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70th BPSC Mains

  • 06 Mar 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    दिवस-04: संथाल विद्रोह के प्रमुख कारण क्या थे तथा इसके प्रमुख चरण और अंतिम परिणाम क्या हुए? (38 अंक)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • संथाल विद्रोह का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • कारण, प्रमुख चरण और अंतिम परिणामों पर चर्चा कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय: संथाल विद्रोह (1855-56) ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक प्रमुख आदिवासी विद्रोह था, जो आर्थिक शोषण और सामाजिक उत्पीड़न से प्रेरित था। सिद्धू, कान्हू, चाँद और भैरव मुर्मू के नेतृत्व में, इसने ज़मींदारी व्यवस्था को चुनौती दी एवं भविष्य के स्वदेशी प्रतिरोध को प्रेरित किया।

    मुख्य भाग:

    संथाल विद्रोह के प्रमुख कारक और चरण:

    आर्थिक शोषण और भूमि अधिग्रहण:

    • भूमि अधिग्रहण एवं ज़मींदारी प्रथा:
      • 1793 के स्थायी बंदोबस्त अधिनियम और उसके बाद ज़मींदारी प्रथा के लागू होने के परिणामस्वरूप संथालों की भूमि पर व्यवस्थित रूप से कब्ज़ा कर लिया गया।
      • ब्रिटिश अधिकारियों और ज़मींदारों ने राजस्व के लिये आदिवासियों की भूमि का शोषण किया, पारंपरिक भूमि स्वामित्व को खत्म किया तथा संथालों को बँधुआ मज़दूरी एवं अत्यधिक गरीबी में धकेल दिया।
    • शोषणकारी प्रथाएँ और ऋण जाल:
      • वर्ष 1832 में जनजातीय भूमि में हस्तक्षेप न करने के संबंध में किये गए वादे जल्द ही तोड़ दिये गए, जिसके परिणामस्वरूप भारी कराधान और उच्च लगान लागू हो गए।
      • जबरन श्रम (बेगारी) और अत्यधिक ब्याज दरों के कारण बढ़ते ऋण जाल ने किसानों को शोषण का शिकार बनाया, जिससे बड़े पैमाने पर भूमि ज़ब्ती हुई।
    • अतिक्रमण और सांस्कृतिक दमन:
    • बाहरी लोगों (डिकू) द्वारा अतिक्रमण:
      • औपनिवेशिक नीति ने संथाल क्षेत्रों में दीकुओं (बाहरी लोग जैसे ज़मींदार, व्यापारी और साहूकार) के प्रवास को प्रोत्साहित किया।
      • इन बाहरी लोगों ने शीघ्र ही कृषि, व्यापार और वानिकी पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया, जबकि स्थानांतरित खेती पर प्रतिबंध ने संथालों की पारंपरिक कृषि पद्धतियों को कमज़ोर कर दिया।
    • सांस्कृतिक एवं धार्मिक दमन:
      • ब्रिटिश कानूनी प्रतिबंधों और आक्रामक ईसाई मिशनरी गतिविधियों ने पारंपरिक संथाल आध्यात्मिक प्रथाओं को नष्ट कर दिया।
      • संथाल पुजारियों (पहानों) के घटते प्रभाव ने समुदाय को और अधिक अलग-थलग कर दिया तथा प्रतिरोध को तीव्र कर दिया।
    • राजनीतिक हाशिये पर जाना और जनजातीय स्वायत्तता का टूटना:
      • स्वशासी परहा पंचायत प्रणाली को औपनिवेशिक प्रशासन ने कमज़ोर कर दिया, जिससे आदिवासी नेताओं की जगह ज़मींदारों और ब्रिटिश अधिकारियों का प्रभुत्व स्थापित हो गया।
      • जनजातीय स्वायत्तता की हानि और व्यवस्थित राजनीतिक हाशिये पर धकेले जाने से संथालों में अन्याय की भावना और गहरी हो गई।
    • तत्काल ट्रिगर:
      • एक मामूली-सी चोरी की घटना के कारण पुलिस की मदद से एक साहूकार ने कई संथालों को गिरफ्तार कर लिया।
      • जवाबी कार्रवाई में संथालों ने पुलिस इंस्पेक्टर की हत्या कर दी - यह एक निर्णायक कार्रवाई थी, जिसने संघर्ष को पूर्ण विद्रोह में बदल दिया।
    • विद्रोह का प्रकटीकरण:
      • नेतृत्व और संगठन:
        • इस विद्रोह का नेतृत्व सिद्धू, कान्हू, चाँद और भैरव मुर्मू जैसे करिश्माई नेताओं ने किया था।
        • उन्होंने हज़ारों संथालों को एक सुव्यवस्थित बल में संगठित किया तथा अलग-अलग समूहों को एक साझा उद्देश्य के तहत एकजुट किया।
      • गुरिल्ला युद्ध एवं सामरिक प्रगति:
        • विद्रोहियों ने गुरिल्ला युद्ध रणनीति अपनाते हुए ब्रिटिश अधिकारियों, पुलिस चौकियों और ज़मींदारों पर अचानक हमले किये।
        • स्थानीय भू-भाग के बारे में उनकी गहन जानकारी ने हिट-एंड-रन ऑपरेशनों में रणनीतिक लाभ प्रदान किया।
        • विद्रोहियों ने वर्तमान झारखंड, पश्चिम बंगाल और बिहार के विशाल क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया एवं न्यायालयी अभिलेखों तथा रेलवे बुनियादी ढाँचे जैसे ब्रिटिश सत्ता के प्रतीकों को सक्रिय रूप से नष्ट कर दिया।
      • ब्रिटिश सैन्य प्रतिक्रिया:
        • मेजर बैरो के नेतृत्व में विद्रोह को दबाने के लिये किये गए प्रारंभिक ब्रिटिश अभियान विफल साबित हुए।
      • जवाब में, अंग्रेज़ों ने उन्नत तोपखाने के साथ एक बड़ी, बेहतर सुसज्जित सेना तैनात की, अंततः मार्शल लॉ लागू कर दिया और क्रूर दमन शुरू कर दिया।

