70th BPSC Mains

दिवस- 8: वैश्विक भूख सूचकांक (GHI) के प्रमुख संकेतकों पर चर्चा कीजिये और हाल के वर्षों में इन क्षेत्रों में भारत के प्रदर्शन का विश्लेषण कीजिये। (38 अंक)

11 Mar 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भूगोल

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • परिचय में GHI को परिभाषित कीजिये।
  • प्रमुख संकेतकों का उल्लेख कीजिये - अल्पपोषण, बौनापन, दुर्बलता और बाल मृत्यु दर।
  • भारत के प्रदर्शन, उठाए गए कदमों और चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
  • उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

कंसर्न वर्ल्डवाइड और वेल्टहंगरहिल्फ़ द्वारा प्रतिवर्ष प्रकाशित ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) कुपोषण एवं बाल स्वास्थ्य संकेतकों का उपयोग करके दुनिया भर में भूख के स्तर का आकलन करता है। 100-पॉइंट स्केल (0 = कोई भूख नहीं, 100 = अत्यधिक भूख) पर स्कोर किया गया, यह SDG 2-ज़ीरो हंगर की ओर प्रगति को ट्रैक करता है।

मुख्य भाग:

वैश्विक भूख सूचकांक (GHI) के प्रमुख पैरामीटर

GHI स्कोर चार प्रमुख संकेतकों पर आधारित है:

  • अल्पपोषण:
    • यह उस जनसंख्या के प्रतिशत को मापता है जो स्वस्थ जीवन के लिये अपर्याप्त कैलोरी का उपभोग करती है।
    • यह खाद्य असुरक्षा और अपर्याप्त पोषण स्तर को दर्शाता है
  • बाल बौनापन:
    • यह पाँच वर्ष से कम आयु के उन बच्चों का प्रतिशत दर्शाता है जिनकी आयु के अनुपात में लंबाई कम है, जो दीर्घकालिक कुपोषण का संकेत देता है
    • यह दीर्घकालिक अपर्याप्त पोषण और खराब मातृ स्वास्थ्य के कारण होता है।
  • बाल दुर्बलता:
    • यह पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों का प्रतिशत मापता है, जिनका वज़न उनकी लंबाई के अनुपात में कम है, जोकि तीव्र कुपोषण को दर्शाता है
    • भारत में बाल कुपोषण की दर लगातार विश्व स्तर पर सबसे अधिक रही है
  • बाल मृत्यु दर (5 वर्ष से कम आयु वर्ग में मृत्यु दर):
    • यह उन बच्चों का प्रतिशत मापता है जिनकी पाँच वर्ष की आयु से पहले मृत्यु हो जाती है।
    • यह सूचक कुपोषण, खराब स्वास्थ्य देखभाल और अस्वास्थ्यकर जीवन स्थितियों के घातक परिणामों को दर्शाता है

वैश्विक भूख सूचकांक में भारत का प्रदर्शन

  • भारत का GHI स्कोर और रैंकिंग (हाल के वर्ष):
    • 2024: GHI स्कोर – 27.3, रैंक – 105/127 (गंभीर भूख)
    • 2023: GHI स्कोर – 28.7, रैंक – 111/125 (गंभीर भूख)
  • GHI संकेतकों में भारत का प्रदर्शन (2024):
    • अल्पपोषण: भारत की 13.7% आबादी को पर्याप्त भोजन नहीं मिलता (वर्ष 2023 में 16.6% से सुधार)।
    • बाल बौनापन: 35.5% बच्चे दीर्घकालिक कुपोषण से पीड़ित हैं (वर्ष 2023 से कोई परिवर्तन नहीं)।
    • बाल दुर्बलता: 18.7% (विश्व में सबसे अधिक), गंभीर कुपोषण दर्शाता है (कोई सुधार नहीं)।
    • बाल मृत्यु दर: 2.9%, जो वर्ष 2023 में 3.1% की तुलना में सामान्य सुधार दर्शाती है।

