70th BPSC Mains

दिवस-35: बिहार जैसे आपदा-संवेदनशील क्षेत्रों में, विज्ञान और प्रौद्योगिकी को समुदाय-आधारित आपदा प्रबंधन रणनीतियों का अभिन्न अंग कैसे बनाया जा सकता है? विचार कीजिये। (38 अंक)

11 Apr 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | साइंस और टेक्नोलॉजी

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • परिचय में, समुदाय-केंद्रित आपदा प्रबंधन और बिहार जैसे संवेदनशील क्षेत्रों के लिये इसकी प्रासंगिकता को संक्षेप में परिभाषित कीजिये।
  • बिहार के विशिष्ट उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिये कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी को आपदा प्रबंधन रणनीतियों में कैसे एकीकृत किया जा सकता है।
  • उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

बाढ़, सूखा और चक्रवात जैसे प्राकृतिक आपदाओं से ग्रस्त क्षेत्रों के लिये प्रभावी आपदा प्रबंधन महत्त्वपूर्ण है। बिहार जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में, जहाँ समुदाय अक्सर आपदाओं का सामना करते हैं, आपदा प्रबंधन रणनीतियों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी (एस एंड टी) को मुख्यधारा में लाने से अनुकूलन, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, प्रतिक्रिया क्षमता और पुनर्प्राप्ति प्रयासों में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है। यह उत्तर बिहार पर ध्यान केंद्रित करते हुए समुदाय-केंद्रित आपदा प्रबंधन रणनीतियों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के एकीकरण की खोज करता है।

मुख्य भाग:

पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ और सुदूर संवेदन प्रौद्योगिकी:

  • बाढ़ का पूर्वानुमान और निगरानी: बिहार गंगा और कोसी जैसी प्रमुख नदियों के निकट होने के कारण अक्सर बाढ़ से प्रभावित होता है। 
    • सुदूर संवेदन प्रौद्योगिकियों और उपग्रह डेटा के उपयोग से बाढ़ के स्वरूप का पूर्वानुमान लगाने एवं पूर्व चेतावनी प्रणालियों की प्रभावशीलता बढ़ाने में मदद मिल सकती है। 
    • उदाहरण के लिये, राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (NRSC) बाढ़ के पानी पर नज़र रखने के लिये वास्तविक समय डेटा उपलब्ध कराने में सहायक रहा है, जिससे अधिकारियों को समय पर चेतावनी जारी करने में मदद मिली है।
  • बाढ़ जलप्लावन मॉडल: बाढ़ जलप्लावन मॉडल जैसे विज्ञान-आधारित बाढ़ पूर्वानुमान उपकरण बाढ़ के दौरान पानी की गहराई और फैलाव की भविष्यवाणी कर सकते हैं।
    • इससे समुदायों को तैयारी करने और निवारक कार्रवाई करने में मदद मिलेगी, जैसे कि निकासी या बाढ़ अवरोधकों का निर्माण।

आपदा मानचित्रण के लिये भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS):

  • भेद्यता मानचित्रण: GIS-आधारित प्लेटफॉर्मों की सहायता से आपदा भेद्यता के मानचित्र तैयार किये जा सकते हैं, जिससे बिहार में उच्चतम जोखिम वाले क्षेत्रों की सटीक पहचान संभव हो पाती है। 
    • इन मानचित्रों का उपयोग स्थानीय सरकारों द्वारा संसाधनों का कुशलतापूर्वक आवंटन करने तथा लक्षित निकासी योजनाएँ बनाने के लिये किया जा सकता है। 
    • उदाहरण के लिये, बिहार के आपदा प्रबंधन विभाग ने बाढ़-प्रवण क्षेत्रों पर नज़र रखने और तद्नुसार राहत प्रयासों की रणनीति बनाने के लिये GIS प्रौद्योगिकी का उपयोग किया है।
  • निर्णय लेने के लिये वास्तविक समय डेटा: आपात स्थिति के दौरान, GIS आपदा प्रभावों, जैसे जल स्तर, सड़क अवरोध और आश्रय स्थानों पर नज़र रखने में मदद करता है। 
    • यह डेटा नीति-निर्माताओं को वास्तविक समय की जानकारी के आधार पर त्वरित निर्णय लेने और संसाधनों के प्रभावी आवंटन में सक्षम बनाता है।

