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03 Mar 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 1
इतिहास
दिवस- 01: पाल कला और वास्तुकला पर बौद्ध धर्म ने किस प्रकार प्रभाव डाला? विश्लेषण कीजिये। (38 अंक)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- पाल कला और वास्तुकला का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- पाल कला और वास्तुकला के बौद्ध धर्म के साथ संबंध पर चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
पाल वंश (8वीं-12वीं शताब्दी ई.) बौद्ध धर्म, विशेष रूप से महायान और वज्रयान परंपराओं का एक प्रमुख संरक्षक था। बंगाल और बिहार में उनके शासन में पाल कला और वास्तुकला का उत्कर्ष हुआ, जिसने बौद्ध परंपराओं को संरक्षित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस अवधि की कलात्मक उपलब्धियाँ केवल भारत तक ही सीमित नहीं थीं, बल्कि नेपाल, तिब्बत और दक्षिण पूर्व एशिया में बौद्ध कला को भी प्रभावित करती थीं।
मुख्य भाग:
वास्तुकला संबंधी विशेषताएँ और बौद्ध संबंध
- विहार (मठवासी विश्वविद्यालय):
- बौद्ध शिक्षा एवं भिक्षुओं के निवास के लिये केंद्र।
- प्रमुख विहारों में नालंदा, विक्रमशिला, ओदंतपुरी और सोमपुरा (बांग्लादेश) शामिल हैं।
- संरचनाएँ आयताकार थीं, जिनमें एक खुला आँगन था, जो कमरों और बरामदों से घिरा हुआ था।
- उदाहरण: धर्मपाल द्वारा निर्मित विक्रमशिला महाविहार में बौद्ध विषयों पर आधारित अलंकृत प्रवेश द्वार और टेराकोटा सजावट थी।
- चैत्य (प्रार्थना कक्ष):
- यह प्राचीन काल के शैल-कट चैत्यों से विकसित होकर ईंट और पत्थर से निर्मित संरचनाओं में परिवर्तित हो गया।
- बांग्ला शैली की छतें एक विशिष्ट विशेषता बन गईं।
- मुख्य उदाहरण: ओदंतपुरी महाविहार चैत्य, जातक कथाओं और बौद्ध प्रतिमाओं से सजाया गया।
- स्तूप (धार्मिक स्मारक):
- बौद्ध उपासना हेतु निर्मित, यह स्थल भिक्षुओं और विद्वानों के अवशेषों के संरक्षण के लिये समर्पित है।
- सोमपुरा महाविहार स्तूप (बांग्लादेश): दक्षिण एशिया के विशालतम स्तूपों में से एक, जिसका अष्टकोणीय आधार जटिल टेराकोटा पैनलों से अलंकृत है।
- नालंदा स्तूप: बौद्ध शिक्षाओं को दर्शाने वाली अलंकृत टेराकोटा पट्टिकाओं के लिये जाना जाता है।
- मंदिर और हिंदू प्रभाव:
- यद्यपि बौद्ध शासकों के अलावा पाल शासकों ने भी वंगा नागर शैली में हिंदू मंदिरों का निर्माण कराया था।
- उदाहरण: विष्णुपद मंदिर (गया), कहलगाँव का गुफा मंदिर (भागलपुर)।
- महत्त्व: यह पाल कला में प्रबल बौद्ध संरक्षण के बावजूद धार्मिक समावेशिता को दर्शाता है।
मूर्तिकला और बौद्ध विषय-वस्तु
- कांस्य मूर्तियाँ:
- जटिल अग्रभाग विवरण के साथ सिरे पेर्ड्यू (खोया-मोम) तकनीक का उपयोग किया गया है।
- बुद्ध, अवलोकितेश्वर, तारा और विष्णु और बलराम जैसे हिंदू देवताओं के चित्रण।
- उदाहरण: कुर्किहार (गया) से मुकुटधारी बुद्ध, सुल्तानगंज में सबसे बड़ी खड़ी बुद्ध प्रतिमा।
- पत्थर की मूर्तियाँ:
- संथाल परगना और मुंगेर के काले बेसाल्ट पत्थर से निर्मित।
- अत्यधिक विस्तृत अलंकरण लेकिन अक्सर पीछे की ओर विवरण का अभाव था।
- प्रसिद्ध मूर्तिकार: धीमान और विटपला, बौद्ध प्रतिमा विज्ञान में अग्रणी।
- टेराकोटा कला:
- इसका उपयोग मंदिरों और विहारों को सजाने, बुद्ध के जीवन, जातक कथाओं और तांत्रिक देवताओं को दर्शाने के लिये किया जाता है।
- उदाहरण: विक्रमशिला महाविहार, पहाड़पुर में टेराकोटा कला।
पाल काल की चित्रकला और बौद्ध प्रभाव
- पांडुलिपि चित्रकारी (लघु चित्रकारी):
- अष्टसहस्रिका प्रज्ञापारमिता और पंचरक्ष जैसे बौद्ध ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है।
- ताड़ के पत्तों और ताँबे की प्लेटों पर लाल, नीले, काले एवं सफेद रंगों का प्रमुखता से प्रयोग करके चित्रकारी की गई।
- प्रभाव: नेपाल, तिब्बत और जावा में बौद्ध चित्रकला से प्रेरित।
- भित्ति चित्र (दीवार चित्र):
- बौद्ध विषयों और दैनिक जीवन को दर्शाते हुए महाविहार, चैत्य एवं मंदिर सजाए गए।
- उदाहरण: नालंदा में सराय स्थल भित्ति चित्र, जिसमें एक महिला को शृंगार करते हुए दिखाया गया है, जो प्राकृतिक चित्रण को उजागर करता है।
- तकनीक: अजंता और बाघ गुफा चित्रों से प्रभावित, भावपूर्ण मुद्राएँ एवं कोमल आकृतियाँ।
निष्कर्ष:
पाल काल बौद्ध कला का स्वर्ण युग था, जो महायान और वज्रयान परंपराओं के संरक्षण एवं विस्तार के लिये महत्त्वपूर्ण था। राजनीतिक अस्थिरता के बावजूद, पाल कलाकारों ने वास्तुकला, मूर्तिकला और चित्रकला में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया, जिससे नेपाल, तिब्बत तथा दक्षिण पूर्व एशिया में बौद्ध कला प्रभावित हुई। हालाँकि भारत में बौद्ध धर्म के पतन के साथ इसका अवसान हो गया, लेकिन इसकी विरासत वैश्विक बौद्ध कला और दृश्य संस्कृति को प्रभावित करती रही।