11 Apr 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | साइंस और टेक्नोलॉजी
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- परिचय में, जैव प्रौद्योगिकी और इसके अनुप्रयोगों का संक्षिप्त अवलोकन प्रदान कीजिये।
- विभिन्न क्षेत्रों में जैव प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग के प्रमुख क्षेत्रों पर प्रासंगिक उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
जैव प्रौद्योगिकी विभिन्न चुनौतियों के समाधान विकसित करने के लिये जैविक प्रणालियों का उपयोग करती है। यह कृषि, अपशिष्ट प्रबंधन, जैवविविधता संरक्षण, स्वच्छ ऊर्जा और प्रदूषण नियंत्रण जैसे क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह मॉडल उत्तर भारत से उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कृषि, पर्यावरण और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में जैव प्रौद्योगिकी के व्यावहारिक अनुप्रयोगों की पड़ताल करता है।
मुख्य भाग:
कृषि में जैव प्रौद्योगिकी:
- आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलें: भारत में बीटी कपास ने कीटनाशक के उपयोग को सफलतापूर्वक कम किया है और पैदावार में वृद्धि की है, जिससे किसानों को काफी लाभ हुआ है।
- सूखा प्रतिरोधी फसलें: ICAR द्वारा विकसित सूखा प्रतिरोधी मक्का की किस्में भारत के शुष्क क्षेत्रों में पानी की कमी से निपटने में मदद करती हैं, जिससे सतत् खेती को बढ़ावा मिलता है।
- जैवउर्वरक एवं जैवकीटनाशक: ICAR द्वारा विकसित पूसा डीकंपोजर प्रौद्योगिकी फसल अवशेषों को जैविक खाद में परिवर्तित करती है, जिससे पर्यावरण अनुकूल खेती को बढ़ावा मिलता है और प्रदूषण में कमी आती है।
अपशिष्ट प्रबंधन में जैव प्रौद्योगिकी:
- जैव-उपचार: जैव-उपचार का उपयोग मुंबई जैसे तटीय क्षेत्रों में तेल रिसाव को साफ करने और दिल्ली जैसे शहरों में औद्योगिक अपशिष्टों के उपचार के लिये किया गया है।
- अपशिष्ट से ऊर्जा: उद्योग बायोगैस उत्पन्न करते समय अपशिष्ट के उपचार के लिये बायोरिएक्टर का उपयोग करते हैं, जिसका उपयोग ऊर्जा उत्पादन के लिये किया जाता है, जो जैव प्रौद्योगिकी और अपशिष्ट प्रबंधन के बीच तालमेल को दर्शाता है।
जैवविविधता संरक्षण में जैव प्रौद्योगिकी:
- लुप्तप्राय प्रजातियों का संरक्षण: भारत में प्रोजेक्ट टाइगर पहल बाघों की आबादी पर नज़र रखने और उनके आवासों को संरक्षित करने के लिये जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग करती है। DNA विश्लेषण प्रजातियों की आनुवंशिकी को समझने और अवैध शिकार को रोकने में सहायता करता है।
- प्रजातियों की पहचान के लिये DNA बारकोडिंग: वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो अवैध वन्यजीव व्यापार पर नज़र रखने के लिये DNA बारकोडिंग का उपयोग करता है, जिससे भारतीय गैंडे जैसी प्रजातियों का बेहतर संरक्षण सुनिश्चित होता है।
स्वच्छ ऊर्जा में जैव प्रौद्योगिकी:
- जैव ईंधन उत्पादन: राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति बायोएथेनॉल और जैवडीज़ल उत्पादन को बढ़ावा देती है।
- उदाहरण के लिये, बिहार गन्ने से बायोएथेनॉल का उत्पादन करता है, जो स्वच्छ ईंधन विकल्पों में योगदान देता है।
- शैवाल आधारित जैव ईंधन: IIT मद्रास वैकल्पिक स्वच्छ ऊर्जा स्रोत के रूप में शैवाल आधारित जैव ईंधन पर शोध कर रहा है, जिसका उद्देश्य जीवाश्म ईंधन पर भारत की निर्भरता को कम करना है।
प्रदूषण नियंत्रण में जैव प्रौद्योगिकी:
- वायु प्रदूषण नियंत्रण: नई दिल्ली जैसे शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण को कम करने के उद्देश्य से, NOx और SO₂ जैसे हानिकारक वायु प्रदूषकों के शोषण हेतु फाइटोरिमेडिएशन तकनीक के उपयोग की संभावनाओं का अन्वेषण किया जा रहा है।
- अपशिष्ट जल उपचार: बायोरिएक्टर औद्योगिक अपशिष्टों का उपचार करते हैं, जल की गुणवत्ता में सुधार करते हैं और सार्वजनिक स्वास्थ्य को बढ़ाते हैं।
निष्कर्ष:
निष्कर्ष रूप में, जैव प्रौद्योगिकी कृषि, अपशिष्ट प्रबंधन, जैवविविधता संरक्षण, स्वच्छ ऊर्जा और प्रदूषण नियंत्रण में महत्त्वपूर्ण चुनौतियों के लिये व्यावहारिक समाधान प्रदान करती है। बीटी कॉटन से लेकर बायोएथेनॉल तक भारत में जैव प्रौद्योगिकी का सक्रिय उपयोग स्थिरता और नवाचार को बढ़ावा दे रहा है। जैव प्रौद्योगिकी की निरंतर प्रगति पर्यावरण संरक्षण और सतत् विकास के भविष्य के लिये आशाजनक समाधान प्रदान करती है।