19 Mar 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- दबाव समूहों का वर्णन करके शुरुआत कीजिये।
- बताइये कि वे नीति-निर्माण प्रक्रिया में किस प्रकार सहायता करते हैं और किस प्रकार बाधा डालते हैं।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
दबाव समूह या हित समूह, ऐसे लोगों के समूह द्वारा गठित संगठन हैं जो एक समान हित या लक्ष्य साझा करते हैं और सार्वजनिक नीति-निर्णयों को प्रभावित करना चाहते हैं। ये समूह प्रायः लॉबिंग, जन अभियान और समर्थन के माध्यम से नीति-निर्माताओं को प्रभावित कर अपने विशेष उद्देश्यों को आगे बढ़ाने का प्रयास करते हैं। वे राजनीतिक दल से अलग हैं क्योंकि वे न तो चुनाव लड़ते हैं और न ही राजनीतिक सत्ता हासिल करने में रुचि रखते हैं।
मुख्य भाग:
दबाव समूहों के प्रकार: अपने संगठन और कार्यों के आधार पर दबाव समूह विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं, जैसे:
- संस्थागत दबाव समूह
- एसोसिएशन संबंधी दबाव समूह
- अनोमिक दबाव समूह
भारत में विभिन्न प्रकार के दबाव समूह उभरे हैं जैसे व्यापारिक समूह, ट्रेड यूनियन, पेशेवर समूह, छात्र समूह, धार्मिक समूह आदि।
दबाव समूह नीति-निर्माण प्रक्रिया में कई तरीकों से सहायता कर सकते हैं:
- विशिष्ट हितों का प्रतिनिधित्व: दबाव समूह समाज के विशिष्ट वर्गों की आवाज़ के रूप में काम करते हैं, जिनका अन्यथा प्रतिनिधित्व नहीं हो पाता। वे अपने सदस्यों की चिंताओं और ज़रूरतों का समर्थन करते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि नीति-निर्माता उनके दृष्टिकोणों से अवगत हों और नीतियाँ बनाते समय उन्हें ध्यान में रखें।
- विशेषज्ञता और शोध: उनके पास अपनी रुचि के क्षेत्रों से संबंधित विशिष्ट ज्ञान और विशेषज्ञता होती है। वे शोध भी करते हैं, डेटा इकट्ठा करते हैं और नीति-निर्माताओं को मूल्यवान जानकारी एवं विश्लेषण प्रदान करते हैं। यह विशेषज्ञता अधिक सूचित और प्रभावी नीतिगत निर्णय लेने में योगदान देती है।
- जनमत जुटाना: वे जनता का समर्थन जुटाते हैं और मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाते हैं। वे जनता का ध्यान आकर्षित करने और नीति-निर्माताओं पर दबाव बनाने के लिये सार्वजनिक अभियान, रैलियाँ एवं ज़मीनी स्तर पर आयोजन करते हैं।
- नीति-निर्माण में सहायता: भारतीय चिकित्सा संघ, बार काउंसिल ऑफ इंडिया आदि जैसे कई दबाव समूह अपने क्षेत्र विशेष के ज्ञान के माध्यम से नीति-निर्माण में सहायता करते हैं, जो अन्यथा विधि निर्माता के पास नहीं होता है।
- फीडबैक तंत्र: ये समूह सरकार के लिये फीडबैक तंत्र के रूप में कार्य करते हैं तथा किसी भी कानून एवं अधिनियम के बारे में जनता से बहुमूल्य सुझाव प्रदान करते हैं।
हालाँकि दबाव समूह कुछ तरीकों से नीति-निर्माण प्रक्रिया में बाधा भी डाल सकते हैं:
- संकीर्ण हितों का प्रभाव: कुछ दबाव समूह संकीर्ण या विशेष हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा अपने सदस्यों की चिंताओं को व्यापक सार्वजनिक हितों से अधिक प्राथमिकता देते हैं।
- असमान पहुँच और प्रभाव: अधिक संसाधनों और नीति-निर्माताओं तक अधिक पहुँच वाले दबाव समूहों का नीतिगत निर्णयों पर असंगत प्रभाव हो सकता है। इससे असमान खेल का मैदान बन सकता है, जहाँ महत्त्वपूर्ण वित्तीय संसाधनों या कनेक्शन वाले समूह अपने लाभ के लिये नीतियों को आकार दे सकते हैं, जिससे कम संगठित या कम संपन्न समूहों की आवाज़ें हाशिये पर जा सकती हैं।
- विखंडन और गतिरोध: विभिन्न हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले अनेक दबाव समूहों की उपस्थिति के कारण, नीति-निर्माताओं को परस्पर विरोधी मांगों को संतुलित करने और सहमति के आधार तलाशने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। यह विखंडन नीतिगत गतिरोध या निर्णय लेने में देरी का कारण बन सकता है, क्योंकि विभिन्न समूह अलग-अलग दिशाओं में दबाव डालते हैं।
- राजनीतिक संबद्धता: अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कॉन्ग्रेस (AITUC), अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP), हिंद मज़दूर सभा (HMS), भारतीय मज़दूर संघ (BMS) आदि जैसे दबाव समूह राजनीतिक संबद्धता साझा करते हैं, इसलिये कभी-कभी वे नीति-निर्माण एवं उसके कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न करते हैं।
- उग्रवाद का प्रचार करना: दबाव समूह अनिर्वाचित उग्रवादी अल्पसंख्यक समूहों को सरकार पर बहुत अधिक प्रभाव डालने की अनुमति दे सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अलोकप्रिय परिणाम सामने आ सकते हैं।
निष्कर्ष:
यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि नीति-निर्माण पर दबाव समूहों का प्रभाव राजनीतिक व्यवस्था, समूह की ताकत और सामने मौजूद विशिष्ट मुद्दे के आधार पर अलग-अलग होता है। अलग-अलग संदर्भों में उनकी सहायता या बाधा की सीमा अलग-अलग हो सकती है।