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11 Mar 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 1
इतिहास
दिवस- 02: द्वितीय विश्व युद्ध के कारणों का विश्लेषण कीजिये, जिसमें प्रथम विश्व युद्ध के बाद राष्ट्रों द्वारा की गई नीतिगत गलतियाँ और उनके प्रभाव शामिल हों। (125 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- द्वितीय विश्व युद्ध के बारे में तथ्य बताकर शुरुआत कीजिये।
- उन घटनाक्रमों की सूची बनाइये जिनके कारण युद्ध हुआ।
- युद्ध के बाद बनी विश्व व्यवस्था का उल्लेख करते हुए निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
द्वितीय विश्व युद्ध एक ऐसा संघर्ष था जिसमें 1939-45 के दौरान दुनिया का लगभग हर हिस्सा शामिल था। मुख्य युद्धरत देश धुरी राष्ट्र थे - जर्मनी, इटली और जापान - एवं मित्र राष्ट्र - फ्राँस, ग्रेट ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ। दूसरा विश्व युद्ध पश्चिमी शक्तियों की गलत गणना और अवसरवाद का परिणाम था।
मुख्य भाग:
द्वितीय विश्व युद्ध के प्रमुख कारण थे:
- वर्साय की संधि 1919: इसमें जर्मनी और संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्राँस तथा यूनाइटेड किंगडम के नेतृत्व वाले विजयी मित्र राष्ट्रों के बीच शांति की शर्तें निर्धारित की गईं।
- इस संधि के तहत, जर्मनी को युद्ध की ज़िम्मेदारी स्वीकार करनी पड़ी और भारी हर्जाना चुकाना पड़ा। इसके अलावा, उसे अपने लगभग 10 प्रतिशत भू-भाग से हाथ धोना पड़ा और बड़ी सेना रखने पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
- इस संधि के तहत जर्मनी को मिले अपमानजनक प्रतिबंधों ने देश में उग्र-राष्ट्रवाद के विस्तार की ज़मीन तैयार की।
- राष्ट्र संघ की विफलता: यह वर्ष 1919 में विश्व शांति बनाए रखने के लिये स्थापित एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन था। इसका लक्ष्य था कि सभी देश इसकी सदस्यता लें और आपसी विवादों को बल प्रयोग के बजाय बातचीत के माध्यम से सुलझाएँ।
- यह एक प्रभावी विचार था, लेकिन अंततः असफल रहा क्योंकि संयुक्त राज्य अमेरिका सहित सभी देश इसमें शामिल नहीं हुए।
- इसके अलावा, लीग के पास सैन्य आक्रमणों को रोकने की कोई प्रभावी शक्ति नहीं थी, जैसा कि अफ्रीका में इटली द्वारा इथियोपिया पर और चीन में जापान द्वारा मंचूरिया पर किये गए आक्रमणों में देखा गया।
- 1929 की महामंदी: 1930 के दशक की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी ने यूरोप और एशिया में इतिहास की भावी दिशा को आकार दिया। आर्थिक अस्थिरता ने दुनिया के कई हिस्सों में राजनीतिक अस्थिरता को उत्पन्न कर दिया।
- राजनीतिक अस्थिरता ने जर्मनी में एडोल्फ हिटलर के उदय और जापान में सैन्य शासन जैसी तानाशाही व्यवस्थाओं के मार्ग को प्रशस्त किया।
- फासीवाद का उदय: 1920 के दशक में राष्ट्रवादी और सैन्यवादी अधिनायकवाद का उदय हुआ। वर्ष 1922 में, बेनिटो मुसोलिनी ने इटली में पहली फासीवादी यूरोपीय तानाशाही की नींव रखी।
- नाज़ीवाद का उदय: जर्मन नेशनल सोशलिस्ट (नाज़ी) पार्टी के नेता एडोल्फ हिटलर ने नस्लवादी फासीवाद को बढ़ावा दिया। उन्होंने वर्साय संधि को समाप्त करने, जर्मनी की समृद्धि और गौरव बहाल करने तथा जर्मन लोगों के लिये अधिक लेबेन्सराउम (रहने की जगह) सुनिश्चित करने का वादा किया।
- तुष्टिकरण की नीति: हिटलर ने वर्साय संधि की खुलकर आलोचना की और गुप्त रूप से जर्मनी की सैन्य शक्ति एवं हथियारों के निर्माण को बढ़ावा दिया। हालाँकि ब्रिटेन और फ्राँस को हिटलर की हरकतों के बारे में पता था, लेकिन उन्हें लगा कि एक मज़बूत जर्मनी रूस से साम्यवाद के प्रसार को रोक देगा।
- तुष्टिकरण का एक उदाहरण वर्ष 1938 का म्यूनिख समझौता था। इस समझौते में ब्रिटेन और फ्राँस ने जर्मनी को चेकोस्लोवाकिया के उन इलाकों पर कब्ज़ा करने की अनुमति दी थी, जहाँ जर्मन-भाषी लोग रहते थे। जर्मनी ने चेकोस्लोवाकिया के बाकी हिस्सों या किसी दूसरे देश पर आक्रमण न करने पर सहमति जताई थी।
- मार्च 1939 में, जर्मनी ने अपना वादा तोड़ते हुए चेकोस्लोवाकिया के शेष हिस्सों पर आक्रमण कर दिया। इसके बावजूद, ब्रिटेन और फ्राँस सैन्य कार्रवाई करने के लिये तैयार नहीं थे।
निष्कर्ष:
इन कारकों के परिणामस्वरूप द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया। युद्ध की समाप्ति के साथ द्विध्रुवीय विश्व व्यवस्था अस्तित्व में आई, जिसमें USA और USSR प्रमुख शक्ति केंद्र बनकर उभरे। द्वितीय विश्व युद्ध की घटनाओं के परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्र की स्थापना हुई, विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के रूप में एक नई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था बनी तथा अफ्रीका व एशिया में उपनिवेशवाद का उन्मूलन हुआ।