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पेपर 3


जैव विविधता और पर्यावरण

‘हिमावरण’ का महत्त्व और इस पर ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव

  • 29 May 2020
  • 10 min read

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) तथा विश्व मौसम संगठन (WMO) की रिर्पोट ‘स्पेशल रिपोर्ट ऑन द ओसियन्स एंड क्रायोस्फीयर इन ए चेंजिंग क्लाइमेट (SROCC)’ में परमाफ्रॉस्ट/हिमावरण/हिममंडल पर जलवायु परिवर्तन व वैश्विक उष्मन के नकारात्मक प्रभाव के प्रति आगाह किया गया है। क्रायोस्फीयर जैवमंडल पारिस्थितिकी तंत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। क्रायोस्फीयर अनुसंधान के लिये अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। यह न केवल जलवायु प्रणाली को बल्कि पृथ्वी के भू-गर्भिक इतिहास को समझने के लिये भी महत्त्वपूर्ण है।

क्या है हिमावरण/हिममंडल?

  • भूमंडल अथवा पृथ्वी की सतह का वह भाग जो बर्फ से स्थाई रूप से ढका रहता है तथा जहाँ का तापमान वर्ष भर O°C या इससे कम रहता है, हिमावरण अथवा हिमांकमंडल कहलाता है।
  • वस्तुतः भूमंडल पर उत्तरी ध्रुव आर्कटिक, दक्षिणी ध्रुव अंटार्कटिका, हिमालय जैसे- पर्वतों का बर्फ से ढका उच्च भाग, सागरों में जमी बर्फ (दक्षिणी सागर आदि), हिमझीलें, हिमनदियाँ, ग्लेशियर्स, हिमशीट्स, हिमशैल्स आदि हिमावरण का भाग हैं।
  • हिममंडल (Cryospheor) के अध्ययन को क्रायोलॉजी (Cryology) कहते हैं, वही क्रायोस्फीयर में कमी आने की प्रक्रिया को डिग्लेशिएशन (Deglaciation) कहते हैं।
  • सामान्यतः परमाफ्रॉस्ट/क्रायोस्पीफ़यर की क्षैतिज रूप से तीन परतें पायी जाती हैं- 
    • पहली परत (सबसे ऊपरी) सक्रिय परत कहलाती है जिसमें हिम के पिघलने तथा जमने की प्रक्रिया होती रहती है।
    • दूसरी परत परमाफ्रॉस्ट कहलाती है जो स्थाई रूप से जमी हुई ठोस अवस्था में होती है। तथा तीसरी व सबसे निचली परत टालिक (Talic) कहलाती है जिसमें जल पाया जाता है।
  • वस्तुतः स्थाई रूप (लम्बे समय तक) से बर्फ से ढकी पृथ्वी की सतह हिमावरण/ हिममंडल कहलाती है।

Global-Cryosphere

हिमावरण/हिममंडल का महत्त्व:

  • अन्य पदार्थों के विपरीत हिम और बर्फ अपने गलनांक बिंदुओं के सापेक्ष रूप से नज़दीक रहते हैं जो ठोस व तरल के बीच आसानी से बदलते रहते हैं।
  • हिमावरण स्वच्छ व ताजे जल की आपूर्ति के सबसे बड़े स्रोत है। वस्तुतः पृथ्वी पर उपलब्ध कुल ताजे व स्वच्छ जल का लगभग 75% हिममंडल अथवा हिमावरण में उपस्थित है।
  • अंटार्कटिका में विश्व के कुल हिम का लगभग 90 प्रतिशत और विश्व के ताजे जल का लगभग 70 प्रतिशत भाग विद्यमान है।
  • हिमावरण कार्बनडाई ऑक्साइड (CO2) एवं मीथेन (CH4) के सिंक के रूप में कार्य करता है। वस्तुतः वर्तमान में वायुमंडल में जितना कार्बन मौजूद है उसका लगभग दोगुना हिमावरण में उपस्थित है।
  • हिमावरण पृथ्वी के ऊष्मा बजट संतुलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ध्यातव्य है कि हिम का एल्बीडो अधिक होता है जो अधिकांश सौर विकिरण को परावर्तित कर देती है।
  • हिमावरण के भौतिक गुणों यथा विकिरण, तापन आदि के कारण जलवायु के अध्ययन में इसका विशेष महत्त्व है।
  • स्थानीय/क्षेत्रीय स्तर पर छोटे/बड़े ग्लेशियर ताजे जल की आपूर्ति के स्रोत होते हैं जैसे- हिमालयी क्षेत्र से एशिया की लगभग 10 प्रमुख नदियाँ निकलती हैं।

