।
  • अल्पसंख्यक बनाम बहुसंख्यक संघर्ष: दो समुदायों के बीच पारस्परिक विश्वास और आपसी समझ की कमी के कारण, अक्सर एक समुदाय में दूसरे समुदाय के प्रति खतरे, उत्पीड़न एवं भय की धारणा विकसित हो जाती है, जिससे टकराव, घृणा तथा आक्रोश की आशंका बढ़ जाती है। सार्वजनिक कार्यालयों और उद्योग में किसी एक समुदाय का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व उनके बीच सापेक्ष अभाव की भावना को जन्म देता है। यह समाज में असामंजस्य के बीज को दर्शाता है।
  • कानून और व्यवस्था की समस्या: सांप्रदायिक तनाव समाज में शांति और व्यवस्था को बिगाड़ता है। इससे प्रशासनिक मशीनरी ध्वस्त हो जाती है और इस तरह कानून एवं व्यवस्था की समस्या उत्पन्न होती है।
  • युवा मस्तिष्कों का ब्रेनवाश करना: सांप्रदायिकता का सबसे बड़ा खतरा धार्मिक प्रचार द्वारा निहित स्वार्थ के लिये युवाओं का ब्रेनवाश करना है।
  • राष्ट्रीय एकता के लिये खतरा: सांप्रदायिकता समुदाय के सदस्यों के मन में असुरक्षा और भय की भावना को बढ़ावा देती है। इससे साझा एकजुटता की ताकत कमज़ोर होती है।
  • धर्म और राजनीति का मिश्रण, यानी धर्म, जाति एवं जातीय पहचान के आधार पर वोट जुटाने की प्रवृत्ति, भारतीय धर्मनिरपेक्षता के लिये खतरा बन गई है।

जॉर्ज जैकब होलोएक ने अपनी पुस्तक 'द प्रिंसिपल्स ऑफ सेक्युलरिज़्म' में धर्मनिरपेक्षता को धर्म के प्रति तटस्थता के रूप में परिभाषित किया है, जो सत्य, ईमानदारी, सहानुभूति, अहिंसा के रूप में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता को बढ़ावा देती है। उनका कहना है कि धर्मनिरपेक्षता का मतलब है तर्कसंगतता और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना जो हठधर्मिता एवं अंधविश्वासों से मुक्त हो।

सांप्रदायिकता से उत्पन्न खतरे का समाधान धर्मनिरपेक्षता है:

  •  धर्मनिरपेक्षता पर संवैधानिक प्रावधान
    • प्रस्तावना: भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित करता है, जिसमें किसी भी धर्म को कोई वरीयता नहीं दी जाएगी।
    • अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष समानता की गारंटी देता है।
    • अनुच्छेद 15: धार्मिक आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है।
    • अनुच्छेद 25-28: सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखते हुए धर्म की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
    • 42वाँ संशोधन (1976): प्रस्तावना में स्पष्ट रूप से "धर्मनिरपेक्ष" शब्द जोड़ा गया।
  •  सांप्रदायिकता के विरुद्ध न्यायिक सुरक्षा
    • केशवानंद भारती केस (1973): धर्मनिरपेक्षता को संविधान के मूल ढाँचे के रूप में स्थापित किया गया।
    • एस.आर. बोम्मई केस (1994): इसमें निर्णय दिया गया कि धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है राज्य द्वारा सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार।
  • धर्मनिरपेक्षता को कायम रखने के लिये नीतिगत पहल
    • विशेष विवाह अधिनियम, 1954: धर्म परिवर्तन के बिना अंतर-धार्मिक विवाह की अनुमति देता है।
    • सच्चर समिति की रिपोर्ट (2006): अल्पसंख्यक समुदायों के बीच सामाजिक-आर्थिक असमानताओं पर प्रकाश डाला गया, जिससे लक्षित कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन को बढ़ावा मिला।

निष्कर्ष: 

अनुच्छेद 51A के तहत दिये गए मौलिक कर्त्तव्य सभी नागरिकों को सद्भाव और समान भाईचारे की भावना को बढ़ावा देने, हमारी मिश्रित संस्कृति की समृद्ध विरासत को महत्त्व देने एवं संरक्षित करने के लिये बाध्य करते हैं। भारतीय राजनीतिक व्यवस्था समाज के सभी वर्गों से प्रतिनिधित्व की अनुमति देती है। प्रत्येक समाज की प्रगतिशील आवाज़ को अधिक स्थान देने की आवश्यकता है। भारतीय धर्मनिरपेक्षता अपने आप में एक लक्ष्य नहीं है, बल्कि धार्मिक बहुलता को संबोधित करने और विभिन्न धर्मों के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को प्राप्त करने का एक साधन है।