-
10 Mar 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 1
संस्कृति
दिवस- 01: भारत में "वसुधैव कुटुम्बकम्" की भावना को परिलक्षित करने वाले सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं की विवेचना कीजिये। (200 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- वसुधैव कुटुम्बकम् के विचार के बारे में संक्षेप में बताइये।
- भारतीय समाज किस प्रकार वसुधैव कुटुम्बकम् के विचार को प्रतिबिंबित करता है, समझाइये।
- विचार की प्रासंगिकता बताकर निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
वसुधैव कुटुम्बकम् एक संस्कृत वाक्यांश है जो महा उपनिषद जैसे हिंदू ग्रंथों में पाया जाता है, जिसका अर्थ है “पूरा विश्व एक परिवार है”। वैदिक परंपरा में, वसुधैव कुटुम्बकम् का अर्थ है कि पृथ्वी पर सभी जीवित प्राणी एक परिवार हैं।
भारत की G-20 अध्यक्षता का विषय भी वसुधैव कुटुम्बकम् या "एक पृथ्वी · एक परिवार · एक भविष्य" के विचार से प्रेरित है। यह विषय सभी जीवन - मानव, पशु, पौधे और सूक्ष्मजीवों - के मूल्य एवं पृथ्वी ग्रह तथा व्यापक ब्रह्मांड में उनके परस्पर संबंध की पुष्टि करता है।
मुख्य भाग:
भारतीय समाज के निम्नलिखित पहलू वसुधैव कुटुम्बकम् के विचार को प्रकट करते हैं:
- मानवतावाद में विश्वास: भारतीय परंपरा तुलसीदास के 'परहित सरिस धर्म नहीं भाई' के विचार पर आधारित है, जिसमें संपूर्ण मानवता के कल्याण पर ज़ोर दिया गया है और विवेकानंद का मानव सेवा का विचार ईश्वर की सेवा है। यह भावना भारत की मानवीय सहायता और आपदा राहत कार्यक्रम में परिलक्षित होती है।
- उदाहरण के लिये, भूकंप के बाद सीरिया और तुर्की की सहायता के लिये 'ऑपरेशन दोस्त', वैक्सीन मैत्री, जिसके तहत भारत ने कम विकसित देशों को टीके वितरित किये।
- सहिष्णुता की भावना: सहिष्णुता की भावना भारतीय समाज में निहित है। प्राचीन काल में अशोक की धम्म नीति ने विभिन्न धार्मिक संप्रदायों के बीच सहिष्णुता की बात की और युद्ध एवं विजय की नीति को त्याग दिया।
- इसी तरह, मध्यकालीन युग के दौरान, अकबर की सुलह-ए-कुल नीति सार्वभौमिक शांति का समर्थन करती थी। ये नीतियाँ भारत की उस भावना को दर्शाती हैं जहाँ वह दुनिया को एक परिवार के रूप में देखता है।
- अंतर्राष्ट्रीय शांति के प्रति प्रतिबद्धता: भारतीय संविधान में निहित अनुच्छेद 51 अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा तथा अंतर्राष्ट्रीय कानूनों एवं संधियों का सम्मान करने की बात करता है। यह अंतर्राष्ट्रीय शांति और व्यवस्था के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- अध्यात्मवाद पर ध्यान: विश्व धर्म संसद (1893), शिकागो में, स्वामी विवेकानंद ने मानव जाति के लिये सद्भाव और प्रसन्नता उत्पन्न करने के लिये पश्चिम के भौतिकवाद को पूर्व के अध्यात्मवाद के साथ मिश्रित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
- वैश्विक चुनौतियों के प्रति चिंता: भारत के पास नस्लीय घृणा, आतंकवाद, गरीबी और मानवाधिकार हिंसा जैसी आम वैश्विक चुनौतियों का जवाब है। भारत हमेशा से निरस्त्रीकरण, रंगभेद को समाप्त करने और उपनिवेशवाद के उन्मूलन के लिये मुखर रहा है।
- चाहे वह मार्टिन लूथर किंग जूनियर, जो अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन के अग्रणी नेता थे, या नेल्सन मंडेला, जिन्होंने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ संघर्ष किया—दोनों ही गांधीवादी सिद्धांतों से प्रेरित थे।
- जलवायु परिवर्तन: भारत की प्राचीन परंपराएँ, जहाँ प्रकृति को माता के रूप में पूजनीय माना जाता है, जलवायु परिवर्तन जैसी गंभीर वैश्विक समस्या के समाधान के लिये मूल्यवान मार्गदर्शन प्रदान करती हैं।
- भारत में नर्मदा बचाओ आंदोलन और चिपको आंदोलन जैसे कई पर्यावरण आंदोलन हुए हैं जो प्रकृति संरक्षण के क्षेत्र में भारत की भावना को दर्शाते हैं।
- वैश्विक मंचों पर भारत ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन और आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन के रूप में विभिन्न पहल की हैं।
- विविधता में एकता का संदेश: वर्तमान परिदृश्य में दुनिया भर में असहिष्णुता और उग्रवाद बढ़ रहा है तथा गृहयुद्ध चल रहे हैं। भारतीय विविधता में एकता का मॉडल, जहाँ धार्मिक, सांस्कृतिक और भाषाई विविधता के बावजूद सद्भाव बना रहता है, विश्व शांति के लिये एक अनुकरणीय मार्ग प्रस्तुत करता है।
- 'सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया': यह विचार इस ग्रह पर रहने वाले प्रत्येक मनुष्य की प्रसन्नता और कल्याण का समर्थन करता है। यह करुणा, ज़रूरतमंदों की सहायता करने, छोटे देशों की क्षमता निर्माण के सिद्धांतों पर आधारित है।
- उदाहरण के लिये, भारत की SAGAR पहल के माध्यम से हिंद महासागर क्षेत्र में मानवीय सहायता और आपदा राहत अभियान।
निष्कर्ष:
आज के परिप्रेक्ष्य में, जब विश्व आतंकवाद, उग्रवाद, नस्लीय घृणा, जलवायु परिवर्तन, शरणार्थी संकट, धार्मिक कट्टरवाद और महामारी जैसी साझा वैश्विक चुनौतियों का सामना कर रहा है, तो वसुधैव कुटुम्बकम् का विचार प्रासंगिक प्रतीत होता है।