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24 Mar 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 2
राजव्यवस्था
दिवस: 19. सहकारी संघवाद केंद्र और राज्यों के बीच संतुलित संबंध की अवधारणा को प्रतिबिंबित करता है, लेकिन इसके कार्यान्वयन में कई चुनौतियाँ एवं विवाद उत्पन्न होते हैं। विश्लेषण कीजिये। (38 अंक)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- सहकारी संघवाद शब्द को परिभाषित करते हुए संक्षेप में उत्तर दीजिये।
- केंद्र और राज्य के बीच विभिन्न मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
- भारत में सहकारी संघवाद को मज़बूत करने के लिये कुछ महत्त्वपूर्ण उपाय सुझाइये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
सहकारी संघवाद केंद्र और राज्यों के बीच एक सहयोगी भागीदारी को दर्शाता है, जो आपसी सहयोग के माध्यम से शासन सुनिश्चित करता है। ग्रैनविले ऑस्टिन ने भारतीय संघवाद को "सहकारी संघवाद" कहा, जिसमें राज्यों को कमज़ोर किये बिना एक मज़बूत केंद्र पर ज़ोर दिया गया। हालाँकि इस आदर्श के बावजूद, विभिन्न चुनौतियाँ प्रभावी केंद्र-राज्य संबंधों में बाधा डालती हैं, जिसके लिये तत्काल सुधार की आवश्यकता है।
मुख्य भाग:
केंद्र-राज्य संबंधों में चुनौतियाँ
- अंतर-राज्यीय परिषद (ISC) की अप्रभावीता
- अनुच्छेद 263 में केंद्र-राज्य परामर्श के लिये एक अंतर-राज्य परिषद (ISC) का प्रावधान है, लेकिन यह अंतर-राज्यीय जल विवादों जैसे बड़े विवादों को सुलझाने में विफल रहा है।
- सत्ता का अति-केंद्रीकरण
- भारत का अर्ध-संघीय ढाँचा केंद्र को अधिक अधिकार और वित्तीय नियंत्रण देता है।
- अवशिष्ट शक्तियाँ और संघ सूची के अंतर्गत विषयों की अधिक संख्या राज्य की भागीदारी को कमज़ोर करती है।
- राजकोषीय असंतुलन और कराधान संबंधी मुद्दे
- GST व्यवस्था के तहत राज्यों को कराधान की स्वायत्तता सीमित है और वे अपने राजस्व के अधिकांश भाग के लिये केंद्र पर निर्भर हैं।
- राज्य पेट्रोल, डीज़ल और शराब पर कर लगा सकते हैं, लेकिन प्रमुख राजस्व स्रोत केंद्रीय नियंत्रण में हैं।
- वित्त आयोग में राज्यों का कम प्रतिनिधित्व
- वित्त आयोग की सिफारिशें संसद में प्रस्तुत की जाती हैं, लेकिन राज्यों का प्रत्यक्ष प्रतिनिधित्व नहीं होता ।
- राज्यों के पास वित्त आयोग की सिफारिशों को चुनौती देने या लागू करने के लिए कोई तंत्र मौजूद नहीं है , जिससे राजकोषीय संघवाद प्रभावित होता है।
- राष्ट्रपति शासन का दुरुपयोग (अनुच्छेद 356)
- केंद्र किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा सकता है, जिससे अक्सर राजनीतिक दुरुपयोग होता है ।
- वर्ष 1947 और 1977 के बीच, इसका प्रयोग 44 बार किया गया, मुख्यतः विपक्ष के नेतृत्व वाली सरकारों को अस्थिर करने के लिये।
- एस.आर. बोम्मई मामले (1994) ने इसके दुरुपयोग को प्रतिबंधित कर दिया, लेकिन चिंताएँ बनी हुई हैं।
- केंद्र और राज्यों के बीच विश्वास की कमी
- GST मुआवज़े में विलंब और विभाज्य कर पूल के सिकुड़ने से केंद्र की संघवाद के प्रति प्रतिबद्धता पर चिंताएँ बढ़ गई हैं।
- केरल जैसे राज्यों ने अनुच्छेद 131 के तहत नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), 2019 को चुनौती दी, जिससे केंद्र-राज्य संबंधों में तनाव उजागर हुआ।
सहकारी संघवाद को मज़बूत करने के उपाय
- अंतर-राज्यीय परिषद (ISC) को मज़बूत बनाना
- समवर्ती सूची के विषयों और राज्य की चिंताओं पर चर्चा करने के लिये अधिक अधिकार के साथ ISC को संस्थागत बनाना।
- राजकोषीय स्वायत्तता बढ़ाना
- वित्तीय स्थिरता बनाए रखने के लिये वित्त आयोग में राज्यों की भागीदारी और समय पर GST मुआवज़ा सुनिश्चित करने की आवश्यकता।
- राज्यों के लिये अप्रतिबंधित निधि में वृद्धि करना, जिससे व्यय प्राथमिकताओं में अनुकूलन आ सके।
- सत्ता का विकेंद्रीकरण
- सहायकता के सिद्धांत को लागू करना, स्थानीय निकायों को ज़मीनी स्तर के मुद्दों को संभालने की अनुमति देना।
- कुशल शासन के लिये राज्य के विषयों में केंद्रीय हस्तक्षेप को कम करना।
- राज्य अनुकूलन के साथ आदर्श कानून
- ऐसे आदर्श कानूनों को प्रोत्साहित करना जिन्हें राज्य स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप अपना सकें तथा शासन में विविधता सुनिश्चित करना।
- नीति-निर्माण में राज्य की भागीदारी को मज़बूत करना
- नीति आयोग और राष्ट्रीय नीति चर्चाओं में राज्यों की अधिक भागीदारी।
निष्कर्ष:
सच्चे सहकारी संघवाद के लिये, केंद्र को वित्तीय और प्रशासनिक स्वायत्तता सुनिश्चित करते हुए निर्णय लेने में राज्यों को शामिल करना चाहिये। संस्थागत तंत्र और विकेंद्रीकरण को मज़बूत करने से संतुलित संघीय ढाँचे एवं समावेशी विकास का मार्ग प्रशस्त होगा।