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05 Mar 2025
सामान्य अध्ययन पेपर 1
इतिहास
दिवस- 03: चंपारण सत्याग्रह के प्रमुख कारण और परिणाम क्या थे?
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में प्रथम प्रमुख सविनय अवज्ञा आंदोलन के रूप में चंपारण सत्याग्रह का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- चंपारण सत्याग्रह के कारणों और परिणामों पर चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
चंपारण सत्याग्रह (1917) महात्मा गांधी का भारत में पहला बड़ा सविनय अवज्ञा आंदोलन था, जिसने भारतीय राजनीति में उनके सक्रिय प्रवेश को चिह्नित किया। यह ब्रिटिश आर्थिक शोषण के खिलाफ लड़ाई में एक ऐतिहासिक घटना थी, जिसने सत्याग्रह (अहिंसक प्रतिरोध) की शक्ति का प्रदर्शन किया। यह आंदोलन तिनकठिया प्रणाली के खिलाफ विरोध स्वरूप शुरू हुआ, जिसमें किसानों को ब्रिटिश ज़मींदारों द्वारा थोपे गए शोषणकारी नियमों के तहत अपनी भूमि के 15% हिस्से पर अनिवार्य रूप से नील की खेती करने के लिये बाध्य किया जाता था।
मुख्य भाग:
कारण और पृष्ठभूमि
- जबरन नील की खेती और आर्थिक शोषण:
- रामनगर और बेतिया राज में ब्रिटिश नियंत्रित भूमि अनुबंधों के तहत दशकों से उत्तरी बिहार के चंपारण में नील की खेती की जाती रही थी।
- तिनकठिया प्रणाली के तहत किसानों को अपनी भूमि के 15% (20 कट्ठा में से तीन कट्ठा) पर नील की खेती करने के लिये बाध्य किया जाता था।
- किसानों को बाज़ार मूल्य पर नील बेचने पर रोक लगा दी गई और उन्हें ब्रिटिश बागान मालिकों को कम निश्चित मूल्य पर नील बेचने के लिये मजबूर किया गया, जिससे गंभीर आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया।
- मांग में गिरावट और निरंतर शोषण:
- वर्ष 1900 तक यूरोप में कृत्रिम नील के उत्पादन से प्राकृतिक नील की मांग कम हो गई थी, फिर भी ब्रिटिश ज़मींदारों ने किसानों का शोषण जारी रखा।
- उन्होंने उन किसानों पर अतिरिक्त कर और ज़ुर्माना लगाया जो नील की खेती बंद करना चाहते थे।
- किसानों को नील के ठेकों से मुक्त होने के लिये भारी रकम चुकानी पड़ती थी।
- जबरन श्रम और उत्पीड़न:
- किसानों पर शारीरिक शोषण, जबरन श्रम (बेगार) और अन्य अन्याय किये गए।
- चंपारण की स्थिति बंगाल से भी बदतर थी, जहाँ 19वीं सदी में इसी तरह का नील विद्रोह हुआ था।
- प्रारंभिक किसान प्रतिरोध (1905-1908):
- ब्रिटिश बागान मालिकों के खिलाफ पहला बड़ा किसान विद्रोह 1905-08 के बीच मोतिहारी और बेतिया में हुआ, लेकिन इसे दबा दिया गया।
गांधीजी की भूमिका और सत्याग्रह की रणनीति
- भारतीय राजनीति में गांधीजी का प्रवेश:
- चंपारण सत्याग्रह भारत में गांधीजी की पहली प्रत्यक्ष राजनीतिक कार्रवाई थी।
- यहाँ उनकी सफलता ने राष्ट्रीय आंदोलन में उनके नेतृत्व को स्थापित कर दिया।
- राजकुमार शुक्ला द्वारा आमंत्रण:
- वर्ष 1916 में, चंपारण के एक किसान राजकुमार शुक्ला ने दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी के तरीकों से प्रभावित होकर उन्हें हस्तक्षेप करने के लिये आमंत्रित किया।
