70th BPSC Mains

दिवस- 29: बिहार में कृषि उत्पादन को प्रभावित करने वाले प्रमुख अवरोधक कौन-कौन से हैं? साथ ही, इन चुनौतियों से निपटने के लिये कौन-कौन सी रणनीतिक पहल की जा सकती हैं? (38 अंक)

04 Apr 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | भूगोल और इकॉनमी

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • बिहार के कृषि प्रभुत्व और चुनौतियों पर संक्षेप में चर्चा कीजिये।
  • बिहार में कृषि उत्पादकता की चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
  • बिहार की कृषि और सरकारी पहलों के लिये आगे की राह पर चर्चा कीजिये।
  • उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय: 

कृषि बिहार की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, जिसमें लगभग 76% कार्यबल लगा हुआ है और राज्य के सकल राज्य मूल्य वर्द्धन (GSVA) ​​में 20% से अधिक का योगदान देता है। डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने एक बार कृषि को बिहार की "मुख्य क्षमता" के रूप में संदर्भित किया था। अपनी उपजाऊ मिट्टी, प्रचुर जल संसाधनों और अनुकूल जलवायु के बावजूद, इस क्षेत्र की उत्पादकता कई संरचनात्मक तथा प्रणालीगत बाधाओं के कारण सीमित है।

बिहार में कृषि उत्पादकता में बाधा डालने वाले कारक:

  • उच्च जनसंख्या दबाव और भूमि विखंडन: बिहार में भारत में सबसे अधिक जनसंख्या घनत्व है, जिसके परिणामस्वरूप भूमि का विखंडन बहुत अधिक है - अधिकांश भूमि 0.5 हेक्टेयर से कम है।
    • इससे मशीनीकृत और वाणिज्यिक खेती की व्यवहार्यता सीमित हो जाती है, जिससे पैमाने की अर्थव्यवस्था कम हो जाती है और अकुशल खेती पद्धतियाँ अपनाई जाती हैं।
  • कमज़ोर कृषि विपणन अवसंरचना: वर्ष 2006 में APMC अधिनियम को निरस्त करने के बाद, बिहार में विनियमित मंडियों का अभाव था। 
    • किसानों को मूल्य निर्धारण, निष्पक्ष लेन-देन और दूरस्थ बाज़ारों तक पहुँच में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। 
    • संरचित बाज़ार संपर्कों का अभाव उच्च मूल्य वाली फसलों में विविधीकरण को हतोत्साहित करता है।
  • मृदा उर्वरता में गिरावट और क्षरण: अवैज्ञानिक कृषि पद्धतियों, रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग और मृदा स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता की कमी के कारण मृदा उर्वरता में गिरावट आई है।
    • क्षेत्रों में लवणता और पोषक तत्त्वों की कमी बढ़ने की रिपोर्ट है, जिसका सीधा असर पैदावार पर पड़ रहा है।
  • कम बीज प्रतिस्थापन दर: सरकारी योजनाओं के बावजूद, प्रामाणित और उच्च उपज देने वाली किस्मों का उपयोग सीमित बना हुआ है। 
    • पुराने बीजों के कारण कीटों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, उत्पादकता कम हो जाती है तथा जलवायु परिवर्तनशीलता के प्रति अनुकूलन क्षमता कम हो जाती है।
  • अपर्याप्त सिंचाई पहुँच और लागत: डीज़ल चालित सिंचाई पर अत्यधिक निर्भरता और अपर्याप्त नहर नेटवर्क के परिणामस्वरूप, विशेष रूप से सीमांत किसानों के लिये, उच्च इनपुट लागत एवं अनिश्चित जल आपूर्ति होती है। 
    • इससे गैर-मानसूनी अवधि में फसल की सघनता सीमित हो जाती है तथा उत्पादकता सीमित हो जाती है।
  • प्रौद्योगिकी और ऋण तक सीमित पहुँच: छोटे और सीमांत किसानों के पास आधुनिक उपकरणों, सटीक कृषि तकनीकों एवं कृषि-वित्त समाधानों तक सीमित पहुँच है। 
    • इससे उनकी कार्यप्रणाली को उन्नत करने तथा मौसम और कीटों से होने वाले खतरों को कम करने की क्षमता सीमित हो जाती है।

चुनौतियों पर नियंत्रण पाने हेतु रणनीतिक उपाय:

  • बेहतर सिंचाई पहुँच - हर खेत तक पानी : चौथे कृषि रोडमैप (2023-28) के अंतर्गत राज्य सरकार का ज़ोर सूक्ष्म सिंचाई, सौर पंपों के वितरण और नहरों के पुनरुद्धार पर है, जिसका उद्देश्य किसानों की इनपुट लागत में कमी लाना तथा सिंचाई के दायरे का विस्तार करना है।
  • जलवायु-अनुकूल कृषि को बढ़ावा: अनियमित वर्षा और बढ़ते तापमान से निपटने के लिये जलवायु-अनुकूल बीज किस्मों तथा मौसम-अनुकूल प्रथाओं को अपनाने पर ज़ोर दिया जा रहा है। 
  • बीज वितरण और जागरूकता को मज़बूत करना: उच्च उपज देने वाली और प्रामाणित किस्मों तक पहुँच में सुधार के लिये बीज प्रतिस्थापन तथा सब्सिडी योजनाएँ महत्त्वपूर्ण हैं। अपनाने के लिये निरंतर किसान प्रशिक्षण आवश्यक है।
  • डिजिटल और बाज़ार संबंध: बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन जैसे संगठनों के साथ साझेदारी कृषि सेवाओं को डिजिटल बना रही है। किसान उत्पादक संगठनों (FPO) को बढ़ावा देना और कोल्ड चेन तथा भंडारण बुनियादी ढाँचे में निवेश करना महत्त्वपूर्ण है।
  • संबद्ध क्षेत्रों पर ध्यान: डेयरी, मत्स्य पालन और बागवानी का एकीकृत विकास - जहाँ दुग्ध, अंडा एवं मत्स्य उत्पादन में क्रमशः 27.3%, 85.7% एवं 45% की वृद्धि हुई (2018-24) - आय विविधीकरण तथा ग्रामीण अनुकूलन प्रदान करता है।

निष्कर्ष: 

बिहार की कृषि में व्यापक संभावनाएँ विद्यमान हैं, किंतु इन संभावनाओं को साकार करने हेतु आवश्यक है कि बुनियादी चुनौतियों का समाधान लक्षित हस्तक्षेपों के माध्यम से किया जाए। चौथे कृषि रोडमैप के तहत सिंचाई सुविधाओं का विस्तार, उन्नत तकनीक का समावेश, गुणवत्तापूर्ण बीजों की उपलब्धता तथा बाज़ार संरचना में सुधार जैसे क्षेत्रों में सतत् निवेश के माध्यम से राज्य सतत् और लाभकारी कृषि की दिशा में प्रगति कर सकता है, जिससे न केवल खाद्य सुरक्षा सुदृढ़ होगी, बल्कि ग्रामीण आजीविका भी सशक्त बनेगी।