70th BPSC Mains

दिवस- 5: बिहार में पाश्चात्य शिक्षा के प्रसार और उसके सामाजिक प्रभावों का मूल्यांकन कीजिये। (38 अंक)

07 Mar 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | इतिहास

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • बिहार में पाश्चात्य शिक्षा के विस्तार का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • सांप्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता पर उनके विचारों पर चर्चा कीजिये।
  • उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

19वीं सदी के मध्य और 20वीं सदी की शुरुआत के बीच बिहार में पश्चिमी शिक्षा के विस्तार ने क्षेत्र के सामाजिक ताने-बाने को बदल दिया, आधुनिकीकरण और सुधार की नींव रखी। यह मॉडल उत्तर प्रमुख विकासों और समाज पर उनके गहन प्रभाव का पता लगाता है।

मुख्य भाग:

बिहार में पाश्चात्य शिक्षा का विस्तार:

  • शैक्षिक संस्थाओं की स्थापना:
    • औपनिवेशिक प्रशासन ने अग्रणी संस्थानों की स्थापना की, विशेष रूप से पटना कॉलेज (1863) और बिहार स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग (1900), जिन्होंने विज्ञान, गणित तथा अंग्रेज़ी भाषा पर जोर देते हुए आधुनिक पाठ्यक्रम प्रस्तुत किये।
    • इन संस्थाओं ने एक शिक्षित अभिजात वर्ग के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने बाद में प्रशासनिक सुधारों और राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान दिया।
    • बाद में, पटना विश्वविद्यालय (1917) और इंडियन स्कूल ऑफ माइन्स (1926), पटना इंजीनियरिंग कॉलेज एवं पटना मेडिकल कॉलेज (1925) जैसे विशिष्ट संस्थानों की स्थापना ने उच्च शिक्षा तथा तकनीकी विशेषज्ञता की ओर संक्रमण को चिह्नित किया।
  • मिशनरी और सरकारी पहल:
    • पटना जेसुइट्स सहित ईसाई मिशनरियों ने अंग्रेज़ी शिक्षा और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने वाले स्कूलों की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे साक्षरता दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
    • 1813 के चार्टर एक्ट और लॉर्ड विलियम बेंटिक के 1835 के निर्देश ने मैकाले प्रस्ताव के लिये मंच तैयार किया, जिसके तहत शहरों के ज़िला स्कूलों में अंग्रेज़ी को शिक्षा का माध्यम बना दिया गया।
    • इन सरकारी उपायों को, 1854 में चार्ल्स वुड द्वारा जारी "अंग्रेज़ी शिक्षा के मैग्ना कार्टा" द्वारा और अधिक बल मिला, जिसने बिहार में पश्चिमी शिक्षा के व्यवस्थित प्रसार के लिये आवश्यक संस्थागत समर्थन प्रदान किया।

समाज पर प्रभाव:

  • पश्चिमी शिक्षा के प्रसार से एक आधुनिक शिक्षित मध्यम वर्ग का उदय हुआ, जो सामाजिक और राजनीतिक दोनों सुधारों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने लगा।
  • लोकतंत्र, समानता और कानून के शासन जैसे उदार मूल्यों के संपर्क ने बौद्धिक जागृति को उत्प्रेरित किया, पारंपरिक रीति-रिवाज़ों के आलोचनात्मक मूल्यांकन को प्रेरित किया तथा सामाजिक सुधार आंदोलनों को गति दी।
  • सेंट जोसेफ स्कूल (1847) और बाद में पटना महिला कॉलेज (1940) जैसे संस्थानों के खुलने से महिला शिक्षा में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई, जिससे धीरे-धीरे लैंगिक असमानताओं को चुनौती मिली तथा सशक्तीकरण को बढ़ावा मिला।
  • यद्यपि अंग्रेज़ों ने आम जनता की शिक्षा की उपेक्षा की - जिसका प्रमाण स्वतंत्रता के समय कम साक्षरता दर है - पश्चिमी शैक्षिक सिद्धांतों के लागू होने से एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण और आलोचनात्मक मानसिकता उत्पन्न हुई, जिसने अंततः स्वतंत्रता एवं आधुनिक शासन की मांग को बढ़ावा दिया।

निष्कर्ष:

बिहार में पश्चिमी शिक्षा के विस्तार ने मज़बूत शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना, प्रगतिशील मूल्यों को बढ़ावा देने और सामाजिक सुधार को बढ़ावा देकर क्षेत्र के आधुनिकीकरण को गति दी। इन परिवर्तनों ने न केवल बिहार के बौद्धिक परिदृश्य को बदल दिया, बल्कि स्वतंत्रता के लिये व्यापक राष्ट्रीय आंदोलन में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।