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70th BPSC Mains

  • 01 Apr 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 भूगोल और इकॉनमी

    दिवस- 26: एल नीनो और ला नीना जैसी मौसमी घटनाएँ भारतीय मानसून एवं जलवायु प्रतिरूप को गहराई से प्रभावित करती हैं। वर्ष 2023 में उत्पन्न एल नीनो घटना के संदर्भ में, भारत की मौसम प्रणालियों, कृषि और अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव का विश्लेषण कीजिये। साथ ही, इसकी तुलना ला नीना के प्रभाव से संक्षेप में कीजिये। (38 अंक)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • एल नीनो और ला नीना की अवधारणा का संक्षेप में परिचय दीजिये।
    • इसमें भारत के मौसम, कृषि और अर्थव्यवस्था पर अल नीनो के प्रभाव की व्याख्या कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    एल नीनो मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागर का एक आवधिक गर्म होना है जो वैश्विक हवा तथा वर्षा के प्रतिरूप को बदलता है। इसे ऐतिहासिक रूप से भारत में कमज़ोर मानसून, सूखे और कृषि तनाव से जोड़ा गया है। इसके विपरीत, ला नीना - इसका ठंडा प्रतिरूप - आम तौर पर भारतीय उपमहाद्वीप में बेहतर मानसून परिणामों का समर्थन करता है।

    el nino and la nina

    मुख्य भाग:

    भारत की मौसम प्रणालियों पर अल नीनो का प्रभाव:

    • कमज़ोर दक्षिण-पश्चिम मानसून: अल नीनो वर्षों (1951-2022) के 60% से अधिक वर्षों में भारत में सामान्य से कम या कम मानसूनी वर्षा देखी गई है।
    • गर्म लहरें और उच्च तापमान: अल नीनो घटनाएँ गर्म लहरों में वृद्धि के साथ जुड़ी हुई हैं, विशेष रूप से उत्तर और मध्य भारत में प्री-मानसून तथा मानसून अवधि के दौरान।
    • बादल निर्माण और वर्षा वितरण में कमी: पूर्वी व्यापारिक हवाओं के व्यवधान और परिवर्तित जेट धाराओं के कारण, वर्षा अनिश्चित तथा स्थानिक रूप से असमान हो जाती है
    • जल तनाव और जलाशय स्तर: लंबे समय तक सूखा रहने से भूजल पुनर्भरण और जलाशयों में भंडारण कम हो जाता है, जिससे शहरी तथा ग्रामीण जल संकट और भी बदतर हो जाता है।

    भारतीय कृषि पर प्रभाव:

    • कम फसल पैदावार: कम वर्षा से चावल, दालें, मक्का और कपास जैसी खरीफ फसलों पर असर पड़ता है, जिससे उत्पादन में हानि होती है।
    • बुवाई और कटाई चक्र में विलंब: अल नीनो के कारण अनियमित वर्षा प्रतिरूप किसानों, विशेषकर छोटे और सीमांत किसानों के बुवाई कार्यक्रम को बाधित करता है।
    • बढ़ी हुई इनपुट लागत: वर्षा के अभाव में सिंचाई पर अधिक निर्भरता से डीज़ल और विद्युत पर खर्च बढ़ जाता है।
    • खाद्य मुद्रास्फीति और आपूर्ति शृंखला तनाव: चावल और चीनी जैसे प्रमुख खाद्य पदार्थों के उत्पादन में कमी से मूल्य मुद्रास्फीति हो सकती है, जिससे उपभोक्ता की सामर्थ्य प्रभावित हो सकती है।

    भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:

    • मुद्रास्फीति संबंधी दबाव: भारत के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) में कृषि का महत्त्वपूर्ण योगदान है। कम खाद्य उत्पादन से मुद्रास्फीति बढ़ती है।
    • कृषि-निर्भर राज्यों में GDP मंदी: पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार और ओडिशा जैसे राज्य - जहाँ ग्रामीण आबादी अधिक है - आय एवं उत्पादन में संकुचन का सामना कर रहे हैं।
    • ग्रामीण रोज़गार योजनाओं पर दबाव: फसल विफलता के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ते संकट के कारण मनरेगा और राहत सहायता की मांग बढ़ गई है
    • विद्युत क्षेत्र और जल उपयोगिताओं पर दबाव: पम्पसेटों और एयर-कंडीशनिंग के अधिक उपयोग से विद्युत की मांग बढ़ जाती है, जिससे विद्युत ग्रिड एवं आपूर्ति प्रणालियों पर दबाव पड़ता है।

    ला नीना और इसके विपरीत प्रभाव:

    • मज़बूत मानसून और सामान्य से अधिक वर्षा: ला नीना वर्ष आमतौर पर प्रचुर मात्रा में वर्षा लाता है, जो कृषि उत्पादन और जल उपलब्धता का समर्थन करता है।
    • बाढ़ का खतरा बढ़ना: हालाँकि ला नीना वर्षा आधारित कृषि को बढ़ावा देता है, लेकिन यह तटीय और नदी क्षेत्रों में बाढ़ का कारण भी बन सकता है
    • बेहतर कृषि विकास और ग्रामीण मांग: ला नीना वर्षों के दौरान अधिक वर्षा से खरीफ फसल की उत्पादकता बढ़ती है, जिससे ग्रामीण आय और खपत बढ़ती है।

    निष्कर्ष:

    वर्ष 2023 की अल नीनो घटना ने एक बार फिर वैश्विक जलवायु गड़बड़ी के प्रति भारत की संवेदनशीलता को रेखांकित किया है। जबकि अल नीनो मानसून, कृषि और आर्थिक स्थिरता को बाधित करता है, ला नीना आम तौर पर मानसून चक्र को लाभ पहुँचाता है। भारत जैसे मानसून पर निर्भर देश में जलवायु-अनुकूल नीति-निर्माण, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और कृषि-आर्थिक नियोजन के लिये इन विरोधी घटनाओं को समझना महत्त्वपूर्ण है।

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