सिख धर्म | 19 Dec 2019
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2019 सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी का 550वाँ जयंती वर्ष है। इनका जन्म स्थल पाकिस्तान स्थित श्री ननकाना साहिब है।
- इस अवसर पर करतारपुर साहिब गलियारे का उद्घाटन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान द्वारा किया गया जो भारत के पंजाब में अवस्थित डेरा बाबा नानक गुरुद्वारा को पाकिस्तान के नरोवाल ज़िले में अवस्थित दरबार साहिब से जोड़ता है।
परिचय
- पंजाबी भाषा में 'सिख' शब्द का अर्थ 'शिष्य' होता है। सिख ईश्वर के वे शिष्य हैं जो दस सिख गुरुओं के लेखन और शिक्षाओं का पालन करते हैं।
- सिख एक ईश्वर में विश्वास करते हैं। उनका मानना है कि उन्हें अपने प्रत्येक काम में ईश्वर को याद करना चाहिये। इसे सिमरन (सुमिरण) कहा जाता है।
- विश्व भर में 25 मिलियन से अधिक सिख आबादी है जिनमें से अधिकांश भारतीय राज्य पंजाब में निवास करते हैं।
- सिख अपने पंथ को गुरुमत (गुरु का मार्ग- The Way of the Guru) कहते हैं। सिख परंपरा के अनुसार, सिख धर्म की स्थापना गुरु नानक (1469-1539) द्वारा की गई थी और बाद में नौ अन्य गुरुओं ने इसका नेतृत्व किया।
- सिख मानते हैं कि सभी 10 मानव गुरुओं में एक ही आत्मा का वास था। 10वें गुरु गोबिंद सिंह (1666-1708) की मृत्यु के बाद अनंत गुरु की आत्मा ने स्वयं को सिख धर्म के पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब (जिसे आदि ग्रंथ भी कहा जाता है) में स्थानांतरित कर लिया और इसके उपरांत गुरु ग्रंथ साहिब को ही एकमात्र गुरु माना गया।
- पाँचवें गुरु, गुरु अर्जुन देव के समय तक सिख धर्म स्थापित हो चुका था। गुरु अर्जुन देव ने अमृतसर को सिखों की राजधानी के रूप में स्थापित किया और सिख पवित्र लेखों की पहली प्रमाणिक पुस्तक के रूप में आदि ग्रंथ का संकलन किया।
दर्शन और मत:
- एक ओंकार – अर्थात् ईश्वर एक है और सभी धर्मों के सभी लोगों के लिये वही एक ईश्वर है।
- आत्मा मानव रूप को प्राप्त करने से पहले ज़रा और मरण के चक्र से गुज़रती है। हमारे जीवन का लक्ष्य एक अनुकरणीय अस्तित्व का निर्वहन करना है ताकि ईश्वर के साथ समागम हो सके।
- सिखों को हर समय ईश्वर का सुमिरण करना चाहिये और अपने आध्यात्मिक एवं लौकिक दायित्वों के बीच संतुलन बनाए रखते हुए सदाचारी एवं सत्यनिष्ठ जीवन जीने का अभ्यास करना चाहिये।
- मोक्ष प्राप्त करने और ईश्वर के साथ समागम करने का सच्चा मार्ग संसार से विरक्ति या ब्रह्मचर्य के पालन में नहीं है बल्कि एक गृहस्थ का जीवन जीने, ईमानदारी से आजीविका कमाने और सांसारिक प्रलोभनों एवं पापों से बचने में है।
- सिख धर्म उपवास, तीर्थ यात्रा, अंधविश्वासों का पालन, मृतकों की पूजा, मूर्ति पूजा जैसे अनुष्ठानों की निंदा करता है।
- सिख धर्म का उपदेश है कि विभिन्न नस्ल, धर्म या लिंग के लोग ईश्वर की दृष्टि में एक समान हैं। यह पुरुषों और महिलाओं में समानता की शिक्षा देता है।सिख महिलाएँ किसी भी धार्मिक समारोह में भाग ले सकती हैं या कोई भी अनुष्ठान कर सकती हैं या प्रार्थना में मंडली का नेतृत्व कर सकती हैं।
इतिहास और धार्मिक आचरण:
