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70th BPSC Mains

  • 05 Mar 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    दिवस- 03: भारत सरकार अधिनियम, 1919 ने भारत में संवैधानिक विकास की दिशा में क्या योगदान दिया? चर्चा कीजिये।

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत सरकार अधिनियम 1919 का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • अधिनियम की मुख्य विशेषताओं और संवैधानिक सुधारों पर चर्चा कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों पर आधारित भारत सरकार अधिनियम 1919, भारत में उत्तरदायी शासन की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था। इसका उद्देश्य प्रशासन का विकेंद्रीकरण करना और शासन में भारतीयों की भागीदारी बढ़ाना था, जिससे भविष्य के संवैधानिक सुधारों की नींव रखी जा सके।

    मुख्य भाग:

    ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

    • 20 अगस्त 1917 को ब्रिटिश सरकार ने भारत में धीरे-धीरे उत्तरदायी सरकार स्थापित करने के अपने उद्देश्य की घोषणा की।
    • वर्ष 1918 में, राज्य सचिव एडविन मोंटेगू और वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड ने मोंटेगू-चेम्सफोर्ड सुधार तैयार किये, जिसके परिणामस्वरूप भारत सरकार अधिनियम 1919 पारित हुआ।
    • ये सुधार वर्ष 1921 में प्रभावी हुए, जिससे प्रशासन में भारतीयों की अधिकाधिक भागीदारी की ओर बदलाव हुआ।

    अधिनियम और संवैधानिक सुधार की मुख्य विशेषताएँ:

    • प्रांतीय विकेंद्रीकरण:
      • इस अधिनियम ने केंद्रीय और प्रांतीय विषयों का सीमांकन कर उन्हें अलग कर दिया।
      • केंद्रीय और प्रांतीय दोनों विधानमंडलों को अपने-अपने विषयों पर कानून बनाने का अधिकार दिया गया।
    • इसके बावजूद, समग्र संरचना केंद्रीकृत और एकात्मक बनी रही।
    • द्वैध शासन का परिचय:
      • प्रांतीय विषयों को हस्तांतरित और आरक्षित श्रेणियों में विभाजित किया गया।
      • हस्तांतरित विषयों (शिक्षा, स्वास्थ्य, स्थानीय सरकार) का प्रशासन प्रांतीय विधान परिषद के प्रति उत्तरदायी मंत्रियों द्वारा किया जाता था।
      • आरक्षित विषय (पुलिस, भूमि राजस्व, वित्त) गवर्नर और उसकी कार्यकारी परिषद के अधीन थे, जो विधायिका के प्रति जवाबदेह नहीं थे।
      • दोहरी शासन प्रणाली, जिसे द्वैध शासन के रूप में जाना जाता है, परस्पर विरोधी प्राधिकार के कारण काफी हद तक असफल रही।
    • द्विसदनीयता और प्रत्यक्ष चुनाव:
      • केंद्रीय स्तर पर द्विसदनीय विधायिका की शुरुआत की गई:
        • उच्च सदन (राज्य परिषद)
        • निचला सदन (विधान सभा)
      • दोनों सदनों में अधिकांश सदस्य प्रत्यक्ष चुनाव के माध्यम से चुने गए, जिससे शासन में भारतीयों का प्रतिनिधित्व बढ़ गया।
    • कार्यपालिका में भारतीयों का प्रतिनिधित्व बढ़ा:
      • वायसराय की कार्यकारी परिषद के छह सदस्यों में से तीन (कमांडर-इन-चीफ को छोड़कर) भारतीय होंगे।
    • विस्तारित सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व:
      • सिखों, भारतीय ईसाइयों, एंग्लो-इंडियन और यूरोपीय लोगों के लिये पृथक निर्वाचिका की व्यवस्था की गई, जिससे सांप्रदायिक विभाजन और गहरा गया।
    • सीमित फ्रेंचाइज़:
      • संपत्ति के स्वामित्व, कर भुगतान या शिक्षा के आधार पर मताधिकार प्रदान किया गया, जिससे भागीदारी समाज के एक छोटे वर्ग तक ही सीमित रही।
    • लंदन में भारत के लिये उच्चायुक्त की स्थापना:
      • लंदन में भारत के लिये उच्चायुक्त का एक नया कार्यालय बनाया गया, जो पहले भारत के लिये राज्य सचिव द्वारा सँभाले जाने वाले कुछ कार्यों को सँभालेगा।
    • लोक सेवा आयोग:
      • इस अधिनियम ने एक स्वतंत्र सार्वजनिक सेवा की नींव रखी।
      • सिविल सेवा भर्ती की देखरेख के लिये वर्ष 1926 में केंद्रीय लोक सेवा आयोग की स्थापना की गई थी।
    • वित्तीय विकेंद्रीकरण:
      • पहली बार प्रांतीय बजट को केंद्रीय बजट से अलग किया गया।
      • प्रांतीय विधायिकाओं को अपना बजट बनाने का अधिकार दिया गया।
    • सांविधिक आयोग का प्रावधान:
      • अधिनियम के लागू होने के दस वर्ष बाद इसके कामकाज का आकलन करने के लिये एक वैधानिक आयोग नियुक्त किया जाना था, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1927 में साइमन कमीशन का गठन हुआ।

    निष्कर्ष:

    भारत सरकार अधिनियम 1919 भारत के संवैधानिक विकास में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर था। हालाँकि इसने द्वैध शासन, द्विसदनीय विधायिका और शासन में भारतीय प्रतिनिधित्व जैसे सुधार प्रस्तुत किये, लेकिन यह पूर्ण उत्तरदायी सरकार प्रदान करने में विफल रहा। अपनी सीमाओं के बावजूद, अधिनियम ने भविष्य की संवैधानिक प्रगति के लिये मंच तैयार किया, जिसमें भारत सरकार अधिनियम 1935 और अंततः भारत की स्वतंत्रता शामिल है।

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