    विद्रोह का अंत और उसका परिणाम:

    • क्रूर दमन एवं हताहत:
      • बंदूकों और तोपखाने सहित अंग्रेज़ों की बेहतर मारक क्षमता के कारण संथाल लड़ाकों को भारी क्षति हुई।
      • इस विद्रोह में सामूहिक हत्याएँ, गाँवों को जलाना और सार्वजनिक रूप से फाँसी देना शामिल था, जिसमें अनुमानतः 15,000 संथाल मारे गए।
      • सिद्धू और कान्हू जैसे प्रमुख नेताओं की जान चली गई, जिससे संगठित प्रतिरोध के पतन का संकेत मिला।
    • विरासत और नीति सुधार:
      • इसके दमन के बावजूद, विद्रोह ने अंग्रेज़ों को वर्ष 1876 में एक विशेष प्रशासनिक क्षेत्र - संथाल परगना की स्थापना करके संथालों की शिकायतों को दूर करने के लिये मजबूर किया।
      • इसके बाद संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम (1876) को संथाल भूमि अधिकारों की रक्षा और पारंपरिक शासन के कुछ तत्त्वों को बहाल करने के लिये प्रस्तुत किया गया।
      • इस विद्रोह ने भविष्य के जनजातीय आंदोलनों और राष्ट्रीय प्रतिरोध पर स्थायी प्रभाव छोड़ा तथा आर्थिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक सुधारों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।

    निष्कर्ष: शोषण और उत्पीड़न से प्रेरित संथाल विद्रोह में आदिवासियों का भयंकर प्रतिरोध देखने को मिला। हालाँकि अंततः इसे दबा दिया गया, लेकिन इसने नीतिगत सुधारों को उत्पन्न दिया और यह भारत में स्वदेशी संघर्ष तथा अधिकारों का एक शक्तिशाली प्रतीक बना हुआ है।

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