- गुरु नानक जी ने प्रेम और ज्ञान का संदेश दिया तथा हिंदू एवं मुस्लिम धर्म में व्याप्त कुरीतियों की निंदा की। इस नए धर्म का प्रबुद्ध नेतृत्व गुरु नानक से लेकर गुरु गोबिंद सिंह तक दस गुरुओं ने किया।
- प्रभाव: सिख धर्म का उद्भव एवं प्रसार भक्ति आंदोलन और हिंदू धर्म के वैष्णव मत से प्रभावित था। हालाँकि सिख धर्म केवल भक्ति आंदोलन का ही विस्तार नहीं था। सिख धर्म का प्रसार तब हुआ जब इस क्षेत्र पर मुगल साम्राज्य का शासन था। दो सिख गुरुओं - गुरु अर्जुन देव और गुरु तेग बहादुर द्वारा इस्लामिक धर्मांतरण से मना करने पर मुगल शासकों द्वारा उन्हें प्रताड़ित किया गया और मार डाला गया। इस्लामिक युग में सिखों के उत्पीड़न ने खालसा की स्थापना को प्रेरित किया जो अंतरात्मा और धर्म की स्वतंत्रता का पंथ है।
- अंतिम गुरु, गुरु गोविंद सिंह ने खालसा (जिसका अर्थ है 'शुद्ध') पंथ की स्थापना की जो सैनिक-संतों का विशिष्ट समूह था। खालसा प्रतिबद्धता, समर्पण और सामाजिक चेतना के सर्वोच्च सिख गुणों को उजागर करता है।
- खालसा ऐसे पुरुष और महिलाएँ हैं जिन्होंने सिख बपतिस्मा समारोह में भाग लिया हो और जो सिख आचार संहिता एवं परंपराओं का सख्ती से पालन करते हैं तथा पंथ के पाँच निर्धारित भौतिक वस्तुओं – केश, कंघा, कड़ा, कच्छा और कृपाण धारण करते हैं।
- सिख धर्म में पुजारी या पुरोहित वर्ग नहीं होता है, इस प्रथा को गुरु गोबिंद सिंह ने समाप्त कर दिया था। गुरु गोबिंद सिंह मानते थे कि पुरोहित वर्ग भ्रष्ट एवं अहंकारी होता है।
- सिख धर्म में केवल गुरु ग्रंथ साहिब का एक संरक्षक होता है जिसे ‘ग्रंथी’ कहते हैं और कोई भी सिख गुरुद्वारा में या अपने घर में गुरु ग्रंथ साहिब के पाठ के लिये स्वतंत्र है। सभी धर्मों के लोग गुरुद्वारा जा सकते हैं। प्रायः प्रत्येक गुरुद्वारे में एक निःशुल्क सामुदायिक रसोई होती है जहाँ सभी धर्मों के लोगों को भोजन परोसा जाता है। गुरु नानक ने पहली बार इस संस्था की शुरुआत की थी जो सिख धर्म के मूल सिद्धांतों सेवा, विनम्रता और समानता को रेखांकित करती है।
- चार अनुष्ठान: सिखों के कर्त्तव्यों को निर्दिष्ट करने वाली पुस्तिका "सिख रहत मर्यादा" चार अनुष्ठानों का प्रावधान करती है जिन्हें संस्कार मार्ग कहा जाता है।
- पहला अनुष्ठान जन्म और गुरुद्वारे में आयोजित नामकरण समारोह है।
- दूसरा अनुष्ठान आनंद करज (आनंदमय मिलन) या विवाह समारोह है।
- तीसरा अनुष्ठान जिसे सबसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है, अमृत संस्कार है जो खालसा में दीक्षा के लिये होने वाला समारोह है।
- चौथा अनुष्ठान मृत्योपरांत होने वाला अंतिम संस्कार समारोह है।
- तीन कर्त्तव्य जिनका पालन सिखों द्वारा किया जाना चाहिये - प्रार्थना, कृत्य या कार्य और दान।
- नाम जपना: हमेशा ईश्वर का सुमिरन करना।
- कीरत करना: ईमानदारी से आजीविका अर्जित करना। चूँकि ईश्वर सत्य है, एक सिख ईमानदारी से जीवन जीना चाहता है। इसका अर्थ केवल अपराध से दूर रहना नहीं है बल्कि जुए, भीख, शराब व तंबाकू उद्योग में काम करने से भी बचना है।
- वंड छकना: शाब्दिक रूप से इसका अर्थ है दूसरों के साथ अपनी कमाई साझा करना अर्थात् दूसरों को दान देना और उनकी देखभाल करना।
