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UP PCS Mains-2024

  • 17 Mar 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस- 8: केंद्र-राज्य वित्तीय संबंधों से जुड़े संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या कीजिये। साथ ही, केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय संतुलन सुनिश्चित करने में वित्त आयोग की भूमिका का विश्लेषण कीजिये। (200 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • अपने उत्तर की शुरुआत केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय संबंधों से जुड़े लेखों का उल्लेख करके कीजिये।
    • वित्त आयोग द्वारा इसके समाधान के लिये उठाए गए कदमों और मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
    • सकारात्मक निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय: 

    संविधान के भाग XII में अनुच्छेद 268 से 293 तक केंद्र-राज्य वित्तीय संबंधों से संबंधित हैं। इनके अतिरिक्त, भारतीय संविधान की 7 वीं अनुसूची केंद्र और राज्यों को आवंटित कई विषयों से संबंधित है जो उनके बीच वित्तीय संबंधों से संबंधित हैं।

    मुख्य भाग: 

    केंद्र-राज्य वित्तीय संबंधों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान

    • वित्त आयोग: अनुच्छेद 280 के अंतर्गत वित्त आयोग का प्रावधान है जो केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व वितरण के सिद्धांतों का सुझाव देने के लिये ज़िम्मेदार है।

    कर लगाने की शक्ति का आवंटन:

    • संसद को संघ सूची में सूचीबद्ध विषयों और अवशिष्ट विषयों पर कर लगाने का विशेष अधिकार है।
    • राज्य विधानमंडल को राज्य सूची में सूचीबद्ध विषयों पर कर लगाने का विशेष अधिकार है।
    • संघ और राज्य दोनों समवर्ती सूची में सूचीबद्ध विषयों पर कर लगा सकते हैं।

    कर राजस्व का वितरण:

    • अनुच्छेद 268: संघ द्वारा लगाए गए कर लेकिन राज्यों द्वारा संग्रहित और विनियोजित। इसके अंतर्गत प्राप्त आय राज्य की समेकित निधि का हिस्सा बनती है। उदाहरण: स्टाम्प शुल्क, उत्पाद शुल्क।
    • अनुच्छेद 269: संघ द्वारा लगाए और एकत्र किये जाने वाले कर, लेकिन राज्यों को सौंपे गए। उदाहरण: अंतर-राज्यीय व्यापार के दौरान माल (समाचार-पत्रों के अलावा) की बिक्री या खरीद पर कर। 
    • अनुच्छेद 270: संघ और राज्यों के बीच लगाए जाने वाले और वितरित किये जाने वाले कर। इन करों के वितरण का मामला वित्त आयोग की सिफारिश के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित किया जाता है।

    राज्यों को सहायता अनुदान:

    • वैधानिक अनुदान (अनुच्छेद 275): यह संसद को उन राज्यों को अनुदान देने का अधिकार देता है जिन्हें वित्तीय सहायता की आवश्यकता है, न कि प्रत्येक राज्य को।
    • विवेकाधीन अनुदान (अनुच्छेद 282): यह केंद्र और राज्यों दोनों को किसी भी सार्वजनिक उद्देश्य के लिये अनुदान देने का अधिकार देता है, भले ही वह उनकी विधायी क्षमता के अंतर्गत न हो।
    • GST परिषद: 101वाँ संशोधन अधिनियम 2016 ने वस्तु एवं सेवा कर (GST) की शुरुआत की और विचार-विमर्श तथा संयुक्त निर्णय लेने के लिये अनुच्छेद 279A के तहत GST परिषद की स्थापना का प्रावधान किया।

    केंद्र-राज्य वित्तीय संबंधों में मुद्दे:

    • वस्तु एवं सेवा कर (GST) लागू होने से राज्यों की कराधान शक्ति कम हो गई है, जिससे वे वित्त के लिये केंद्र पर अधिक निर्भर हो गए हैं। उदाहरण के लिये, GST क्षतिपूर्ति, एकीकृत GST (IGST) आदि जैसे फंड ट्रांसफर में देरी।
    • उपकर विभाज्य पूल का हिस्सा नहीं बनता है और इससे राज्य के वित्तीय संसाधन कम हो जाते हैं।
    • GST परिषद कर निर्धारण के ऐसे निर्णय लेती है जो पहले राज्यों द्वारा स्वतंत्र रूप से लिये जाते थे। इससे अप्रत्यक्ष करों से संबंधित राज्यों की कर लगाने की शक्ति कम हो गई है।
    • क्षैतिज असंतुलन और बढ़ती क्षेत्रीय असमानताएँ अपर्याप्त वित्त प्रशासन का परिणाम हैं।
    • केंद्र सरकार राज्यों को प्रत्यक्ष वित्तीय हस्तांतरण के रूप में केंद्र प्रायोजित योजनाओं (CSS) और केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं (CS) का उपयोग करती है, जिससे उनकी राजकोषीय प्राथमिकताएँ प्रभावित होती हैं। यह दृष्टिकोण राज्यों को केंद्रीय निधियों के साथ-साथ समकक्ष वित्तीय संसाधनों के लिये प्रतिबद्ध होने के लिये बाध्य करता है।

    केंद्र-राज्य संबंधों के बीच राजकोषीय मुद्दे को संबोधित करने में वित्त आयोग की भूमिका:

    • 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर राज्यों को कर में अधिक हिस्सेदारी 32% से बढ़ाकर 42% कर दी गई। (15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार अब इसे 41% कर दिया गया है)
    • राज्यों द्वारा अपनी जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिये किये गए प्रयासों को पुरस्कृत करने के लिये जनसांख्यिकी प्रदर्शन मानदंड की शुरुआत की गई है।
    • राज्यों को प्रदर्शन आधारित अनुदान के माध्यम से राजकोषीय अनुशासन बनाए रखने के लिये प्रोत्साहित करता है। विद्युत क्षेत्र में सुधार, व्यापार करने में आसानी और डिजिटल शासन के लिये प्रोत्साहन
    • सीमा सुरक्षा, पहाड़ी क्षेत्र विकास और जनजातीय कल्याण जैसी विशिष्ट राज्य आवश्यकताओं को संबोधित करना।
    • पंचायती राज संस्थाओं और शहरी स्थानीय निकायों को मज़बूत बनाता है।
    • आपदा तैयारी और राहत प्रयासों के लिये धन आवंटित करता है।

    निष्कर्ष: 

    विधायी और कार्यकारी क्षेत्रों की तरह ही, वित्तीय क्षेत्र में भी केंद्र सरकार राज्यों से अधिक शक्तिशाली है। केंद्र और राज्य दोनों की नीतियों को लागू करने में राज्यों की महत्त्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए केंद्र तथा राज्य के बीच सुचारु वित्तीय संबंध जनता के कल्याण के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।

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