70th BPSC Mains

दिवस- 01: पटना कलम की उत्पत्ति, शैलीगत विशेषताएँ और सांस्कृतिक महत्त्व का विश्लेषण कीजिये। इसके उदय और अंततः पतन में कौन-से कारक योगदानशील रहे? (38 अंक)


03 Mar 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | इतिहास

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • पटना कलम चित्रकला का संक्षिप्त परिचय पृष्ठभूमि सहित दीजिये।
  • पटना कलम चित्रकला की मुख्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिये।
  • उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

पटना कलम, जिसे पटना स्कूल ऑफ पेंटिंग भी कहा जाता है, 18वीं और 19वीं शताब्दी के दौरान बिहार में विकसित और समृद्ध हुआ। मुगल लघुचित्रों के विपरीत, इसने आम लोगों के दैनिक जीवन को दर्शाने पर ध्यान केंद्रित किया, जिससे यह इस दृष्टिकोण को अपनाने वाला विश्व स्तर पर पहला पेंटिंग स्कूल बन गया। यह भारत की कलात्मक विरासत का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बना हुआ है।

मुख्य भाग:

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और विकास

  • मुगल साम्राज्य के पतन (1707 के बाद) ने कलाकारों को नए संरक्षकों की तलाश करने के लिये मजबूर किया, जिसके कारण उनका पलायन शुरू हो गया।
  • प्लासी का युद्ध (1757) ने मुर्शिदाबाद में अस्थिरता उत्पन्न कर दी, जिससे कलाकारों को वर्ष 1760 तक पटना में बसने के लिये मजबूर होना पड़ा।
  • पटना में ब्रिटिश प्रशासन और स्थानीय अभिजात वर्ग ने निरंतर संरक्षण प्रदान किया, जिसके परिणामस्वरूप इंडो-यूरोपीय कलात्मक शैलियों का विकास हुआ।

विकास के चरण

  • प्रारंभिक चरण (1760-1805):
    • प्रबल मुगल प्रभाव, कजली सीही तकनीक का प्रयोग।
    • स्थानीय त्योहारों और व्यवसायों का चित्रण।
  • परिपक्व चरण (1805-1831):
    • सेवक राम और शिव लाल जैसे कलाकारों ने यूरोपीय शैली की छाया एवं गहराई को अपनाकर अपनी कलाकृतियों में नया आयाम जोड़ा।
    • ब्रिटिश मांग ने विषय-वस्तु और रंगों को प्रभावित किया।
  • बाद का चरण (1831-20वीं सदी की शुरुआत):
    • व्यावसायीकरण में वृद्धि, ब्रिटिश अधिकारियों के लिये लघु चित्रों पर ध्यान केंद्रित।
    • हाथी दाँत, अभ्रक और चावल के कागज़ पर चित्रकारी लोकप्रिय हो गई।

पटना कलम की मुख्य विशेषताएँ

  • विषय-वस्तु:
    • शाही मुगल चित्रों के विपरीत, इसमें आम लोगों के जीवन को दर्शाया गया है।
    • होली, छठ पूजा, दशहरा, मुहर्रम जैसे त्योहार प्रमुखता से मनाए गए।
    • कारीगरों, व्यापारियों, लोहारों, पतंग बनाने वालों और ताड़ी निकालने वालों का चित्रण।
    • ब्रिटिश अधिकारियों को आकस्मिक परिस्थितियों में दिखाया गया है, जो भारतीय समाज में औपनिवेशिक उपस्थिति को उजागर करता है।
  • कलात्मक तकनीकें:
    • कजली सीही तकनीक:
      • बिना पेंसिल की रूपरेखा के सीधे बनाई गई पेंटिंग्स के लिये उच्च परिशुद्धता और कौशल की आवश्यकता होती है।
    • ब्रशमेकिंग और स्टिपलिंग:
      • विस्तृत स्ट्रोक के लिये गिलहरी या बकरी के बाल से बने ब्रश।
    • छाया और परिप्रेक्ष्य:
      • फोरशॉर्टनिंग जैसी यूरोपीय तकनीकें शुरू की गईं।
    • रंग और सामग्री:
      • खनिजों, पौधों और छाल से निकाले गए प्राकृतिक रंगद्रव्य।
      • वासली शीट, चावल के कागज़, अभ्रक, हाथी दाँत, बाँस और रेशम पर चित्रित।
      • मुगल शैली के गहरे रंगों की बजाय, नरम धुलाई और यूरोपीय शैली की छायांकन तकनीकों ने प्रमुख स्थान ले लिया।
  • विशिष्ट विशेषताएँ:
    • लागत कम करने और विषयों को उजागर करने के लिये न्यूनतम पृष्ठभूमि और सीमाएँ।
    • यूरोपीय रुचि के अनुरूप एक सूक्ष्म और हल्के रंगों वाला पैलेट अपनाया गया।
    • चेहरे की विशेषताएँ: नुकीली नाक, धँसी हुई आँखें, घनी भौहें, उभरी हुई मूँछें।
  • सामाजिक-सांस्कृतिक महत्त्व:
    • दृश्य नृवंशविज्ञान: दस्तावेज़ित व्यावसायिक विविधता, मछली विक्रेताओं से लेकर चाँदी के कारीगरों तक के रोज़मर्रा के जीवन को दर्शाती है।
    • सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि: उस काल के त्योहार, वस्त्र और परंपराओं को प्रतिबिंबित करती है।
    • औपनिवेशिक प्रभाव: ब्रिटिश-भारतीय संबंधों को दर्शाया गया, जिसने बाद की कंपनी शैली की चित्रकला को रूपांतरित किया।
    • तुलनात्मक संदर्भ: दिल्ली और बनारस कलम के विपरीत, पटना कलम सादगीपूर्ण था, जिसमें अलंकृत पृष्ठभूमि के बजाय साधारण जीवन पर ध्यान केंद्रित किया गया था।