भूमंडलीय ऊष्मन (Global Warming) का हिमावरण प्रर प्रभावः

  • भूमंडलीय ऊष्मन के कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है जिससे पृथ्वी का हिमावरण नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रहा है। परिणामतः इसके पिघलने से हिमावरण में कमी आ रही है। इसके नकारात्मक प्रभावों को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है।
    • ऊँचाई वाले पर्वतों पर उपस्थित ग्लेशियर पिघल जाएगें। एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2010 तक लगभग 80% ग्लेशियरों के पिघल जाने की संभावना है।
    • वस्तुतः ग्लेशियरों के पिघलने से जैव विविधता में कमी आएगी। भू-स्खलन, हिमस्खलन, एवं बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता एवं बारंबारता में वृद्धि होगी। अंततः सूखे की स्थिति उत्पन्न होगी। 
    • ताजे जल की उपलब्धता प्रभावित होगी, कृषि हेतु जल की उपलब्धता में कमी आएगी।
    • ध्रुवों पर उपस्थित परमाफ्रॉस्ट/हिमावरण पर भूमंडलीय ऊष्मन के दीर्घकालीन नकारात्मक प्रभाव दृष्टिगोचर होंगे।
    • ध्रुवीय जीवों यथा पेंग्विंस, ध्रुवीय भालू आदि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा जिससे ध्रुवीय जैव विविधता में कमी आएगी। अंततः इससे हिमावरण पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित होगा।
    • हिमावरण के पिघलने (Thawing) से समुद्री जल स्तर में वैश्विक स्तर पर वृद्धि होगी, द्वीपीय देशों व तटीय क्षेत्र सर्वप्रथम प्रभावित होंगे। इनके जलमग्न होने का खतरा उत्पन्न होगा।
    • वस्तुतः आर्कटिक एवं अंटार्कटिक की हिमशीट्स में प्रतिवर्ष कमी आ रही है। एक अनुमान के अनुसार, ग्रीनलैंड के पिघलने से वैश्विक समुद्र जल स्तर में 7 मीटर की वृद्धि हो जाएगी। वहीं अंटार्कटिक के पिघलने से यह वृद्धि 56-58 मीटर तक हो सकती है।
    • हिमावरण के पिघलने से ध्रुवीय हिम में संग्रहित कार्बनडाई ऑक्साइड एवं मीथेन वायुमंडल में विलीन हो जाएगी जो ग्रीन हाउस गैसें हैं।
    • यदि वैश्विक तापन को 2°C तक सीमित कर लिया जाता है तो वर्ष 2100 के अंत तक परमाफ्रॉस्ट का एक चौथाई भाग समाप्त होगा। वहीं यदि इसमें निरंतर वृद्धि होती रही तो वर्ष 2100 के अंत तक लगभग 70 प्रतिशत हिमावरण समाप्त हो जाएगा। जिससे समुद्र जल स्तर में लगभग1.1 मीटर की वृद्धि होगी। 
    • 20 वीं शताब्दी के दौरान वैश्विक समुद्री जल स्तर में लगभग 15 सेंटीमीटर की वृद्धि हुई।
    • अधिक तीव्रता वाले ज्वार आयेगें तथा विनाशकारी स्टॉर्म की बारंबारता में वृद्धि होगी।
    • सागरीय हीटवेव्स में वृद्धि होगी, तटीय एवं समुद्री जीवन नकारात्मक रूप से प्रभावित होगी।
    • हरित ग्रह गैसों के कारण पुनः भूमंडलीय ऊष्मन में वृद्धि होगी।

हिमावरण पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने हेतु किये जा रहे प्रयास:

  • वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिये विभिन्न पहलें की जा रही हैं जो इस प्रकार हैं-
    • पेरिस जलवायु समझौते के तहत 21वीं सदी के अंत तक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस करना।
    • इसके अलावा अंटार्कटिक संधि (1959), आर्कटिक परिषद (1996) का गठन, वर्ष 1982 में अंटार्कटिक समुद्री सजीव संसाधन कन्वेंशन को लागू किया गया तथा वर्ष 1991 में मेड्रिड प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किये गए।
    • भारत के पृथ्वी एवं विज्ञान मंत्रालय द्वारा ‘हिममंडल प्रक्रिया और जलवायु परिवर्तन (Cryosphere Process and Climate Change- CryoPACC)’ कार्यक्रम चलाया जा रहा है। जिसके प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं-
      • जैव रासायनिक चक्रण में शामिल मौलिक प्रक्रियाओं का अध्ययन करना यथा हिम पैक्स के साथ तथा इसके पश्चात ध्रुवीय व अन्यत्र क्षेत्रों में इसके ठोस बर्फ के रूप में बदलने का अध्ययन।
      • हिमावरण के पिघलने की प्रक्रिया को सीमित करने वाले जैविक घटकों का अध्ययन करना।
      • हिमनद संबंधी प्रक्रियाओं, उनके संचय पैटर्न तथा हिम की परत की विशेषताओं का अध्ययन करना।
  • विभिन्न ध्रुवीय अनुसंधान अभियान चलाए जा रहे हैं यथा आर्कटिक में हिमाद्री, अंटार्कटिक में दक्षिण गंगोत्री, मैत्री एवं भारती तथा हिमालय क्षेत्र में हिमांश आदि।

निष्कर्ष: जलवायु परिवर्तन एवं वैश्विक ऊष्मन के प्रयास भर करना पर्याप्त नहीं है बल्कि इनको वास्तविक रूप में क्रियान्वित करना अत्यंत आवश्यक है।

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