70th BPSC Mains

दिवस- 5: रवींद्रनाथ टैगोर के राष्ट्रवाद संबंधी विचारों और उनके दृष्टिकोण का विश्लेषण कीजिये। (38 अंक)

07 Mar 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | इतिहास

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • रवींद्रनाथ टैगोर और उनके योगदान का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • राष्ट्रवाद की अवधारणा पर उनके विचारों और परिप्रेक्ष्य पर चर्चा कीजिये।
  • उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

प्रसिद्ध कवि और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने राष्ट्रवाद को पश्चिम की आक्रामक, क्षेत्रीय देशभक्ति से अलग नज़रिये से देखा। हालाँकि प्रारंभ में वे राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रभावित थे, लेकिन बाद में उन्होंने कट्टर राष्ट्रवाद को अस्वीकार कर दिया और सार्वभौमिक मानवतावाद, सांस्कृतिक समरसता तथा आध्यात्मिक एकता पर आधारित एक व्यापक वैश्विक दृष्टिकोण को अपनाया।

मुख्य भाग:

राष्ट्रवाद पर टैगोर के विचारों के प्रमुख पहलू:

  • राष्ट्रवाद को संदर्भित करना:
    • टैगोर ने राष्ट्रवाद के यूरोकेंद्रित मॉडल की आलोचना की तथा इसे स्वाभाविक रूप से अंधराष्ट्रवादी एवं राजनीतिक और आर्थिक शक्ति की निरंतर खोज से प्रेरित बताया।
  • राष्ट्रवाद के साथ प्रारंभिक जुड़ाव:
    • देशभक्ति की शुरुआत:
      • अपने प्रारंभिक कॅरियर में, टैगोर ने अपनी कविताओं, गीतों और निबंधों के माध्यम से देशभक्ति की भावना व्यक्त की तथा भारत में उभरते राष्ट्रवादी आंदोलन में योगदान दिया।
    • मोहभंग:
      • समय के साथ, जब उन्होंने कई राष्ट्रवादी नेताओं में हिंसा, स्वार्थ और भौतिकवादी महत्त्वाकांक्षाओं को देखा, तो वे पश्चिमी शैली के राष्ट्रवाद की संकीर्णता से विमुख हो गए।
  • मुख्य आलोचनाएँ और वैकल्पिक दृष्टि:
    • आक्रामक राष्ट्रवाद की अस्वीकृति:
      • टैगोर ने तर्क दिया कि संकीर्ण राष्ट्रवाद - जो क्षेत्रीयता और सत्ता के लिये प्रतिस्पर्द्धात्मक खोज पर ज़ोर देता है - अनिवार्य रूप से विभाजन एवं संघर्ष की ओर ले जाता है।
      • उनका मानना ​​था कि इस प्रकार का राष्ट्रवाद आवश्यक मानवीय मूल्यों की अनदेखी करता है तथा वास्तविक सामाजिक प्रगति की संभावना को कमज़ोर करता है।
    • विश्वनागरिकता हेतु समर्थन:
      • विशिष्ट देशभक्ति के स्थान पर टैगोर ने विश्वव्यापी दृष्टिकोण का समर्थन किया, जहाँ सांस्कृतिक विविधता, आध्यात्मिकता और पारस्परिक सम्मान सर्वोपरि थे।
      • उन्होंने एक ऐसे विश्व की कल्पना की थी जहाँ व्यक्ति स्वयं को एक वैश्विक समुदाय का हिस्सा मानते थे तथा संकीर्ण निष्ठाओं के स्थान पर सहयोग और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देते थे।
  • उनके विचारों की साहित्यिक अभिव्यक्तियाँ:
    • उल्लेखनीय कार्य:
      • टैगोर के उपन्यास, जैसे गोरा (1909), घरे बाइरे (1916) और चार अध्याय (1934), देशभक्ति एवं विश्वव्यापीकरण के बीच तनाव का विशद रूप से पता लगाते हैं।
    • व्यापक प्रभाव:
      • टैगोर ने अपने लेखन के माध्यम से समाज को आध्यात्मिक मूल्यों और मानवतावादी सिद्धांतों की महत्ता का बोध कराने का प्रयास किया, जिन्हें वे आक्रामक राष्ट्रवादी एजेंडों की पूर्ति में उपेक्षित होते देख रहे थे।
  • विरासत और गलत व्याख्याएँ:
    • उनके विचारों की जटिलता:
      • कुछ विद्वानों का तर्क है कि टैगोर के सूक्ष्म दृष्टिकोण को महज़ राष्ट्र-विरोध कहकर अति सरलीकृत कर दिया गया है।
      • आलोचकों का मानना ​​है कि उनका काम देशभक्ति और अंतर्राष्ट्रीयता के परिष्कृत मिश्रण का प्रतीक है तथा राष्ट्रवाद के केवल विनाशकारी पहलुओं को खारिज करता है।
    • भावी आंदोलनों पर प्रभाव:
      • टैगोर के विचारों ने राष्ट्रीय पहचान और वैश्विक नागरिकता पर बहस को प्रेरित करना जारी रखा है तथा भारत एवं अन्य स्थानों पर जनजातीय और राष्ट्रीय सामाजिक आंदोलनों को प्रभावित किया है।

निष्कर्ष:

राष्ट्रवाद पर टैगोर का दृष्टिकोण आक्रामक, संकीर्ण देशभक्ति की गहन आलोचना है। विश्वव्यापीकरण, सार्वभौमिक मानवतावाद और आध्यात्मिक एकता पर ज़ोर देते हुए, उनके विचार एक स्थायी विरासत प्रदान करते हैं जो राष्ट्रीय पहचान की पारंपरिक धारणाओं को चुनौती देते हैं तथा वैश्विक अंतर्संबंध और सामाजिक न्याय पर प्रवचन को आकार देना जारी रखते हैं।