प्रमुख कलाकार और उनका योगदान

  • सेवक राम (1770-1830): कजली सीही तकनीक के प्रणेता, दशहरा और छठ चित्रों के लिये प्रसिद्ध हैं।
  • हुलास लाल (1785-1875): चित्रकला में विशेषज्ञता, ईस्ट इंडिया कंपनी के लिये काम किया।
  • शिव दयाल लाल (1820-1880): हाथी दाँत पर लघु चित्रों, मंदिर अनुष्ठानों के चित्रण के लिये जाने जाते थे।
  • ईश्वरी प्रसाद (1870-1949): अंतिम प्रमुख पटना कलम कलाकार, बाद में कोलकाता स्कूल ऑफ आर्ट में पढ़ाया।
  • महिला कलाकार: दक्षो बीबी और सोना बीबी ने पुरुष-प्रधान क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया।

पटना कलम का पतन

  • तकनीकी उन्नति: फोटोग्राफी का उदय हुआ, जिससे सस्ते और अधिक यथार्थवादी चित्र उपलब्ध हुए।
  • बाज़ार संतृप्ति: दोहराए जाने वाले विषयों के कारण रुचि में गिरावट आई।
  • संरक्षण में परिवर्तन: ब्रिटिशों की रुचि बदल गई, जिससे मांग कम हो गई।
  • आर्थिक पतन: स्थानीय संरक्षण कम हो गया और पश्चिमी कलात्मक प्रभाव बढ़ गया।
  • शिव लाल और शिव दयाल लाल जैसे प्रमुख कलाकारों की मृत्यु के कारण स्टूडियो बंद हो गए।

समकालीन विरासत और पुनरुद्धार प्रयास

  • प्रमुख संग्रहालयों में संरक्षित:
    • पटना संग्रहालय, भारत।
    • विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय, लंदन।
    • ब्रिटिश संग्रहालय, लंदन।
  • आम लोगों के जीवन को दर्शाने वाले विश्व के प्रथम स्वतंत्र चित्रकला विद्यालय के रूप में मान्यता प्राप्त।
  • पुनरुद्धार के प्रयास: कला एवं शिल्प महाविद्यालय, पटना जैसी संस्थाएँ पटना कलम को संरक्षित करने और उसका दस्तावेज़ीकरण करने का काम करती हैं।

निष्कर्ष:

पटना कलम ने मुगल परंपराओं को यूरोपीय तकनीकों के साथ मिलाकर आम लोगों के जीवन का यथार्थवादी चित्रण प्रस्तुत किया। इसकी अभिनव शैली और सामाजिक विषयों ने इसे एक महत्त्वपूर्ण कलात्मक योगदान बना दिया। हालाँकि इसमें बदलती रुचियों और फोटोग्राफी के साथ गिरावट आई, लेकिन इसकी विरासत संग्रहालयों एवं अध्ययनों में बनी हुई है, जो इसके स्थायी सांस्कृतिक महत्त्व को उजागर करती है।