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  • 22 Mar 2025 निबंध लेखन निबंध

    दिवस- 18: "महिलाओं की प्रगति के लिये केवल सशक्तिकरण ही पर्याप्त नहीं है।" (100 अंक)

    परिचय:

    "एक महिला अपने आप में पूर्ण है, जिसमें सृजन, पोषण और परिवर्तन की अद्वितीय शक्ति निहित होती है।" - डायने मैरीचाइल्ड

    लैंगिक समानता पर चर्चा में महिला सशक्तीकरण एक केंद्रीय विषय रहा है, फिर भी केवल सशक्तीकरण से उन गहरी सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक बाधाओं को दूर नहीं किया जा सकता जो महिलाओं की प्रगति में बाधा डालती हैं। जबकि शिक्षा, रोज़गार और राजनीतिक प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देने वाली नीतियों एवं कार्यक्रमों ने सकारात्मक बदलाव लाए हैं, इन उपायों को स्थायी प्रभाव उत्पन्न करने के लिये संरचनात्मक सुधारों, दृष्टिकोण में बदलाव तथा संस्थागत समर्थन द्वारा पूरक होना चाहिये। सच्ची लैंगिक समानता केवल महिलाओं के सशक्तीकरण तक सीमित नहीं है, बल्कि उन संरचनात्मक बाधाओं को समाप्त करने पर भी केंद्रित है जो उनके अधिकारों और अवसरों की राह में अवरोध उत्पन्न करती हैं।

    मुख्य भाग:

    संरचनात्मक समर्थन के बिना सशक्तीकरण अपर्याप्त है

    • कानूनी अधिकार और नीति कार्यान्वयन: बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 और मातृत्व लाभ अधिनियम, 2017 जैसे कानूनों के बावजूद , उनका कार्यान्वयन कमज़ोर बना हुआ है। 
      • यदि पितृसत्तात्मक मानदंड और नौकरशाही अकुशलताएँ महिलाओं को उनके अधिकारों तक पहुँचने से रोकती हैं तो केवल कानूनी प्रावधानों के माध्यम से सशक्तीकरण अपर्याप्त है।
    • आर्थिक स्वतंत्रता बनाम सामाजिक स्वीकृति: भारत में महिलाएँ तेज़ी से कार्यबल में शामिल हो रही हैं, लेकिन लैंगिक वेतन अंतर, कार्यस्थल पर उत्पीड़न और नेतृत्व की भूमिकाओं की कमी बनी हुई है। 
      • भारत में महिला श्रम बल भागीदारी दर वर्ष 2021 में केवल 25.1% थी (विश्व बैंक), जो दर्शाता है कि सुरक्षित और न्यायसंगत कार्य वातावरण के बिना अकेले आर्थिक सशक्तीकरण पर्याप्त नहीं है।
    • राजनीतिक प्रतिनिधित्व और निर्णय लेने की शक्ति: जबकि महिला आरक्षण विधेयक (2023) जैसी पहल का उद्देश्य महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को बढ़ाना है, नीति-निर्धारण में उनका वास्तविक प्रभाव पुरुष-प्रधान राजनीतिक संरचनाओं के कारण सीमित रहता है।

    महिलाओं की प्रगति में सामाजिक परिवर्तन की भूमिका

    • शिक्षा और जागरूकता: "यदि आप एक आदमी को शिक्षित करते हैं; तो आप एक व्यक्ति को शिक्षित करते हैं। लेकिन यदि आप एक महिला को शिक्षित करते हैं; तो आप एक पीढ़ी को शिक्षित करते हैं। " - ब्रिघम यंग। शिक्षा महिलाओं को सशक्त बनाती है, लेकिन सामाजिक कंडीशनिंग, लिंग भूमिकाएँ और रूढ़िवादी मानसिकताएँ अक्सर उन्हें अपने कौशल का पूरी तरह से उपयोग करने से रोकती हैं। 
      • रूढ़िवादिता को चुनौती देने और समावेशी मानसिकता को बढ़ावा देने के लिये शिक्षा को जागरूकता अभियानों के साथ जोड़ा जाना चाहिये।
    • परिवारों में बदलते दृष्टिकोण: महिलाओं का सशक्तीकरण घर से ही शुरू होता है। लैंगिक संबंधी भूमिकाएँ, कम उम्र में विवाह और परिवारों में सीमित निर्णय लेने की शक्ति महिलाओं की स्वायत्तता को सीमित करती है। 
      • परिवारों, विशेषकर पुरुषों को संवेदनशील बनाना, यह सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है कि सशक्तीकरण वास्तविक स्वतंत्रता में परिवर्तित हो
    • सुरक्षा और कानूनी संरक्षण: घरेलू हिंसा, दहेज़ हत्या और सम्मान के नाम पर हत्या सहित महिलाओं के खिलाफ उच्च अपराध दर यह संकेत देती है कि अकेले कानूनी सशक्तीकरण सुरक्षा की गारंटी नहीं है। 
      • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के वर्ष 2022 के आँकड़े महिलाओं के खिलाफ अपराधों में खतरनाक वृद्धि को उजागर करते हैं, जिसके लिये सख्त प्रवर्तन और दृष्टिकोण में बदलाव की आवश्यकता है।

    सशक्तीकरण से परे: समग्र परिवर्तन की आवश्यकता

    • नीति और सामाजिक सुधार एक साथ: महिलाओं की प्रगति के लिये बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है - कानूनी संरक्षण, आर्थिक समावेशन, राजनीतिक भागीदारी और सामाजिक स्वीकृति।
    • लैंगिक समानता में सहयोगी के रूप में पुरुष: वास्तविक परिवर्तन तब होगा जब पुरुष भी पारंपरिक पुरुषत्व को चुनौती देंगे, घरेलू ज़िम्मेदारियों को साझा करेंगे और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन करेंगे

    निष्कर्ष:

    "नारीवाद महिलाओं को मज़बूत बनाने की प्रक्रिया नहीं है, क्योंकि वे पहले से ही सशक्त हैं; बल्कि, यह समाज के उनके सामर्थ्य को देखने के दृष्टिकोण को बदलने का प्रयास है।" - जीडी एंडरसन।

    सच्ची लैंगिक समानता के लिये सिर्फ सशक्तीकरण ही ज़रूरी है, लेकिन पर्याप्त नहीं है। मज़बूत कानूनी प्रवर्तन, सामाजिक परिवर्तन और पुरुष भागीदारी के बिना सशक्तीकरण एक अधूरा लक्ष्य बना रहेगा। सच्ची प्रगति एक समावेशी समाज के निर्माण में निहित है, जहाँ महिलाओं को न सिर्फ सशक्त बनाया जाए, बल्कि उन्हें सम्मान, सुरक्षा और जीवन के हर क्षेत्र में समान अवसर भी दिये जाएँ

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