- पाँच दोष: सिख उन पाँच दोषों से बचने की कोशिश करते हैं जो लोगों को आत्म-केंद्रित बनाते हैं और उनके जीवन के ईश्वरीय मार्ग में बाधाएँ पैदा करते हैं। ये हैं: काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार।
सिख धर्म के दस गुरु:
दस सिख गुरु – परंपरा तालिका | ||
पहले गुरु | गुरु नानक | 1469-1539 |
दूसरे गुरु | गुरु अंगद | 1539-1552 |
तीसरे गुरु | गुरु अमर दास | 1552-1574 |
चौथे गुरु | गुरु राम दास | 1574-1581 |
पाँचवें गुरु | गुरु अर्जुन देव | 1581-1606 |
छठे गुरु | गुरु हरगोबिंद | 1606-1644 |
सातवें गुरु | गुरु हर राय | 1644-1661 |
आठवें गुरु | गुरु हरकिशन | 1661-1664 |
नवें गुरु | गुरु तेग बहादुर | 1665-1675 |
दसवें गुरु | गुरु गोबिंद सिंह | 1675-1708 |
सिख धर्म के महत्त्वपूर्ण गुरुद्वारे:
- पंज तख्त: ये सिखों के पाँच तख्त हैं और ये तख्त पाँच गुरुद्वारे हैं जिनका सिख समुदाय के लिये बहुत महत्त्व है।
- अकाल तख्त साहिब का अर्थ है अनंत सिंहासन (Eternal Throne)। यह अमृतसर में स्वर्ण मंदिर परिसर का एक अंग है। इसकी नींव छठे सिख गुरु, गुरु हरगोबिंद जी ने रखी थी।
- तख्त श्री केशगढ़ साहिब आनंदपुर साहिब, पंजाब में स्थित है। यह खालसा का जन्म स्थल है जिसे वर्ष 1699 में गुरु गोबिंद सिंह जी ने स्थापित किया था।
- तख्त श्री दमदमा साहिब भटिंडा के पास तलवंडी साबो ग्राम में स्थित है। गुरु गोबिंद सिंह जी लगभग एक वर्ष तक यहाँ रहे और उन्होंने वर्ष 1705 में गुरु ग्रंथ साहिब के अंतिम संस्करण को संकलित किया था जिसे ‘दमदमा साहिब बीर’ के नाम से भी जाना जाता है।
- तख्त श्री पटना साहिब बिहार की राजधानी पटना में स्थित है। गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म वर्ष 1666 में यहीं हुआ था और आनंदपुर साहिब जाने से पहले अपना बचपन उन्होंने यहीं बिताया था।
- तख्त श्री हज़ूर साहिब महाराष्ट्र के नांदेड़ में स्थित है।
- ननकाना साहिब (पाकिस्तान): गुरु नानक देव जी का जन्म स्थान।
- गुरुद्वारा दरबार साहिब (करतारपुर, पाकिस्तान): गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के अंतिम 18 वर्ष यहाँ बिताए थे।
सिख साहित्य: आदि ग्रंथ और दशम ग्रंथ
- आदि ग्रंथ को सिखों द्वारा शाश्वत गुरु का दर्जा दिया गया है और इसी कारण इसे ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ के नाम से जाना जाता है।
- दशम ग्रंथ के साहित्यिक कार्य और रचनाओं को लेकर सिख धर्म के अंदर कुछ संदेह और विवाद है।
निष्कर्ष
सिख अपने धर्म को पाँच महत्त्वपूर्ण घटनाक्रमों की परिणति मानते हैं।
- पहला घटनाक्रम गुरु नानक देव जी का उपदेश था जहाँ उन्होंने सतनाम पर ध्यान से मुक्ति का संदेश दिया।
- दूसरा घटनाक्रम गुरु हरगोबिंद जी द्वारा सिखों को शस्त्रों से सुसज्जित करना था।
- तीसरा घटनाक्रम गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा खालसा की स्थापना जिसकी आचार सहिंता का दीक्षा प्राप्त लोगों द्वारा पालन किया जाना है।
- चौथा घटनाक्रम गुरु गोबिंद सिंह जी की मृत्यु पर आत्मा-स्वरूपी रहस्यमयी गुरु का अपने 10 मानवीय रूपों से गुरु ग्रंथ साहिब में प्रवेश करना है।
- अंतिम घटनाक्रम 20वीं शताब्दी के आरंभ में संपन्न हुआ जब सिख धर्म में ‘तत खालसा’ के नेतृत्व में गहन सुधार किया गया।