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70th BPSC Mains

  • 11 Mar 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    दिवस- 8: भारत में समान नागरिक संहिता लागू होने के संभावित लाभ और चुनौतियाँ क्या हो सकती हैं? विस्तृत व्याख्या कीजिये। (38 अंक)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • समान नागरिक संहिता (UCC) को परिभाषित कीजिये।
    • UCC का समर्थन करने वाले प्रमुख न्यायिक घोषणाओं पर प्रकाश डालिये।
    • सकारात्मक पहलुओं पर चर्चा कीजिये और चुनौतियों की जाँच कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    समान नागरिक संहिता (UCC) का उद्देश्य धर्म-आधारित व्यक्तिगत कानूनों को एक समान कानूनी ढाँचे से बदलना है, जो सभी नागरिकों के लिये, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो, विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और गोद लेने जैसे मामलों को नियंत्रित करता है। समर्थकों का तर्क है कि UCC लैंगिक समानता, धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रीय एकीकरण सुनिश्चित करता है, जबकि विरोधी सांस्कृतिक विविधता, धार्मिक स्वतंत्रता एवं कार्यान्वयन में व्यावहारिक चुनौतियों के बारे में चिंता व्यक्त करते हैं।

    मुख्य भाग:

    UCC के संभावित सकारात्मक परिणाम

    • कानून के समक्ष समानता सुनिश्चित करना:
      • UCC भेदभावपूर्ण धार्मिक व्यक्तिगत कानूनों को समाप्त करता है तथा अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) के अनुसार सभी नागरिकों के लिये समान अधिकार सुनिश्चित करता है।
    • लैंगिक न्याय को बढ़ावा देना:
      • कई व्यक्तिगत कानून पुरुषों के पक्ष में हैं तथा महिलाओं के उत्तराधिकार, तलाक और भरण-पोषण के अधिकारों पर प्रतिबंध लगाते हैं
      • UCC सभी धर्मों की महिलाओं को समान कानूनी सुरक्षा प्रदान करेगी।
    • मामला: 
      • शाह बानो केस (1985)- मुस्लिम महिलाओं के भरण-पोषण के अधिकार को मान्यता दी गई, व्यक्तिगत कानूनों में लैंगिक न्याय की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।
      • शायरा बानो बनाम भारत संघ (2017)- तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित किया गया, लैंगिक न्याय को बढ़ावा दिया गया है।
    • राष्ट्रीय एकता और धर्मनिरपेक्षता:
      • समान नागरिक संहिता नागरिकता को धार्मिक पहचान से ऊपर रखते हुए राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करने में सहायक होती है।
      • केस: सरला मुद्गल बनाम भारत संघ (1995) - सर्वोच्च न्यायालय ने बहुविवाह के लिये धोखाधड़ी से धार्मिक रूपांतरण को रोकने के लिये UCC का समर्थन किया।
    • कानूनी प्रणाली का सरलीकरण:
      • अनेक व्यक्तिगत कानून कानूनी उलझन उत्पन्न करते हैं और न्याय मिलने में विलंब करते हैं।
      • एकल नागरिक संहिता विवादों का तीव्रता से समाधान सुनिश्चित करेगी और न्यायिक लंबित मामलों में कमी लाएगी
    • कानूनों का आधुनिकीकरण और सामाजिक सुधार:
      • UCC व्यक्तिगत कानूनों को समकालीन सामाजिक मूल्यों के साथ संरेखित करेगा तथा प्रगतिशील कानूनी सुधार सुनिश्चित करेगा।
      • केस: शबनम हाशमी बनाम भारत संघ (2014) - सर्वोच्च न्यायालय ने UCC के विचार का समर्थन करते हुए फैसला सुनाया कि गोद लेने का आधार धर्मनिरपेक्ष कानून होना चाहिये।
    • अंतर्राष्ट्रीय संरेखण:
      • तुर्की, फ्राँस और अमेरिका जैसे कई देशों ने समान नागरिक संहिता को सफलतापूर्वक लागू किया है।
      • UCC मानवाधिकार और लैंगिक समानता सूचकांक में भारत की वैश्विक स्थिति को बढ़ाएगा।

