70th BPSC Mains

दिवस- 10: भारत में भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण से भूमि प्रशासन, पारदर्शिता और व्यापार सुगमता में कैसे सुधार हो सकता है? साथ ही, इससे जुड़ी चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये और प्रभावी कार्यान्वयन के लिये आवश्यक सुधार सुझाइये।

13 Mar 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | कर्रेंट अफेयर्स

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • शासन, पारदर्शिता और व्यवसाय की सुगमता में डिजिटलीकरण की भूमिका को परिभाषित कीजिये। 
  • कानूनी एकरूपता, डिजिटल मैपिंग और साइबर सुरक्षा जैसे लाभों, चुनौतियों एवं आवश्यक सुधारों पर प्रकाश डालिये। 
  • उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण से शासन में सुधार होता है, विवादों में कमी आती है और व्यापार करने में सरलता होती हैडिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (DILRMP) प्रौद्योगिकी के माध्यम से भूमि प्रशासन को आधुनिक बनाता है, जिससे पारदर्शिता सुनिश्चित होती है। हालाँकि कानूनी जटिलताएँ, पुराने रिकॉर्ड और साइबर सुरक्षा जोखिम जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जिनके लिये भारत में निर्बाध कार्यान्वयन एवं प्रभावी भूमि प्रशासन के लिये रणनीतिक सुधारों की आवश्यकता है।

मुख्य भाग:

भूमि प्रशासन और पारदर्शिता को बढ़ाना

  • भूमि धोखाधड़ी और अतिक्रमण की रोकथाम
    • डिजिटल भूमि अभिलेख जालसाज़ी, अनधिकृत हस्तांतरण और अवैध अतिक्रमण को रोकने में मदद करते हैं
    • विशिष्ट भूमि पार्सल पहचान संख्या (ULPIN) प्रत्येक भूखंड को एक सुरक्षित और अटूट पहचान प्रदान करती है।
  • भूमि विवाद और मुकदमेबाज़ी में कमी
    • अधिकारों के अभिलेखों (ROR) के वास्तविक समय अद्यतन से स्वामित्व को लेकर टकराव कम हो जाता है।
    • ई-न्यायालय के एकीकरण से विवादों के तेज़ी से समाधान में मदद मिलती है और कानूनी मामलों के लंबित रहने की समस्या कम होती है।
  • बेहतर भूमि प्रशासन और नीति नियोजन
    • डिजिटल भूमि डेटाबेस अंतर-विभागीय समन्वय (राजस्व, पंजीकरण, शहरी नियोजन) की अनुमति देता है।
    • सटीक भूमि उपयोग डेटा बुनियादी ढाँचे के विकास, पर्यावरण संरक्षण और कृषि योजना का समर्थन करता है
  • कृषि उत्पादकता में सुधार
    • किसान डिजिटल भूमि रिकॉर्ड को संपार्श्विक के रूप में उपयोग करके आसानी से ऋण प्राप्त कर सकते हैं
    • भू-संदर्भ और भू-संग्रह मानचित्रण से भूमि का कुशल उपयोग एवं सब्सिडी लक्ष्य निर्धारण संभव होता है।
  • विदेशी और घरेलू निवेश को सुविधाजनक बनाना
    • स्पष्ट भूमि स्वामित्व अधिकार रियल एस्टेट, औद्योगिक परियोजनाओं और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्रों के लिये जोखिम को कम करते हैं।
    • भूमि के डिजिटलीकरण से नौकरशाही में देरी कम होती है, जिससे व्यवसायों के लिये कानूनी रूप से भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया सुगम हो जाती है।
  • तीव्र और पारदर्शी भूमि लेन-देन
    • ऑनलाइन भूमि पंजीकरण और ई-हस्ताक्षर खरीद और बिक्री प्रक्रिया को सरल बनाते हैं।
    • राष्ट्रीय जेनेरिक दस्तावेज़ पंजीकरण प्रणाली (NGDRS) के साथ एकीकरण से निर्बाध संपत्ति लेन-देन सुनिश्चित होता है।