- चंपारण आगमन और प्राधिकारियों से प्रतिरोध:
- अप्रैल 1917 में गांधीजी कॉन्ग्रेस नेताओं राजेंद्र प्रसाद, ब्रज किशोर प्रसाद और आचार्य कृपलानी के साथ चंपारण पहुँचे।
- ब्रिटिश प्रशासन ने उनकी उपस्थिति का विरोध किया, उन्हें वहाँ से चले जाने का आदेश दिया और यहाँ तक कि बेतिया में उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया गया।
- गांधीजी ने वहाँ से जाने से इनकार कर दिया और कहा कि जब तक किसानों की शिकायतों का समाधान नहीं हो जाता तब तक वे यहीं रहेंगे।
सत्याग्रह की उपलब्धियाँ और परिणाम
- जाँच आयोग का गठन:
- किसानों की शिकायतों की गंभीरता को देखते हुए बिहार के राज्यपाल को एक आयोग गठित करना पड़ा, जिसमें गांधीजी भी सदस्य के रूप में शामिल थे।
- आयोग ने किसानों की शिकायतों को मान्य किया और सुधारों की सिफारिश की।
- तिनकठिया प्रणाली का उन्मूलन:
- इस आंदोलन के परिणामस्वरूप चंपारण कृषि अधिनियम (1918) पारित हुआ, जिसके तहत तिनकठिया प्रणाली को समाप्त कर दिया गया।
- किसानों को मुआवज़ा:
- ब्रिटिश बागान मालिकों ने शुरू में अवैध रूप से एकत्र की गई धनराशि को वापस करने से इनकार कर दिया, लेकिन बाद में वे किसानों को 25% राशि लौटाने पर सहमत हो गए।
- गांधीजी ने इसे अहिंसक प्रतिरोध की सफलता और इसकी प्रभावशीलता को दर्शाने वाली एक महत्त्वपूर्ण जीत के रूप में माना।
- भारत में सत्याग्रह की पहली बड़े पैमाने पर सफलता:
- चंपारण सत्याग्रह भारत में सत्याग्रह का पहला व्यावहारिक प्रदर्शन था, जिसने भविष्य के आंदोलनों के लिये एक मिसाल कायम की।
- इसने बाद में खेड़ा सत्याग्रह (1918) और असहयोग आंदोलन (1920-22) को प्रेरित किया।
महत्त्व और दीर्घकालिक प्रभाव
- स्वतंत्रता संग्राम को मज़बूत किया:
- चंपारण किसान प्रतिरोध का प्रतीक बन गया और इसने ग्रामीण आबादी को ब्रिटिश उत्पीड़न के विरुद्ध संगठित किया।
- एक नेता के रूप में गांधीजी की स्थापना:
- यह भारत में गांधीजी के जन नेतृत्व की शुरुआत थी।
- अहिंसक विरोध और सत्य की खोज का उनका दृष्टिकोण भविष्य के राष्ट्रीय आंदोलनों के लिये केंद्रीय बन गया।
- संपूर्ण भारत में किसान आंदोलनों को प्रोत्साहन:
- चंपारण ने भारत के अन्य हिस्सों में भी इसी तरह के आंदोलनों को प्रेरित किया, जैसे- बारडोली सत्याग्रह (1928) और तेभागा आंदोलन (1946-47)।
निष्कर्ष:
चंपारण सत्याग्रह भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्त्वपूर्ण क्षण था, जिसने देश में सत्याग्रह के पहले सफल प्रयोग को चिह्नित किया। इस आंदोलन ने ब्रिटिश शोषण को उजागर किया, किसानों के लिये न्याय सुनिश्चित किया और गांधी के नेतृत्व को स्थापित किया। इसने संगठित अहिंसक प्रतिरोध की ताकत को उजागर किया, जो भविष्य के उपनिवेश-विरोधी आंदोलनों की आधारशिला बनी। समग्र रूप से, चंपारण सिर्फ एक स्थानीय कृषि संघर्ष नहीं था, बल्कि एक परिवर्तनकारी घटना थी जिसने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की रूपरेखा तय की।