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  • 15 Mar 2025 निबंध लेखन निबंध

    दिवस- 12:  “किसी राष्ट्र का भाग्य उसकी कक्षा में आकार लेता है”। (100 अंक)

    परिचय:

    "शिक्षा सबसे प्रभावशाली उपकरण है जिसका उपयोग कर हम दुनिया में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं।"

    – नेल्सन मंडेला

    किसी राष्ट्र का भाग्य उसकी कक्षाओं की सीमाओं के भीतर जटिल रूप से बुना जाता है। शिक्षा सामाजिक प्रगति की आधारशिला रही है, जो विकास और सभ्यताओं के पोषण के लिये उत्प्रेरक के रूप में कार्य करती है। जैसा कि विलियम बटलर येट्स ने एक बार लिखा था, "शिक्षा एक बाल्टी को भरना नहीं है, बल्कि आग जलाना है।" शिक्षा न केवल ज्ञान प्रदान करती है बल्कि आलोचनात्मक विचार, नैतिक मूल्यों और नेतृत्व गुणों का पोषण भी करती है, जिससे यह किसी भी राष्ट्र के भविष्य को आकार देने में सहायक होती है। कक्षाओं के दौरान दी जाने वाली शिक्षा में ऐतिहासिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, तकनीकी, पर्यावरणीय, कानूनी और समकालीन जैसे कई आयामों में समाज को बदलने की शक्ति होती है।

    मुख्य भाग:

    ऐतिहासिक पहलू:

    • शिक्षा ने संस्कृति, इतिहास और ज्ञान को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक संरक्षित एवं प्रसारित किया है।
    • ग्रीस, रोम और चीन की महान सभ्यताएँ अपनी उन्नत शैक्षिक संस्थाओं के कारण प्रसिद्ध हुईं।
    • यूरोप में पुनर्जागरण मुख्यतः समृद्ध शैक्षिक संस्थानों का परिणाम था।
    • भारत में प्राचीन नालंदा और तक्षशिला विश्वविद्यालयों ने वैश्विक बौद्धिक प्रगति को प्रभावित किया।
    • महान साम्राज्यों के पतन को अक्सर शिक्षा और वैज्ञानिक मनोवृत्ति की कमी से जोड़ा जाता है।

    राजनीतिक पहलू:

    • कक्षाएँ लोकतांत्रिक सिद्धांतों और न्याय की शिक्षा देकर जागरूक नागरिकों एवं महत्त्वाकांक्षी नेताओं का पोषण करती हैं।
    • भारत में शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 21A) सभी बच्चों के लिये निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित करता है।
    • नागरिक शिक्षा में निवेश करने वाले राष्ट्र अपनी जनता को उसके अधिकारों और ज़िम्मेदारियों के प्रति जागरूक बनाते हैं।
    • महात्मा गांधी, नेल्सन मंडेला और अब्राहम लिंकन जैसे दूरदर्शी नेता शिक्षा के बल पर अपने विचारों एवं नेतृत्व को विकसित कर सके।
    • शिक्षा राजनीतिक चेतना और शासन के प्रति जागरूकता को बढ़ावा देती है, जिससे मतदाताओं की सक्रियता सुनिश्चित होती है।

    आर्थिक पहलू:

    • एक सशक्त शिक्षा प्रणाली उत्पादकता, अनुकूलनशीलता और नवाचार को बढ़ाती है तथा राष्ट्रीय विकास में योगदान देती है।
    • भारत की "राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020" समग्र शिक्षा, कौशल विकास और उद्यमिता को बढ़ावा देती है।
    • जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने सीमित संसाधनों के बावजूद शिक्षा के माध्यम से आर्थिक सफलता प्राप्त की है।
    • वैश्विक ज्ञान अर्थव्यवस्था कुशल पेशेवरों की मांग करती है, जिससे आर्थिक स्थिरता के लिये शिक्षा महत्त्वपूर्ण हो जाती है।
    • शिक्षा विकासशील देशों में तकनीकी प्रगति, अनुसंधान और आर्थिक विविधीकरण को सक्षम बनाती है।

    सामाजिक पहलू:

    • शिक्षा सामाजिक विभाजन को पाटती है, समानता को बढ़ावा देती है और भेदभाव को कम करती है।
    • यह सामाजिक सामंजस्य, सहिष्णुता, बहुलवाद और समाज के प्रति ज़िम्मेदारी को बढ़ावा देता है।
    • शिक्षा जाति और लैंगिक आधारित भेदभाव को खत्म करने तथा समतामूलक समाज के निर्माण में मदद करती है।
    • स्कूलों में सामाजिक जागरूकता कार्यक्रम समावेशिता और सामाजिक प्रगति को प्रोत्साहित करते हैं।

