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10 Mar 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 1
भूगोल
दिवस-07: भारत-अमेरिका संबंधों की विकसित होती गतिशीलता का विश्लेषण कीजिये, जिसमें सहयोग के प्रमुख क्षेत्रों और वर्तमान चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित किया जाए। साथ ही, रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत करते हुए व्यापार असंतुलन को दूर करने के लिये संभावित उपायों पर चर्चा कीजिये। (38 अंक)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत-अमेरिका संबंधों और उनके सामरिक महत्त्व की चर्चा कीजिये।
- हालिया आँकड़ों और विकासों के आधार पर सहयोग के प्रमुख क्षेत्रों पर प्रकाश डालिये।
- द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित करने वाली चुनौतियों और व्यापार असंतुलन पर चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
भारत-अमेरिका संबंध रक्षा, व्यापार, प्रौद्योगिकी और ऊर्जा सुरक्षा तक फैली एक व्यापक वैश्विक रणनीतिक साझेदारी में विकसित हुए हैं। वाशिंगटन डीसी में हाल ही में हुए उच्च स्तरीय राजनयिक संवाद ने भू-राजनीतिक परिवर्तनों के बीच अनुकूलन दर्शाते हुए द्विपक्षीय सहयोग को और सुदृढ़ किया है। व्यापार असंतुलन और नियामक चुनौतियाँ प्रमुख चिंताएँ बनी हुई हैं, जो आर्थिक एवं रणनीतिक संबंधों को मज़बूत करने के लिये आपसी प्रयासों की आवश्यकता दर्शाती हैं।
मुख्य भाग:
भारत और अमेरिका के बीच सहयोग के प्रमुख क्षेत्र:
- रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग:
- भारत और अमेरिका ने क्रेता-विक्रेता मॉडल से सह-उत्पादन और प्रौद्योगिकी साझाकरण मॉडल को अपनाया है, जिससे रक्षा सहयोग बढ़ा है।
- भारत को प्रमुख रक्षा साझेदार (MDP) के रूप में नामित किये जाने और STA-1 में शामिल किये जाने से संभावित F-35 लड़ाकू जेट सहित उच्च तकनीक रक्षा प्रौद्योगिकी तक पहुँच सरल हो गई है।
- कई समझौते AI-संचालित रक्षा क्षमताओं को बढ़ावा देंगे, जिससे भारत की सैन्य आधुनिकीकरण को मज़बूती मिलेगी।
- टाइगर ट्रायम्फ जैसे संयुक्त सैन्य अभ्यास और रक्षा उपकरणों की खरीद से अंतर-संचालन क्षमता बढ़ती है।
- व्यापार और निवेश संबंध:
- अनुमान है कि वर्ष 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार 500 बिलियन डॉलर तक पहुँच जाएगा, जिसमें बाज़ार पहुँच के मुद्दे, टैरिफ और आपूर्ति शृंखला अनुकूलन शामिल होगा।
- भारत ने बॉर्बन, मोटरसाइकिल और ICT उत्पादों पर टैरिफ कम कर दिया है, जबकि अमेरिका ने भारतीय आमों, अनार एवं फार्मास्यूटिकल्स तक पहुँच प्रदान की है।
- ऊर्जा एवं जलवायु सहयोग:
- अमेरिका भारत को कच्चे तेल, LNG और पेट्रोलियम उत्पादों का प्रमुख आपूर्तिकर्त्ता बन गया है।
- अमेरिका-भारत ऊर्जा सुरक्षा साझेदारी (2025) हाइड्रोकार्बन व्यापार, नवीकरणीय और परमाणु ऊर्जा पर केंद्रित है।
- प्रौद्योगिकी और नवाचार साझेदारी:
- US-इंडिया ट्रस्ट इनिशिएटिव (2025) AI, सेमीकंडक्टर, क्वांटम कंप्यूटिंग और बायोटेक में सहयोग को बढ़ाता है।
- रिकवरी और प्रसंस्करण पहल दुर्लभ मृदा एवं महत्त्वपूर्ण खनिजों में सहयोग को बढ़ावा देती है, जो EVS और रक्षा अनुप्रयोगों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- अंतरिक्ष और भारत-प्रशांत सहयोग:
- निसार उपग्रह (2024) और नासा-इसरो मानव अंतरिक्ष उड़ान सहयोग गहन वैज्ञानिक तथा रणनीतिक सहयोग का प्रतीक है।
- आर्टेमिस समझौते (2023) में भारत का शामिल होना द्विपक्षीय अंतरिक्ष अन्वेषण प्रयासों को रेखांकित करता है।
- अमेरिकी नेतृत्व वाली संयुक्त समुद्री सेना (CMF) (2023) में भारत की पूर्ण सदस्यता क्षेत्रीय सुरक्षा और समुद्री निगरानी को बढ़ाती है।
भारत-अमेरिका संबंधों में प्रमुख चुनौतियाँ और व्यापार असंतुलन:
- व्यापार विवाद और टैरिफ बाधाएँ:
- भारत के साथ अमेरिकी वस्तु व्यापार घाटा 2024 में 5.4% बढ़कर 45.7 बिलियन डॉलर हो गया, जिससे वाशिंगटन में चिंता बढ़ गई है।
