08 Apr 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | साइंस और टेक्नोलॉजी
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- आदित्य एल1 मिशन का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- मिशन के उद्देश्य को विस्तार से बताइये तथा इसके संभावित परिणामों पर चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
वर्ष 2023 में इसरो द्वारा प्रक्षेपित 'आदित्य-एल1' मिशन, भारत की पहली अंतरिक्ष-आधारित सौर वेधशाला है, जिसका उद्देश्य सूर्य तथा पृथ्वी पर उसके प्रभावों की वैज्ञानिक समझ को और अधिक सुदृढ़ करना है। यह मिशन भारत की अंतरिक्ष तथा वैज्ञानिक आकांक्षाओं की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम दर्शाता है।

मुख्य भाग:
आदित्य-एल1 मिशन के मुख्य वैज्ञानिक उद्देश्य:
- सौर परत अवलोकन: मिशन का उद्देश्य सौर कोरोना, क्रोमोस्फीयर, फोटोस्फीयर और सौर वायु गतिशीलता का अध्ययन करना है, जिससे सौर वायुमंडलीय परतों के ज्ञान में सुधार होगा।
- सौर गतिविधि निगरानी: यह मिशन सौर ज्वालाओं, कोरोनल मास इजेक्शन (CME) तथा सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र में होने वाले परिवर्तनों का अवलोकन करेगा, जिससे तीव्र सौर घटनाओं की प्रकृति और प्रभावों को समझने में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होगी।
- उन्नत पेलोड: अंतरिक्ष यान में सात उन्नत पेलोड हैं, जिनमें SUIT, VELC और SoLEXS शामिल हैं, जिन्हें विभिन्न सौर गतिविधियों और विद्युत चुंबकीय विकिरण की निगरानी के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- एल1 लाभ: लैग्रेंज बिंदु 1 (एल1) पर स्थित होने के कारण, उपग्रह सूर्य का निरंतर, निर्बाध अवलोकन कर सकेगा तथा ग्रहणों और पृथ्वी की छाया से बच सकेगा।
- जलवायु संबंध: मिशन सौर विकिरण परिवर्तनशीलता पर डेटा एकत्र करेगा, जो पृथ्वी पर जलवायु मॉडल और मौसम की भविष्यवाणी में योगदान देगा।
- अंतरिक्ष मौसम अनुसंधान: आदित्य-एल1 मिशन अंतरिक्ष मौसम को प्रभावित करने वाले कारकों का विश्लेषण करेगा, जो उपग्रहों, GPS प्रणालियों एवं संचार अवसंरचना को सौर विकृतियों से सुरक्षित रखने के लिये अत्यंत आवश्यक है।
मिशन का व्यापक महत्त्व:
- प्रभाव शमन: यह मिशन अंतरिक्ष मौसम पूर्वानुमान में योगदान देता है तथा विद्युत ग्रिड, विमानन और सैन्य संचार पर प्रभाव को कम करने में मदद करता है।
- खगोल भौतिकी अनुसंधान: यह प्लाज़्मा भौतिकी, चुंबकीय पुनर्संयोजन और सौर चुंबकीय क्षेत्र निर्माण की वैश्विक समझ को बढ़ाता है, जिससे खगोल भौतिकी अनुसंधान समृद्ध होता है।
- पूर्व चेतावनी क्षमता: L1 से निरंतर अवलोकन भू-चुंबकीय तूफानों के लिये पूर्व चेतावनी प्रणालियों को समर्थन प्रदान करता है, जिससे अंतरिक्ष यात्रियों और अंतरिक्ष यान के लिये जोखिम कम हो जाता है।
- वैश्विक मान्यता: आदित्य-एल1 की सफलता ने भारत को स्वतंत्र सौर वेधशाला क्षमताओं वाले चुनिंदा देशों के समूह में शामिल कर दिया है, जिससे वैश्विक स्तर पर वैज्ञानिक प्रतिष्ठा में सुधार हुआ है।
- संलयन ऊर्जा अंतर्दृष्टि: मिशन से प्राप्त अंतर्दृष्टि संलयन ऊर्जा अनुसंधान में सहायक हो सकती है, क्योंकि सूर्य एक प्राकृतिक परमाणु संलयन रिएक्टर के रूप में कार्य करता है, जो सतत् ऊर्जा नवाचार को प्रेरित करता है।
- तकनीकी उन्नति: तकनीकी रूप से, यह मिशन इसरो की सटीक नेविगेशन, गहन अंतरिक्ष संचार और पेलोड लघुकरण क्षमताओं को प्रदर्शित करता है।
- क्षमता निर्माण: यह हेलो ऑर्बिट संचालन और वास्तविक समय सौर निगरानी में व्यावहारिक अनुभव प्रदान करता है, जिससे भविष्य के अंतर-ग्रहीय मिशनों के लिये भारत की विशेषज्ञता में वृद्धि होगी।
- लागत दक्षता: PSLV-C57 के माध्यम से मिशन का लागत प्रभावी निष्पादन किफायती अंतरिक्ष विज्ञान में भारत की बढ़ती क्षमता को रेखांकित करता है।
- युवा और सहयोग: यह हीलियोफिजिक्स में अकादमिक और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देता है तथा उन्नत अंतरिक्ष अनुसंधान में युवाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करता है।
निष्कर्ष:
आदित्य-एल1 केवल एक सौर मिशन नहीं है, बल्कि वैज्ञानिक सफलताओं, रणनीतिक अनुकूलन और तकनीकी नवाचार का प्रवेश द्वार है। यह मिशन न केवल अंतरिक्ष अन्वेषण में भारत की भूमिका को सुदृढ़ करता है, बल्कि पृथ्वी की जलवायु, ऊर्जा के भविष्य तथा ग्रहीय सुरक्षा से संबंधित विषयों पर उपयोगी एवं क्रियान्वयन योग्य जानकारी भी प्रदान करता है।