    तकनीकी पहलू:

    • प्रौद्योगिकी ने शिक्षा को रूपांतरित कर दिया है तथा इसे अधिक वैयक्तिक, सुलभ और संवादात्मक बना दिया है।
    • कोविड-19 महामारी ने ऑनलाइन शिक्षा के लाभों और चुनौतियों पर प्रकाश डाला है।
    • भविष्य में कार्यबल की तैयारी के लिये प्रौद्योगिकी और डिजिटल साक्षरता तक समान पहुँच आवश्यक है।
    • फिनलैंड और सिंगापुर जैसे देश शिक्षा में प्रौद्योगिकी को प्रभावी ढंग से एकीकृत करने से लाभान्वित होते हैं।
    • डिजिटल साक्षरता छात्रों को समस्या समाधान कौशल और नवाचार क्षमताओं से लैस करती है।

    पर्यावरणीय पहलू:

    • शिक्षा जलवायु परिवर्तन, स्थिरता और संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाती है।
    • ग्रेटा थनबर्ग के नेतृत्व में वैश्विक युवा आंदोलन, पर्यावरण सक्रियता में शिक्षा की भूमिका को प्रदर्शित करते हैं।
    • पाठ्यक्रम में पर्यावरण विज्ञान जैसे विषय प्रकृति के प्रति ज़िम्मेदारी का भाव उत्पन्न करते हैं।
    • "स्वच्छ भारत अभियान" और "नमामि गंगे" जैसी भारतीय पहल पर्यावरण शिक्षा और जागरूकता पर ज़ोर देती हैं।
    • पर्यावरणीय ज्ञान से सुसज्जित भावी पीढ़ियाँ सतत् नीतियों और कार्यों को आगे बढ़ा सकती हैं।

    कानूनी पहलू:

    • भारतीय संविधान शिक्षा की परिवर्तनकारी शक्ति का प्रमाण है।
    • डॉ. बी.आर. अंबेडकर जैसे दूरदर्शी लोगों के नेतृत्व में संविधान सभा ने राष्ट्र निर्माण में शिक्षा की भूमिका को मान्यता दी थी।
    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15 धर्म, जाति या लैंगिकता के आधार पर भेदभाव का निषेध करता है।
    • शिक्षा नागरिकों में समावेशिता, सामाजिक न्याय और कानूनी जागरूकता के मूल्यों को कायम रखती है।
    • कानूनी अधिकारों और ज़िम्मेदारियों के प्रति जागरूकता एक अधिक न्यायपूर्ण एवं कानून का पालन करने वाले समाज को सुनिश्चित करती है।

    समकालीन पहलू:

    • सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को आगे बढ़ाने के लिये कक्षाएँ महत्त्वपूर्ण मंच हैं।
    • शिक्षा विविध समुदायों के बीच समझ, सहिष्णुता और सहानुभूति का पोषण करती है।
    • समावेशी शैक्षिक रणनीतियाँ भेदभाव, असमानता और सामाजिक अन्याय को दूर करने में सहायक सिद्ध होती हैं।
    • भारत में "बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ" जैसे कार्यक्रम लैंगिक सशक्तीकरण में शिक्षा की भूमिका को दर्शाते हैं।
    • शिक्षा के प्रति वैश्विक प्रतिबद्धता सतत् विकास और मानव प्रगति के अनुरूप है।

    निष्कर्ष:

    किसी राष्ट्र का भाग्य वास्तव में उसकी कक्षा में ही आकार लेता है। शिक्षा वह आधारशिला है जिस पर किसी राष्ट्र के ऐतिहासिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, तकनीकी, पर्यावरणीय और कानूनी पहलुओं का निर्माण होता है। कक्षा में ही नागरिकों का पालन-पोषण होता है और उनकी क्षमता का अहसास होता है। जैसे-जैसे राष्ट्र शिक्षा में निवेश करते हैं और सभी के लिये इसकी पहुँच सुनिश्चित करते हैं, वे न केवल अपने भाग्य को आकार दे रहे हैं, बल्कि एक उज्ज्वल, अधिक समृद्ध दुनिया में भी योगदान दे रहे हैं। विलियम बटलर येट्स के कालजयी शब्द हमें याद दिलाते हैं कि राष्ट्रों का भविष्य आज सिखाए जाने वाले पाठों से शुरू होता है। एक शिक्षित नागरिक एक अनुकूल, प्रगतिशील और समृद्ध राष्ट्र की रीढ़ बनता है, जो चुनौतियों पर नियंत्रण करने एवं मानवता को आगे बढ़ाने में सक्षम होता है।

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