कार्यान्वयन में चुनौतियाँ

  • पुराने और अधूरे भूमि अभिलेख
    • कई राज्य अभी भी हस्तलिखित, गलत भूमि अभिलेखों पर निर्भर हैं, जिससे डिजिटलीकरण असंगत हो रहा है
    • भूकर मानचित्र अधूरे हैं, जिससे स्वामित्व विवरण में स्पष्टता प्रभावित होती है।
  • कानूनी जटिलताएँ और अतिव्यापी विनियमन
    • विभिन्न राज्यों के परस्पर विरोधी भूमि कानूनों के कारण भूमि उपयोग, पट्टे और लेन-देन की प्रक्रिया में भ्रम उत्पन्न होता है।
    • संपत्ति अधिकार मौलिक अधिकार नहीं हैं, जो अनुचित अधिग्रहण के विरुद्ध कानूनी संरक्षण को सीमित करता है।
  • नौकरशाही का प्रतिरोध और कुशल जनशक्ति का अभाव
    • नियंत्रण खोने के डर से राजस्व अधिकारी अक्सर स्वचालन का विरोध करते हैं।
    • GIS मानचित्रण, सुदूर संवेदन और भूमि डेटाबेस प्रबंधन में प्रशिक्षित कर्मियों की कमी होना।
  • अन्य ई-गवर्नेंस प्लेटफॉर्मों के साथ धीमा एकीकरण
    • भूमि अभिलेखों, बैंकों, कर विभागों और आधार डेटाबेस के बीच अपूर्ण संबंध होना।
    • विनियामक बाधाओं के कारण बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिये भूमि बैंकों का कम उपयोग हो रहा है
  • सीमित सार्वजनिक जागरूकता और पहुँच संबंधी मुद्दे
    • कई ग्रामीण नागरिकों में ऑनलाइन भूमि रिकॉर्ड और डिजिटल प्लेटफॉर्म के बारे में जागरूकता की कमी है
    • दूर-दराज़ के क्षेत्रों में खराब इंटरनेट कनेक्टिविटी भूमि डेटा तक वास्तविक समय पर पहुँच में बाधा डालती है।
  • साइबर सुरक्षा जोखिम और डेटा गोपनीयता चिंताएँ
    • भूमि अभिलेखों में संवेदनशील स्वामित्व विवरण शामिल होते हैं, जिससे वे साइबर हमलों और डेटा चोरी के जोखिम में रहते हैं।
    • मज़बूत एन्क्रिप्शन और साइबर सुरक्षा ढाँचे की कमी से डेटा उल्लंघन का जोखिम बढ़ जाता है।

प्रभावी कार्यान्वयन के लिये सुधार

  • कानूनी और नीतिगत सुधार
    • राज्यों में भूमि कानूनों को मानकीकृत करने के लिये एक समान भूमि संहिता स्थापित करनी चाहिये।
    • निष्पक्ष भूमि अधिग्रहण और संपत्ति अधिकारों के संरक्षण के लिये न्यायिक निगरानी सुनिश्चित करनी चाहिये।
  • व्यापक डिजिटल मानचित्रण और भू-संदर्भन
    • सटीक भूमि सीमाओं को सुनिश्चित करने के लिये GPS, GIS, और सुदूर संवेदन सर्वेक्षण पूर्ण करने चाहिये
    • सभी भूमि पार्सलों के लिये 100% विशिष्ट भूमि पार्सल पहचान संख्या (ULPIN) कवरेज लागू करना चाहिये।
  • क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण कार्यक्रम
    • राजस्व अधिकारियों, सर्वेक्षणकर्त्ताओं और भूमि प्रबंधकों को आधुनिक डिजिटल उपकरणों में प्रशिक्षित करना चाहिये।
    • राज्य स्तरीय डिजिटलीकरण प्रयासों के लिये राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) के समर्थन को मज़बूत करना चाहिये।
  • साइबर सुरक्षा सुदृढ़ीकरण और डेटा संरक्षण कानून
    • भूमि डेटाबेस के लिये एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन लागू करना चाहिये।
    • नियमित सुरक्षा ऑडिट आयोजित करें और सख्त डेटा गोपनीयता नीतियाँ लागू करनी चाहिये
  • बेहतर सार्वजनिक जागरूकता और डिजिटल पहुँच
    • भूमि रिकॉर्ड पोर्टल के उपयोग के बारे में नागरिकों को शिक्षित करने के लिये जागरूकता अभियान शुरू करना चाहिये।
    • ग्रामीण आबादी के लिये बहुभाषी इंटरफेस और ऑफलाइन पहुँच प्रदान करनी चाहिये।
  • अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म के साथ सहज एकीकरण
    • वास्तविक समय सत्यापन के लिये भूमि अभिलेखों को बैंकिंग प्रणालियों, कर विभागों और आधार डेटाबेस से जोड़ना चाहिये।
    • भूमि के ई-पंजीकरण के लिये सभी राज्यों मेंNGDRS (राष्ट्रीय जेनेरिक दस्तावेज़ पंजीकरण प्रणाली) का विस्तार किया जाएगा।

निष्कर्ष:

भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण पारदर्शिता, आर्थिक विकास और कुशल भूमि प्रबंधन को बढ़ावा देता है। DILRMP की प्रगति के बावजूद, कानूनी जटिलताएँ, प्रशासनिक जड़ता और साइबर सुरक्षा जोखिम बने हुए हैं। कानूनी सुधार, डिजिटल मैपिंग और सार्वजनिक पहुँच आवश्यक हैं। प्रभावी कार्यान्वयन भ्रष्टाचार को कम कर सकता है, निवेश आकर्षित कर सकता है और एक मज़बूत भूमि शासन प्रणाली के लिये नागरिकों को सशक्त बना सकता है।