- अमेरिकी कृषि और औद्योगिक उत्पादों पर भारत द्वारा लगाए गए उच्च टैरिफ पर असहमति बनी हुई है, जबकि भारत फार्मास्यूटिकल्स तथा IT सेवाओं में अमेरिकी गैर-टैरिफ बाधाओं की आलोचना करता है।
- रक्षा प्रौद्योगिकी और निर्यात नियंत्रण प्रतिबंध:
- बढ़ते रक्षा संबंधों के बावजूद, अमेरिका पाँचवीं पीढ़ी के लड़ाकू जेट विमानों और उन्नत समुद्री प्रणालियों तक पहुँच को प्रतिबंधित करता है।
- पारस्परिक रक्षा खरीद (RDP) समझौते (2025) का उद्देश्य विनियामक विसंगतियों को हल करना और सह-विकास परियोजनाओं में सुधार करना है।
- सामरिक स्वायत्तता बनाम अमेरिकी अपेक्षाएँ:
- हालाँकि दोनों देश हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामकता का विरोध करते हैं, भारत अपनी गुटनिरपेक्ष नीति बनाए रखते हुए क्वाड साझेदारी के साथ-साथ ब्रिक्स और SCO से भी जुड़ा रहता है।
- वीज़ा और आव्रजन मुद्दे:
- H-1B वीज़ा कार्यक्रम विलंब, कोटा और कार्य परमिट प्रतिबंधों के कारण विवादास्पद मुद्दा बना हुआ है।
- अमेरिका में 3.3 लाख भारतीय छात्र (2024 तक) अमेरिकी अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान देंगे, जिससे वीज़ा प्रक्रिया आसान हो जाएगी।
- बहुपक्षीय असहमतियाँ:
- भारत की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिये अमेरिकी समर्थन के बावजूद, रूस नीति, विश्व व्यापार संगठन के व्यापार नियमों और डिजिटल शासन पर मतभेद मौजूद हैं।
- रूस के यूक्रेन आक्रमण पर भारत के तटस्थ रुख के कारण कूटनीतिक संबंधों पर अमेरिकी दबाव बढ़ गया है।
सामरिक और व्यापारिक संबंधों को मज़बूत करने के उपाय
- व्यापार बाधाओं का समाधान:
- कृषि, डिजिटल व्यापार और औद्योगिक वस्तुओं में टैरिफ एवं नियामक चुनौतियों को हल करने के लिये द्विपक्षीय व्यापार समझौते (BTA) (2025) को अंतिम रूप देना।
- आर्थिक सहयोग बढ़ाने के लिये अर्द्धचालकों, दुर्लभ मृदाओं और फार्मास्यूटिकल्स में आपूर्ति शृंखला एकीकरण को मज़बूत करना।
- अधिक अमेरिकी निवेश आकर्षित करने के लिये बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) विनियमों को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाना।
- रक्षा और प्रौद्योगिकी सहयोग बढ़ाना:
- AI, ड्रोन और समुद्री युद्ध प्रौद्योगिकियों के संयुक्त उत्पादन के लिये भारत-अमेरिका रक्षा औद्योगिक सहयोग रोडमैप का विस्तार करना।
- पारस्परिक रक्षा खरीद समझौते के माध्यम से रक्षा सह-विकास पहलों में तेज़ी लाना।
- ऊर्जा एवं जलवायु सहयोग में वृद्धि:
- स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण के लिये हरित हाइड्रोजन, कार्बन कैप्चर और छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों (SMR) में निवेश बढ़ाना।
- LNG और कच्चे तेल के व्यापार स्थिरता के लिये दीर्घकालिक ऊर्जा आपूर्ति समझौतों को मज़बूत करना।
- लोगों के बीच आपसी संपर्क और शैक्षिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना:
- कुशल भारतीय पेशेवरों के लिये उच्च H-1B वीज़ा सीमा और तीव्र ग्रीन कार्ड प्रसंस्करण पर बातचीत करना।
- भारत-अमेरिका दोहरे डिग्री कार्यक्रमों, संकाय आदान-प्रदान और AI-संचालित अनुसंधान साझेदारियों का विस्तार करना।
- डिजिटल और डेटा गवर्नेंस सहयोग को बढ़ाना:
- भारत की डेटा संप्रभुता से समझौता किये बिना सीमा पार तकनीकी सहयोग को सुविधाजनक बनाने के लिये डेटा संरक्षण कानूनों में सामंजस्य स्थापित करना।
- अमेरिकी प्रौद्योगिकी दिग्गजों को भारत में AI, फिनटेक और साइबर सुरक्षा अनुसंधान एवं विकास केंद्रों में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित करना।
निष्कर्ष:
भारत-अमेरिका के बीच सामरिक, तकनीकी और आर्थिक क्षेत्रों में संबंध मज़बूत हुए हैं, जिससे वैश्विक स्थिरता में योगदान मिला है। व्यापार असंतुलन और नीतिगत चुनौतियों के बावजूद, रक्षा, प्रौद्योगिकी तथा ऊर्जा में गहन सहयोग द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ा सकता है, जिससे बहुध्रुवीय दुनिया में स्थिर एवं समृद्ध भविष्य सुनिश्चित हो सकता है।