03 Apr 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | भूगोल और इकॉनमी
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- आर्थिक नियोजन का अर्थ समझाइये।
- भारतीय अर्थव्यवस्था में नियोजन की सफलताओं पर प्रकाश डालिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
नियोजित अर्थव्यवस्था से तात्पर्य उस प्रणाली से है जिसमें अर्थव्यवस्था की व्यापक समझ के आधार पर एक केंद्रीय प्राधिकरण द्वारा प्रमुख आर्थिक निर्णय लिये जाते हैं। स्वतंत्रता के बाद, भारत ने समावेशी विकास, औद्योगीकरण और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिये पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से नियोजित विकास को अपनाया। इसका उद्देश्य एक नए स्वतंत्र राष्ट्र को आत्मनिर्भरता, गरीबी में कमी और संतुलित क्षेत्रीय विकास की ओर ले जाना था।
मुख्य भाग:
- आधुनिक आर्थिक अवसंरचना की नींव रखी गई:
- स्वतंत्रता के बाद की योजना ने बाँधों, इस्पात संयंत्रों, सड़कों और IIT तथा CSIR प्रयोगशालाओं जैसे संस्थानों सहित प्रमुख बुनियादी ढाँचे के निर्माण को संभव बनाया।
- भिलाई इस्पात संयंत्र और भाखड़ा नांगल बाँध जैसी बड़ी परियोजनाएँ भारत के आधुनिकीकरण एवं आत्मनिर्भर विकास की ओर बढ़ने का प्रतीक हैं।
- खाद्य आत्मनिर्भरता और कृषि सुधार हासिल:
- योजना का ध्यान कृषि उत्पादकता पर केंद्रित था, विशेष रूप से तीसरी और चौथी पंचवर्षीय योजना के तहत शुरू की गई हरित क्रांति के दौरान।
- परिणामस्वरूप, भारत खाद्यान्न की कमी से खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ गया, जिससे आयात पर निर्भरता कम हो गई।
- सार्वजनिक क्षेत्र और औद्योगिक आधार का विकास:
- द्वितीय पंचवर्षीय योजना (नेहरू-महालनोबिस मॉडल) में भारी उद्योगों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) को प्राथमिकता दी गई।
- HAL, BHEL और सेल जैसे सार्वजनिक उपक्रम औद्योगिक आत्मनिर्भरता एवं रोज़गार सृजन के प्रतीक बन गए।
- क्षेत्रीय एवं सामाजिक समानता को बढ़ावा दिया गया:
- नियोजन से पिछड़े क्षेत्रों की ओर संसाधनों को निर्देशित करने, क्षेत्रीय असंतुलन को कम करने और समावेशी विकास सुनिश्चित करने में मदद मिली।
- सामाजिक असमानता को कम करने के लिये अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और महिलाओं के लिये योजनाओं को योजना प्राथमिकताओं में शामिल किया गया।
- रोज़गार सृजन और गरीबी उन्मूलन:
- एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम (IRDP), राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार कार्यक्रम (NREP), मनरेगा (योजना आयोग के बाद का युग) जैसे कार्यक्रमों का उद्देश्य ग्रामीण रोज़गार और गरीबी उन्मूलन है, जिससे लाखों लोग लाभान्वित हुए हैं।
- कृषि, निर्माण और विनिर्माण में कुशल एवं अकुशल रोज़गार योजना-उन्मुख निवेश से प्रेरित थे।
- विकास के लिये कल्याण-उन्मुख दृष्टिकोण:
- ICDS, मिड-डे मील और ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन जैसी योजनाओं के साथ शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल एवं सामाजिक सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित किया गया।
- साक्षरता दर वर्ष 1951 में 18.3% से बढ़कर वर्ष 2011 में 74% हो गई, जो दीर्घकालिक सामाजिक विकास परिणामों को दर्शाती है।
- उल्लेखनीय वृद्धि के साथ प्रारंभिक योजनाओं की सफलताएँ:
- प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56) में कृषि और सिंचाई पर ध्यान केंद्रित करते हुए 2.1% के लक्ष्य के मुकाबले 3.6% की वृद्धि हासिल की गई।
- सातवीं पंचवर्षीय योजना (1985-90) में 6% से अधिक की तीव्र आर्थिक वृद्धि देखी गई, जो आधुनिकीकरण और उत्पादकता की ओर बदलाव का संकेत था।
- सीमाएँ और आलोचनाएँ:
- नियोजन के कारण लाइसेंस राज, लालफीताशाही और तथाकथित हिंदू विकास दर (1980 के दशक तक 3-3.5% वार्षिक) को बढ़ावा मिला।
- कम निजी निवेश, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के प्रदर्शन में अकुशलता और जवाबदेही की कमी ने कुछ योजना लक्ष्यों को कमज़ोर कर दिया।
- नियोजन की केंद्रीकृत प्रकृति ने इसे अनुकूल नहीं बनाया और क्षेत्रीय असमानताओं को पर्याप्त रूप से दूर करने में विफल रही, जिसके परिणामस्वरूप राज्यों एवं क्षेत्रों में असमान विकास हुआ।
- निर्यातोन्मुख औद्योगीकरण की तुलना में आयात प्रतिस्थापन पर अत्यधिक ज़ोर देने से वैश्विक बाज़ारों के साथ भारत का एकीकरण सीमित हो गया तथा व्यापार आधारित विकास की संभावना बाधित हुई।
- उदारीकरण के बाद विकसित होती भूमिका:
- वर्ष 1991 में आर्थिक सुधारों के साथ, कमांड अर्थव्यवस्था मॉडल का स्थान बाज़ार-उन्मुख योजना ने ले लिया।
- नीति आयोग जैसी संस्थाएँ अब सहकारी संघवाद, रणनीतिक योजना और सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं।
- राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP) और ऊर्जा संक्रमण रोडमैप जैसे कार्यक्रम नियोजन के प्रति नए युग का दृष्टिकोण दर्शाते हैं।
निष्कर्ष:
भारत की नियोजित अर्थव्यवस्था ने पिछड़ी अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर और विविधतापूर्ण अर्थव्यवस्था में बदलने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालाँकि इसकी सीमाएँ थीं, लेकिन यह संस्थानों, बुनियादी ढाँचे और सामाजिक सुरक्षा जाल के निर्माण में सहायक थी। उदारीकरण के बाद के युग में, सतत् और समावेशी विकास को प्राप्त करने के लिये बाज़ार की गतिशीलता के साथ राज्य के मार्गदर्शन को मिलाकर अनुकूल, परिणाम-आधारित और भागीदारी योजना पर ध्यान केंद्रित किया गया है।