-
25 Mar 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 3
अर्थव्यवस्था
दिवस-16: भारतीय अर्थव्यवस्था में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र एक "उभरते हुए उद्योग" के रूप में विकसित हो रहा है, जिसमें रोज़गार सृजन और ग्रामीण गरीबी उन्मूलन की व्यापक संभावनाएँ हैं। इस संदर्भ में, इस क्षेत्र की प्रमुख चुनौतियों और आवश्यक नीतिगत उपायों का विश्लेषण कीजिये। (200 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- खाद्य प्रसंस्करण पर चर्चा से शुरुआत कीजिये।
- इसकी क्षमता पर प्रकाश डालिये।
- चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
- सरकार के उपायों का उल्लेख कीजिये।
- आगे की राह बताकर निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
खाद्य प्रसंस्करण में आम तौर पर खाद्य पदार्थों की बुनियादी तैयारी, खाद्य उत्पादों में मूल्य संवर्द्धन, संरक्षण और पैकेजिंग तकनीकें शामिल होती हैं। इसमें खेत से लेकर उपभोक्ता की थाली तक होने वाली सभी प्रक्रियाएँ शामिल होती हैं। भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को एक उभरता हुआ क्षेत्र माना जाता है, जो देश के कुल खाद्य बाज़ार का 32% हिस्सा है।
मुख्य भाग:
भारत में खाद्य प्रसंस्करण की अपार संभावनाएँ हैं:
- भारत में विविध कृषि जलवायु क्षेत्र हैं जो इसे विभिन्न प्रकार के कृषि उत्पादों का उत्पादन करने में सक्षम बनाते हैं।
- विभिन्न कृषि उत्पादों के उच्च मूल्य प्रसंस्करण, बढ़ते शहरीकरण, बढ़ती प्रयोज्य आय, एकल परिवारों की वृद्धि और सुविधाजनक भोजन की मांग से प्रेरित होकर, भारत का खाद्य प्रसंस्करण उद्योग 535 बिलियन डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
- खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र भारतीय सकल घरेलू उत्पाद में 12.8% का योगदान देता है और कुल रोज़गार में 11.6% की हिस्सेदारी प्रदान करता है। इस क्षेत्र से वर्ष 2024 तक 9 मिलियन रोज़गार उत्पन्न होने की उम्मीद है।
- भारत विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक तथा फलों और सब्ज़ियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
- भारत की युवा जनसांख्यिकी खाद्य प्रसंस्करण में निवेश का अवसर प्रदान करती है।
- इसके समुद्री, मुर्गीपालन और मांस उद्योग फल-फूल रहे हैं तथा उत्पादन में विश्व में अग्रणी हैं।
- कोविड-19 महामारी ने ग्राहकों की प्राथमिकताओं को ब्रांडेड पैकेज्ड सामानों की ओर स्थानांतरित करके और स्वस्थ जीवन शैली को बढ़ावा देकर विकास को और बढ़ावा दिया है।
- इसके अतिरिक्त, बाजरे के बारे में जागरूकता उत्पन्न करने तथा इसके उत्पादन एवं खपत को बढ़ाने के उद्देश्य से, भारत सरकार के अनुरोध पर संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष घोषित किया है।
भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के सामने चुनौतियाँ:
- आपूर्ति शृंखला कुप्रबंधन: खंडित जोतों के कारण छोटे और बिखरे हुए विपणन योग्य अधिशेष, मशीनीकरण की कमी के कारण कम कृषि उत्पादकता, उच्च मौसमीता, खराब होने की संभावना एवं उचित मध्यस्थता (आपूर्ति शृंखला) की कमी के परिणामस्वरूप कच्चे माल की उपलब्धता में कमी आती है। यह बदले में खाद्य प्रसंस्करण और इसके निर्यात में बाधा डालता है। प्रसंस्कृत खाद्य की मांग मुख्य रूप से भारत के शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित है।
- बुनियादी ढाँचे की कमी: अपर्याप्त कोल्ड चेन बुनियादी ढाँचे के कारण खेत से 30% से अधिक उपज नष्ट हो जाती है। नीति आयोग ने एक अध्ययन का हवाला दिया जिसमें अनुमान लगाया गया है कि वार्षिक कटाई के बाद का नुकसान करीब 90,000 करोड़ रुपए है। सभी मौसमों के लिये उपयुक्त सड़कों और कनेक्टिविटी की कमी से आपूर्ति अनिश्चित हो जाती है।
- खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में अनौपचारिकीकरण: खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में असंगठित क्षेत्रों की उच्च सांद्रता है, जो सभी उत्पाद श्रेणियों में लगभग 75% का प्रतिनिधित्व करती है। इस प्रकार, मौजूदा उत्पादन प्रणाली में अक्षमताएँ उत्पन्न होती हैं।
- कुशल और प्रशिक्षित जनशक्ति की कमी: चूँकि खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में कई पहलू और गतिविधियाँ शामिल हैं, इसलिए ऐसे कई क्षेत्र हैं जिनमें विशिष्ट कौशल एवं ज्ञान की आवश्यकता होती है। खाद्य पदार्थों को उनके कच्चे रूप में इकट्ठा करना और परिवहन करना, प्रसंस्करण, पैकेजिंग, प्रशीतन, डिब्बाबंदी, परिवहन एवं बहुत कुछ को कुशलतापूर्वक संभालने के लिये पर्याप्त ज्ञान की आवश्यकता होती है।