भारत के खराब GHI प्रदर्शन में योगदान देने वाली चुनौतियाँ

  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में अकुशलताएँ:
    • 67% आबादी को कवर करने के बावजूद, PDS लीकेज, भ्रष्टाचार और बहिष्करण त्रुटियों से ग्रस्त है
    • 90 मिलियन से अधिक योग्य लोग अभी भी खाद्यान्न अधिकारों से वंचित हैं।
  • आर्थिक असमानता और खाद्य सामर्थ्य:
    • आय असमानताएँ पौष्टिक भोजन तक पहुँच को सीमित करती हैं, विशेष रूप से हाशिये के समुदायों में
    • उच्च खाद्य मुद्रास्फीति के कारण निम्न आय वर्ग के लिये आवश्यक वस्तुओं की खरीदारी और अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाती है।
  • पोषण संबंधी कमियाँ और आहार असंतुलन:
    • सरकारी खाद्य कार्यक्रम पोषक तत्त्वों की पर्याप्तता के बजाय कैलोरी की पर्याप्तता पर ध्यान केंद्रित करते हैं
    • मुख्य अनाजों (चावल और गेहूँ) पर भारी निर्भरता के परिणामस्वरूप आयरन, विटामिन A और जिंक की कमी हो जाती है
  • शहरीकरण और बदलती खाद्य प्रणालियाँ:
    • वर्ष 2022 के टाटा-कॉर्नेल इंस्टीट्यूट के अध्ययन में पाया गया कि दिल्ली में शहरी झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले 51% परिवार खाद्य असुरक्षा का अनुभव करते हैं।
    • प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के बढ़ते उपभोग से आहार का समग्र पोषण मूल्य कम हो रहा है।
  • लैंगिक आधारित कुपोषण:
    • महिलाओं और लड़कियों को अक्सर कम मात्रा में या कम गुणवत्ता वाला भोजन मिलता है, जिसके परिणामस्वरूप एनीमिया और कुपोषण की दर बढ़ जाती है
    • मातृ कुपोषण के परिणामस्वरूप जन्म के समय शिशु का वज़न कम होता है तथा अंतःपीढ़ीगत कुपोषण होता है।

भूख और कुपोषण से निपटने के लिये सरकारी पहल

  • पोषण अभियान: महिलाओं, बच्चों और किशोरों में कुपोषण को कम करना।
  • PM गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY): 80 करोड़ व्यक्तियों को मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध कराना।
  • मध्याह्न भोजन योजना (PM पोषण): स्कूल जाने वाले बच्चों के लिये पौष्टिक भोजन सुनिश्चित करना।
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013: 67% आबादी को सब्सिडीयुक्त खाद्यान्न।
  • एकीकृत बाल विकास सेवाएँ (ICDS): बच्चों के लिये पोषण, स्वास्थ्य देखभाल और स्कूल-पूर्व शिक्षा प्रदान करना।
  • मिशन इंद्रधनुष: शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिये बाल टीकाकरण।

भुखमरी से निपटने के लिये बिहार सरकार की पहल

  • मध्याह्न भोजन योजना:
    • स्कूली छात्रों को उनके पोषण सेवन में सुधार करने के लिये पका हुआ भोजन उपलब्ध कराया जाता है।
    • इसका उद्देश्य स्कूल में उपस्थिति बढ़ाना और कुपोषण कम करना है।
  • राज्य स्तरीय सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) को सुदृढ़ बनाना:
    • राशन कार्ड धारकों को सब्सिडी वाले खाद्यान्न का कुशल वितरण सुनिश्चित करता है।
    • बिहार ने राशन लीकेज और भ्रष्टाचार को कम करने के लिये डिजिटल राशन कार्ड लागू किया है
  • बिहार स्वयं सहायता समूह द्वारा संचालित पोषण कार्यक्रम:
    • जीविका जैसे स्वयं सहायता समूह (SHG) कुपोषण और पोषण विविधता के बारे में जागरूकता फैलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • महिलाओं के नेतृत्व वाले स्वयं सहायता समूह खाद्य सुरक्षा, घरेलू बागवानी और सतत् पोषण प्रथाओं को बढ़ावा देने में सक्रिय भूमिका निभाते हैं।

आगे की राह

  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) को सशक्त बनाना:
    • सभी लाभार्थियों तक भोजन की पहुँच सुनिश्चित करने के लिये दक्षता, पारदर्शिता और पहुँच में सुधार करना चाहिये।
  • पोषण विविधता को बढ़ावा देना:
    • कैलोरी पर्याप्तता के अलावा प्रोटीन, विटामिन और खनिजों से भरपूर संतुलित आहार पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • कृषि और सतत् खाद्य प्रणालियों में निवेश:
    • पोषक अनाज (बाजरा), दालें और विविध फसलों को बढ़ावा देना चाहिये।
    • खाद्यान्न की बर्बादी को कम करने के लिये शीत भंडारण और कटाई के बाद के बुनियादी ढाँचे में सुधार करना चाहिये।
  • स्वास्थ्य और स्वच्छता में सुधार:
    • संक्रमण से संबंधित कुपोषण को रोकने के लिये स्वच्छ जल तक पहुँच, स्वच्छता और स्वास्थ्य (WASH) सुविधाओं को मज़बूत करना चाहिये।
  • पोषण में लैंगिक असमानताओं को संबोधित करना:
    • घरों में समान खाद्य वितरण सुनिश्चित करना चाहिये, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों के लिये

निष्कर्ष:

भारत के वैश्विक भूख सूचकांक (GHI) स्कोर में मामूली सुधार देखा गया है, लेकिन बाल कुपोषण की गंभीरता बनी हुई है, जिससे त्वरित हस्तक्षेप की आवश्यकता है। हालाँकि विभिन्न पहलें और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में सुधार सहायक रहे हैं, लेकिन स्थायी रूप से भूख कम करने के लिये कृषि, पोषण, स्वास्थ्य सेवा एवं आर्थिक नीतियों को एकीकृत करने वाले बहु-क्षेत्रीय दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जो सतत् विकास लक्ष्य (SDG)-2 "शून्य भूख" के अनुरूप हो।