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04 Mar 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 1
इतिहास
दिवस- 02:1857 के विद्रोह में बिहार की भूमिका का विश्लेषण कीजिये तथा स्वतंत्रता संग्राम में इसके प्रभाव का आकलन कीजिये। (38 अंक)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- 1857 के विद्रोह में बिहार की भागीदारी का उल्लेख करते हुए परिचय दीजिये।
- विद्रोह में बिहार के योगदान पर चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय: 1857 का विद्रोह, जो 10 मई को मेरठ में शुरू हुआ था, जुलाई 1857 तक बिहार सहित पूरे उत्तर भारत में फैल गया। स्थानीय नेता और आम लोग ब्रिटिश शासन के खिलाफ एकजुट हो गए, जिसमें पीर अली, कुँवर सिंह और अमर सिंह जैसे लोगों ने प्रतिरोध का नेतृत्व किया एवं क्षेत्र में व्यापक विद्रोह को जन्म दिया।
मुख्य भाग:
बिहार का प्रमुख योगदान:
- पटना विद्रोह और पीर अली का नेतृत्व:
- जुलाई 1857 के प्रारंभ में पटना में विद्रोह का नेतृत्व पुस्तक विक्रेता पीर अली ने किया, जो अप्रत्याशित किंतु प्रभावशाली नेता बन गया।
- 3 जुलाई को पटना में विद्रोह उस समय और बढ़ गया जब उप-अफीम एजेंट डॉ. लायल की हत्या कर दी गई - यह राजस्व व्यवस्था के लिये एक सीधी चुनौती थी, जो उस क्षेत्र में अफीम उत्पादन पर काफी हद तक निर्भर थी।
- पीर अली के प्रयास दमनकारी औपनिवेशिक आर्थिक नीतियों के विरुद्ध स्थानीय प्रतिरोध के प्रतीक थे, विशेष रूप से नील और अफीम की जबरन खेती से जुड़ी नीतियों के विरुद्ध, जिनके कारण लंबे समय से बिहार के कृषक समुदायों का शोषण हो रहा था।
- अंततः पकड़े जाने और फाँसी दिये जाने के बावजूद पटना में उनके नेतृत्व ने लोगों में विद्रोह की भावना प्रज्वलित कर दी।
- दानापुर विद्रोह:
- 25 जुलाई 1857 को पटना के बाहरी इलाके में स्थित एक प्रमुख छावनी दानापुर में एक महत्त्वपूर्ण विद्रोह हुआ।
- दानापुर में तैनात तीन रेजिमेंटों ने विद्रोह कर दिया और कई सैनिक सोन नदी पार कर शाहाबाद में आ गए, जहाँ उन्होंने स्थानीय विद्रोहियों के साथ सेना में शामिल हो गए।
- इस विद्रोही कृत्य ने न केवल सिपाहियों के भीतर गहरे असंतोष को उजागर किया, बल्कि स्थानीय विद्रोह को तेज़ किया और इसे ब्रिटिश शासन के खिलाफ व्यापक क्षेत्रीय आंदोलन से जोड़ दिया।
- कुँवर सिंह का नेतृत्व:
- बिहार के जगदीशपुर के सम्मानित नेता कुँवर सिंह ने क्षेत्र में विद्रोह की कमान सँभाली।
- वृद्धावस्था में उनका संकल्प और सामरिक कौशल पौराणिक बन गया।
- उनकी सेना, जिसमें अधिकांशतः स्थानीय योद्धा शामिल थे, ने ब्रिटिश सैनिकों को निरंतर क्षति पहुँचाने के लिये गुरिल्ला युद्ध रणनीति का कुशलतापूर्वक उपयोग किया।
- उनके नेतृत्व में विद्रोहियों ने आरा में एक छोटी यूरोपीय बस्ती को घेर लिया, जिससे उनकी रणनीतिक समन्वय क्षमता और लगातार सैन्य अभियानों को संचालित करने की दक्षता प्रदर्शित हुई।
- उनके स्वाभाविक नेतृत्व ने पटना, शाहाबाद जैसे ज़िलों में विभिन्न गुटों को एकजुट किया और यहाँ तक कि छोटानागपुर और मानभूम जैसे क्षेत्रों में विद्रोह को भी प्रभावित किया।
- बिहार के जगदीशपुर के सम्मानित नेता कुँवर सिंह ने क्षेत्र में विद्रोह की कमान सँभाली।
- अमर सिंह और अन्य स्थानीय नेताओं की भूमिका:
- कुँवर सिंह के करीबी सहयोगी और रिश्तेदार अमर सिंह ने शुरुआती सफलताओं के बाद विद्रोह की गति को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- कुँवर सिंह के साथ मिलकर अमर सिंह ने स्थानीय मिलिशिया को संगठित करने और उसका नेतृत्व करने में मदद की, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि ब्रिटिश सेना के पुनः संगठित होने पर भी प्रतिरोध जारी रहे।
- उनके प्रयासों ने बिहार में विद्रोह की विकेंद्रित किंतु समन्वित प्रकृति को दर्शाया, क्योंकि स्थानीय ज़मींदारों और सामुदायिक नेताओं ने भी संघर्ष में योगदान दिया, हालाँकि कुछ बड़े ज़मींदारों ने अंग्रेज़ों के प्रति वफादारी चुनी थी।
निष्कर्ष:
1857 के विद्रोह में बिहार का योगदान दृढ़ नेतृत्व, रणनीतिक सैन्य कार्रवाई और महत्त्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक असंतोष से चिह्नित था। कुँवर सिंह और अमर सिंह जैसे नेताओं ने न केवल स्थानीय सेनाओं को संगठित किया, बल्कि ब्रिटिश शोषण के विरुद्ध दृढ़ प्रतिरोध के प्रतीक बने। उनके प्रयासों ने भारतीय स्वतंत्रता के प्रारंभिक संघर्ष में इस क्षेत्र की अहम भूमिका को उजागर किया।