सामुदायिक सहभागिता और जागरूकता के लिये मोबाइल एप्लीकेशन:

  • सामुदायिक संचार: विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधारित मोबाइल एप्लिकेशन आपदा की स्थिति में संकटग्रस्त समुदायों को आपदा प्रबंधन एजेंसियों से जोड़ने के एक प्रभावशाली माध्यम के रूप में कार्य कर सकते हैं। 
    • ऐप्स निवासियों को स्थानीय बाढ़ चेतावनियाँ, अपडेट और सुरक्षा दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं। 
    • ये प्लेटफॉर्म जागरूकता बढ़ाने और समुदायों को निवारक उपायों के बारे में शिक्षित करने के लिये SMS अलर्ट या पुश नोटिफिकेशन भी भेज सकते हैं।
  • आपदा संबंधी जानकारी को क्राउडसोर्सिंग के माध्यम से एकत्रित करना: ऐप्लिकेशन स्थानीय निवासियों को वास्तविक समय में सड़क अवरोध, जलभराव जैसी समस्याओं की सूचना देने का अवसर प्रदान करते हैं, जिससे आपदा प्रतिक्रिया दलों को त्वरित और सटीक कार्रवाई में सहायता मिलती है।

जलवायु अनुकूल अवसंरचना और प्रौद्योगिकी:

  • सतत् निर्माण तकनीक: जैव प्रौद्योगिकी और हरित इंजीनियरिंग को बुनियादी ढांचे के विकास में एकीकृत किया जा सकता है ताकि इसे प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अधिक लचीला बनाया जा सके।
    • बिहार में हरित प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके निर्मित भूकंपरोधी संरचनाओं और बाढ़रोधी मकानों से आपदाओं के दौरान जान-माल की हानि में उल्लेखनीय कमी लाई जा सकती है।
  • वर्षा जल संचयन और जल प्रबंधन प्रणालियाँ: चूँकि बिहार बाढ़ से ग्रस्त है, इसलिये नवीन निस्पंदन प्रणालियों का उपयोग करके वर्षा जल संचयन तकनीक समुदायों को जल संसाधनों का अधिक प्रभावी ढंग से प्रबंधन करने में मदद कर सकती है। 
    • ये प्रणालियाँ जल-जमाव को रोक सकती हैं तथा बाढ़ के प्रभाव को न्यूनतम कर सकती हैं।

क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण कार्यक्रम:

  • समुदाय-आधारित आपदा प्रतिक्रिया प्रशिक्षण: स्थानीय समुदायों को आपदा तैयारी और प्रतिक्रिया के लिये विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी-आधारित उपकरणों का उपयोग करने में प्रशिक्षित किया जाना चाहिये।
    • "आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) प्रशिक्षण कार्यक्रम" जैसी पहल से ग्रामीणों को मोबाइल ऐप्स का उपयोग करना, बाढ़ अलर्ट की व्याख्या करना और बुनियादी प्राथमिक चिकित्सा एवं बचाव तकनीकों को लागू करना सिखाया जा सकता है।
  • स्थानीय विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों के साथ सहयोग: राज्य विश्वविद्यालय सरकार के साथ मिलकर आपदा प्रबंधन तकनीकों और सामुदायिक तैयारी पर आधारित प्रशिक्षण कार्यक्रम, सिमुलेशन अभ्यास एवं कार्यशालाओं का आयोजन कर सकते हैं, जिससे स्थानीय क्षमताओं को सुदृढ़ किया जा सके।

निष्कर्ष:

निष्कर्ष के तौर पर, बिहार में समुदाय-आधारित आपदा प्रबंधन में विज्ञान और प्रौद्योगिकी को एकीकृत करने से आपदा की तैयारी एवं अनुकूलन में काफी वृद्धि हो सकती है। प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, GIS मैपिंग और मोबाइल ऐप जैसे उपकरण बेहतर प्रतिक्रिया को सक्षम बनाते हैं, जबकि जलवायु-अनुकूल बुनियादी ढाँचा एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम समुदायों को प्रभावी आपदा प्रबंधन के लिये सशक्त बनाते हैं।