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70th BPSC Mains

  • 04 Mar 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    दिवस- 02: मौर्यकालीन कला और वास्तुकला की प्रमुख विशेषताओं का विश्लेषण कीजिये तथा बौद्ध धर्म के प्रसार एवं विकास में इसकी भूमिका पर चर्चा कीजिये। (38 अंक)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • मौर्य कला और वास्तुकला का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • मौर्य कला और वास्तुकला के बौद्ध धर्म के साथ संबंध पर चर्चा कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    मौर्य कला (322-185 ईसा पूर्व) भारतीय इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण चरण था, जो भव्य संरचनाओं, जटिल नक्काशी और लकड़ी से पत्थर में परिवर्तन द्वारा चिह्नित था। इसने भारतीय वास्तुकला के विकास और बौद्ध धर्म के प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, विशेष रूप से सम्राट अशोक के तहत, जिन्होंने पॉलिश किये गए बलुआ पत्थर के खंभे, स्तूप, चट्टान-कटाई की गुफाएँ और मूर्तियों का संरक्षण किया।

    Mauryan_Art

    मुख्य भाग:

    मौर्य महल:

    • स्थान और उद्देश्य: चंद्रगुप्त मौर्य ने मौर्यकालीन भव्यता को दर्शाने के लिये पाटलिपुत्र में अपना महल बनवाया था। अवशेष, विशेष रूप से सभा भवन, इसकी विशालता को दर्शाते हैं।
    • निर्माण:
      • मुख्यतः लकड़ी से निर्मित, बाद में अशोक द्वारा पत्थर का उपयोग करके इसका विस्तार किया गया।
      • बाण-छिद्रों वाली लकड़ी की दीवारों से घिरा हुआ (जैसा कि मेगस्थनीज़ ने उल्लेख किया है)।
    • वास्तुकला विशेषताएँ:
      • सभा भवन का आकार 140x120 फीट था।
      • कुम्हरार स्थित अस्सी-स्तंभ वाले हॉल में लकड़ी की छत और अखंड पत्थर के स्तंभ थे।
      • फारसी अकेमेनिड शैलियों से प्रेरित, स्वदेशी तकनीकों के साथ संयुक्त।

    मौर्य स्तंभ:

    • उद्देश्य एवं महत्त्व: इसका निर्माण अशोक के शासनकाल के दौरान धम्म को बढ़ावा देने और प्रमुख बौद्ध स्थलों को चिह्नित करने के लिये किया गया था।
    • प्रमुख विशेषताएँ:
      • यह दर्पण जैसी फिनिश के साथ पॉलिश किये गए चुनार बलुआ पत्थर से बना है।
      • बौद्ध सिद्धांतों का प्रतीक सजीव पशु आकृतियों से सुसज्जित।
    • सरंचनात्मक घटक:
      • शाफ्ट: एकल पत्थर, थोड़ा पतला।
      • शीर्ष: उलटा कमल/घण्टा आकार।
      • अबेकस: जटिल पशु नक्काशी वाला मंच।
      • पशु आकृति: प्रतीकात्मक अर्थ वाले शेर, बैल, हाथी या घोड़े।
    • प्रकार:
      • लिपिबद्ध स्तंभ: अशोक के शिलालेखों से अंकित (जैसे- सारनाथ, साँची, रामपुरवा)।
      • सादे स्तंभ: गैर-अंकित, कलात्मक चिह्न (जैसे- बसाध, कोसरा)।
    • उल्लेखनीय स्तंभ:
      • सारनाथ स्तंभ: इसमें चार सिंह हैं, जो अब भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है।
      • रामपुरवा स्तंभ: इसमें ललित मुद्रा में एक बैल को दर्शाया गया है।
      • लौरिया नंदनगढ़ स्तंभ: इसमें धम्म पर अशोक के शिलालेख शामिल हैं।

    Pillar

    मौर्य स्तूप:

    • परिभाषा एवं उद्देश्य: स्तूप बौद्ध दफन टीले हैं जो अवशेषों को संरक्षित करते हैं और बुद्ध की शिक्षाओं को बढ़ावा देते हैं।
    • प्रमुख विशेषताएँ:
      • तोरण: जातक कथाओं से सुसज्जित द्वार।
      • वेदिका: सुरक्षात्मक पत्थर की रेलिंग।
      • प्रदक्षिणा पथ: प्रदक्षिणा पथ।
      • अंडा: अर्द्धगोलाकार गुंबद जो ब्रह्मांड का प्रतीक है।
      • हर्मिका: स्वर्ग का प्रतीक बक्सानुमा संरचना।
      • छतरी: तीन-स्तरीय छतरी जो बुद्ध, धर्म और संघ का प्रतीक है।

    Stupa

    • प्रसिद्ध स्तूप:
      • साँची स्तूप (मध्य प्रदेश): यूनेस्को स्थल, जिसका निर्माण प्रारंभ में अशोक द्वारा किया गया, जिसका विस्तार शुंगों द्वारा किया गया।
      • भरहुत स्तूप (मध्य प्रदेश): बौद्ध शिलालेखों के साथ प्रारंभिक पत्थर के प्रवेश द्वार।
      • धमेख स्तूप (सारनाथ, उत्तर प्रदेश): बुद्ध के पहले उपदेश का प्रतीक है।

    मौर्य गुफाएँ:

    • कार्य: बौद्ध और आजीविक भिक्षुओं के लिये विहार के रूप में कार्य किया, भारत की सबसे प्रारंभिक चट्टान-कटाई संरचनाएँ।
    • मुख्य स्थान: बराबर पहाड़ियाँ और नागार्जुनी पहाड़ियाँ (बिहार)।
    • उल्लेखनीय गुफाएँ:
      • बराबर पहाड़ियाँ: लोमस ऋषि, सुदामा, विश्वामित्र, कर्ण चोपड़।
        • उनमें अशोक के शिलालेख हैं।
      • नागार्जुनी पहाड़ियाँ: वाहियाका, गोपिका, वदथिका।
        • इनमें दशरथ के शिलालेख हैं।
    • विशिष्ट विशेषताएँ:
      • लकड़ी की संरचनाओं की नकल करती हुई अत्यधिक पॉलिश की गई दीवारें।

    मौर्य लोक कला:

    • मिट्टी के बर्तन:
      • कार्यात्मक और सजावटी प्रयोजनों के लिये उपयोग किया जाता है।
      • उत्तरी काले पॉलिश बर्तन (NBPW): चमकदार काले रंग की फिनिश, पाटलिपुत्र में प्रचलित।
      • चित्रित ग्रे बर्तन: काले और लाल डिज़ाइन।
    • मूर्ति:
      • भूरे बलुआ पत्थर से निर्मित, पॉलिश, जीवंत विवरण के साथ।
      • धार्मिक प्रभाव:
        • यक्ष-यक्षिणी मूर्तियाँ: संरक्षक देवता।
        • जैन तीर्थंकर: पटना में पाए गए।

    मौर्य कला का बौद्ध धर्म से संबंध:

    • अशोक स्तंभ: लुम्बिनी और सारनाथ जैसे प्रमुख बौद्ध स्थलों पर स्थित ये स्तंभ नैतिकता, अहिंसा और करुणा का संदेश देते हैं।
    • स्तूप: बड़े पैमाने पर निर्मित, बुद्ध के अवशेष रखने वाले तथा भक्ति के केंद्र के रूप में कार्य करने वाले।
    • चट्टान काटकर बनाई गई गुफाएँ: बौद्ध और आजीविक भिक्षुओं के लिये मठवासी आश्रय स्थल, जिनके आंतरिक भाग अत्यंत पॉलिश किये गए हैं।
    • कलात्मक चित्रण:
      • स्तूपों और गुफाओं पर जातक कथाएँ उत्कीर्ण की गईं, जिससे बौद्ध शिक्षाएँ जनसाधारण तक पहुँच गईं।

    निष्कर्ष:

    मौर्य कला और वास्तुकला ने भारतीय सांस्कृतिक इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण अध्याय जोड़ा। इसकी भव्य संरचनाएँ, उत्कृष्ट मूर्तियाँ और सुव्यवस्थित शहरी नियोजन भविष्य की स्थापत्य परंपराओं के लिये आधार बने। इसकी विरासत भारत के सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक अतीत को समझने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है एवं आज भी प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है।

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