    UCC के संभावित नकारात्मक परिणाम

    • सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता को खतरा:
      • भारत के बहुलवादी समाज में विविध परंपराएँ हैं और समान नागरिक संहिता को सांस्कृतिक पहचान को एकरूप बनाने के प्रयास के रूप में देखा जा सकता है।
    • धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन (अनुच्छेद 25):
      • आलोचकों का तर्क है कि व्यक्तिगत कानून धार्मिक पहचान का हिस्सा हैं और समान नागरिक संहिता धार्मिक स्वायत्तता का उल्लंघन कर सकती है
    • अल्पसंख्यक समुदायों का प्रतिरोध:
      • अल्पसंख्यक समुदायों को डर है कि समान नागरिक संहिता पर बहुसंख्यक धार्मिक परंपराओं का प्रभुत्व हो सकता है, जिससे उनके रीति-रिवाज़ प्रभावित हो सकते हैं।
      • 2011 की जनगणना: भारत की जनसंख्या में अल्पसंख्यकों की हिस्सेदारी 19.3% है और उनमें से कई को अपने व्यक्तिगत मामलों में कानूनी स्वायत्तता खोने की आशंका है।
    • कार्यान्वयन में व्यावहारिक चुनौतियाँ:
      • धार्मिक विविधता के कारण ऐसा एकसमान कानून बनाना चुनौतीपूर्ण हो जाता है, जो सभी परंपराओं और रीति-रिवाज़ों को समाहित कर सके।
      • यहाँ तक ​​कि हिंदू कानून में भी उत्तराधिकार के नियम क्षेत्रीय आधार पर भिन्न होते हैं, जिससे एकरूपता जटिल हो जाती है।
    • संघवाद संबंधी चिंताएँ एवं राज्य स्वायत्तता:
      • पर्सनल लॉ समवर्ती सूची के अंतर्गत आते हैं, जिसका अर्थ है कि राज्य और केंद्र दोनों कानून बना सकते हैं
    • सामाजिक अशांति का खतरा:
      • यदि सर्वसम्मति के बिना इसे लागू किया गया तो समान नागरिक संहिता (UCC) विरोध और सांप्रदायिक तनाव का कारण बन सकती है।
    • कार्यान्वयन की आर्थिक लागत:
      • UCC को बड़े पैमाने पर कानूनी पुनर्गठन की आवश्यकता होगी, जिसमें शामिल हैं:
        • न्यायाधीशों और वकीलों का पुनः प्रशिक्षण
        • कानूनी ढाँचे को अद्यतन करना
        • संक्रमणकालीन विवादों का प्रबंधन
      • भारत की न्यायपालिका के समक्ष 47 मिलियन से अधिक मामले लंबित हैं, जिसके कारण आलोचक समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन की प्राथमिकता पर प्रश्न कर रहे हैं

    UCC कार्यान्वयन के लिये आगे की राह

    • आम सहमति निर्माण एवं हितधारक सहभागिता:
      • धार्मिक नेताओं, कानूनी विशेषज्ञों और नागरिक समाज संगठनों के साथ संवाद करना चाहिये
      • गलत सूचना को दूर करने और विश्वास बनाने के लिये जन जागरूकता अभियान चलाने चाहिये।
    • क्रमिक, चरणबद्ध कार्यान्वयन:
      • गैर-विवादास्पद सुधारों से शुरुआत करनी चाहिये, जैसे:
        • सभी के लिये एक समान विवाह आयु
        • महिलाओं के लिये समान उत्तराधिकार अधिकार
        • बहुविवाह का उन्मूलन
      • बाद के चरणों में अधिक संवेदनशील मुद्दों पर ध्यान दिया जाएगा।
    • अल्पसंख्यक अधिकारों के लिये संवैधानिक सुरक्षा उपाय:
      • यह सुनिश्चित करने के लिये कानूनी सुरक्षा प्रदान करनी चाहिये कि अल्पसंख्यक परंपराओं को मनमाने ढंग से त्यागा न जाए
      • उदाहरण: उन विशिष्ट सांस्कृतिक प्रथाओं के लिये प्रथागत छूट की अनुमति देनी चाहिये जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करती हैं।
    • राज्य स्तरीय मॉडल से सीखना:
      • गोवा के समान नागरिक संहिता और उत्तराखंड के समान नागरिक संहिता कार्यान्वयन के प्रभाव का अध्ययन करना चाहिये।
      • राष्ट्रीय UCC के लिये दृष्टिकोण को परिष्कृत करने हेतु डेटा-संचालित अंतर्दृष्टि का उपयोग करना चाहिये।
    • UCC का न्यायसंगत और समावेशी होना:
      • एक न्यायपूर्ण नागरिक संहिता एक समान नागरिक संहिता से अधिक महत्त्वपूर्ण है
      • कानूनों को विविधता का सम्मान करते हुए न्याय और समानता को प्राथमिकता देनी चाहिये।

    निष्कर्ष:

    UCC सांस्कृतिक संवेदनशीलताओं का सम्मान करते हुए समानता, लैंगिक न्याय और कानूनी एकरूपता सुनिश्चित करता है। क्रमिक कार्यान्वयन, समावेशी चर्चा और कानूनी सुरक्षा उपाय विविधता के साथ एकरूपता को संतुलित कर सकते हैं, एक प्रगतिशील एवं समावेशी कानूनी प्रणाली को बढ़ावा दे सकते हैं जो राष्ट्रीय एकता तथा मौलिक अधिकारों को बनाए रखती है।

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