- अपर्याप्त गुणवत्ता नियंत्रण: खाद्य उद्योग अत्यधिक संवेदनशील उत्पादों से निपटते हैं, जिन्हें कच्चे माल की सोर्सिंग से लेकर तैयार माल के वितरण तक नियमित निरीक्षण और गुणवत्ता नियंत्रण की आवश्यकता होती है। गुणवत्ता नियंत्रण सीधे उपभोक्ताओं की संतुष्टि, ब्रांड की प्रतिष्ठा और कंपनी की अंतिम पंक्ति को प्रभावित करता है। भारत के निर्यात को स्वच्छता और फाइटोसैनिटरी उपायों के रूप में वैश्विक बाज़ार में बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
सरकार ने खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में निम्नलिखित पहल की हैं:
- प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना (कृषि-समुद्री प्रसंस्करण और कृषि प्रसंस्करण क्लस्टरों के विकास के लिये योजना): इसमें मेगा फूड पार्क, एकीकृत कोल्ड चेन आदि सहित सात घटक योजनाएँ थीं।
- प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यम औपचारिकीकरण योजना: यह योजना आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत शुरू की गई थी जिसका उद्देश्य खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के असंगठित क्षेत्र में मौजूदा व्यक्तिगत सूक्ष्म उद्यमों की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाना और इस क्षेत्र के औपचारिकीकरण को बढ़ावा देना है। इस योजना का विशेष ध्यान कृषि-खाद्य प्रसंस्करण में लगे समूहों जैसे किसान उत्पादक संगठन (FPO), स्वयं सहायता समूह (SHG) और उत्पादक सहकारी समितियों को उनकी संपूर्ण मूल्य शृंखला के साथ सहायता प्रदान करने पर है।
- खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिये उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना: सरकार ने भारत के प्राकृतिक संसाधन के अनुरूप वैश्विक खाद्य विनिर्माण चैंपियनों के निर्माण का समर्थन करने और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में खाद्य उत्पादों के भारतीय ब्रांडों का समर्थन करने के लिये 10900 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ केंद्रीय क्षेत्र की योजना को मंज़ूरी दी है।
- एक ज़िला एक उत्पाद (ODOP): इसका उद्देश्य देश के सभी ज़िलों में संतुलित क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देने के लिये सरकार के दृष्टिकोण को साकार करना है। इसका उद्देश्य देश के प्रत्येक ज़िले से एक उत्पाद का चयन, ब्रांडिंग और प्रचार करना है। इसका उद्देश्य विनिर्माण और निर्यात को बढ़ावा देने एवं रोज़गार उत्पन्न करने के लिये ज़िले में निवेश आकर्षित करना है।
- ऑपरेशन ग्रीन: केंद्रीय बजट 2018-19 के बजट भाषण में किसान उत्पादक संगठनों, कृषि-लॉजिस्टिक्स, प्रसंस्करण सुविधाओं और पेशेवर प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिये 500 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ एक नई योजना “ऑपरेशन ग्रीन्स” की घोषणा की गई थी। तद्नुसार, सरकार टमाटर, प्याज़ और आलू (TOP) मूल्य शृंखला के विकास के लिये योजना को लागू कर रही है जिसे अब सभी फलों और सब्ज़ियों (कुल) तक विस्तारित किया गया है।
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में छूट: खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के लिये स्वचालित मार्ग के तहत 100% FDI अनुमोदन की अनुमति दी गई है।
निष्कर्ष:
भारत के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की विकास यात्रा में तीन प्रमुख कारक महत्त्वपूर्ण होंगे- पहला, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और पौष्टिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का उत्पादन करने के लिये मज़बूत पिछड़े लिंक की स्थापना; दूसरा, वित्तीय संसाधनों तक बेहतर पहुँच; और तीसरा, लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता।
भारत का खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था का एक चमकता हुआ स्तंभ है। इस क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने से बुनियादी ढाँचे का विकास, रोज़गार सृजन, आपूर्ति शृंखला प्रबंधन और भारतीय उत्पादों का भारी निर्यात होगा एवं इस प्रकार भारत वास्तव में 'आत्मनिर्भर' बनेगा।